Urdu Poetry in Hindi: "मसअला ये नहीं कि इश्क़ हुआ है हम को, मसअला ये है कि..."
Siraj Mahi
Nov 27, 2024
मसअला ये नहीं कि इश्क़ हुआ है हम को मसअला ये है कि इज़हार किया जाना है
कुछ इस तरह गुज़ारा है ज़िंदगी को हम ने जैसे कि ख़ुद पे कोई एहसान कर लिया है
नींद को ढूँड के लाने की दवाएँ थीं बहुत काम मुश्किल तो कोई ख़्वाब हसीं ढूँढना था
क्या जाने किस जहाँ में मिलेगा हमें सुकून नाराज़ हैं ज़मीं से ख़फ़ा आसमाँ से हम
मिलते नहीं हैं अपनी कहानी में हम कहीं ग़ाएब हुए हैं जब से तिरी दास्ताँ से हम
मिरी ग़ज़ल में किसी बेवफ़ा का ज़िक्र न था न जाने कैसे तिरा तज़्किरा निकल आया
सफ़र में अब के अजब तजरबा निकल आया भटक गया तो नया रास्ता निकल आया
दिल भी बच्चे की तरह ज़िद पे अड़ा था अपना जो जहाँ था ही नहीं उस को वहीं ढूँढना था
किसी दिन ज़िंदगानी में करिश्मा क्यूँ नहीं होता मैं हर दिन जाग तो जाता हूँ ज़िंदा क्यूँ नहीं होता
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