Sahir Ludhianvi Poetry: "ये माना मैं किसी क़ाबिल नहीं हूं इन निगाहों में..."

Siraj Mahi
Nov 26, 2024

जंग तो ख़ुद ही एक मसअला है जंग क्या मसअलों का हल देगी

अब आएँ या न आएँ इधर पूछते चलो क्या चाहती है उन की नज़र पूछते चलो

आँखें ही मिलाती हैं ज़माने में दिलों को अंजान हैं हम तुम अगर अंजान हैं आँखें

आओ कि आज ग़ौर करें इस सवाल पर देखे थे हम ने जो वो हसीं ख़्वाब क्या हुए

दूर रह कर न करो बात क़रीब आ जाओ याद रह जाएगी ये रात क़रीब आ जाओ

मेरे ख़्वाबों में भी तू मेरे ख़यालों में भी तू कौन सी चीज़ तुझे तुझ से जुदा पेश करूँ

अरे ओ आसमाँ वाले बता इस में बुरा क्या है ख़ुशी के चार झोंके गर इधर से भी गुज़र जाएँ

ये माना मैं किसी क़ाबिल नहीं हूँ इन निगाहों में बुरा क्या है अगर ये दुख ये हैरानी मुझे दे दो

हर एक दौर का मज़हब नया ख़ुदा लाया करें तो हम भी मगर किस ख़ुदा की बात करें

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