संविधान का ये अनुच्छेद भारत के मुसलमानों को देता है सिर उठाकर जीने का हौसला
Taushif Alam
Nov 26, 2024
Rights of Muslims in Indian Constitution 15 अगस्त 1947 को देश को आज़ादी मिलने के बाद 26 दिसम्बर 1949 में, संविधान सभा ने भारत के संविधान को अपनाया था, और इसे 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया.
डॉ बीआर अंबेडकर संविधान बनाने वाली समिति के हेड डॉ बीआर अंबेडकर की 125वीं जयंती के मौके पर, 2015 में मोदी सरकार ने 26 नवंबर को संविधान दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया था, ताकि संविधान और आंबेडकर के महत्व को याद किया जा सके.
मौलिक अधिकारों की गारंटी भारत का संविधान देश के नागरिकों को कुछ मौलिक अधिकारों की गारंटी देता है, जिसे कोई सरकार भी कम या छीन नहीं सकती है.. अगर कोई इन अधिकारों को छींनता है, तो कोर्ट में उसे चुनौती दी जा सकती है.
भारत का मुसलमान भारत का मुसलमान संविधान में दिए गए अधिकारों की वजह से ही इस देश में सामान नागरिक की हैसियत से सर उठाकर जीता है और रहता है. इसलिए वो संविधान की दिल से इज्ज़त करता है.
बराबरी का हक़ संविधान का अनुच्छेद 14 कानून के सामने देश के सभी नागरिकों को बराबरी की गारंटी देता है. धर्म, जाति, लिंग, भाषा या क्षेत्र के आधार पर किसी तरह के भेदभाव को रोकता है. अनुच्छेद 15 ख़ास तौर से धार्मिक आधार पर भेदभाव को रोकता है.
मजहब की आज़ादी अनुच्छेद 25 से 28 मजहब की आज़ादी की गारंटी देते हैं, जिससे मुल्क का कोई भी नागरिक अपने धर्म को मानने, उसपर चलने और प्रचार करने की इज़ाज़त देता है. साथ ही, ये प्रावधान लोगों को किसी ख़ास मजहब का पालन करने के लिए मजबूर किए जाने से बचाते हैं.
संस्कृति का संरक्षण अनुच्छेद 29 अल्पसंख्यकों को भारत में अपनी भाषा, लिपि और संस्कृति को संरक्षित करने के अधिकारों की गारंटी देता है, और किसी सरकार या अन्य ताकत की मनमानी से रक्षा करता है.
अनुच्छेद 30 अनुच्छेद 30, जो हाल ही में बहुत चर्चा में है, धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों को अपनी पसंद के शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और उसका इंतजाम करने का हक़ देता है. यह सांस्कृतिक पहचान के संरक्षण को सुनिश्चित करता है.
अनुच्छेद 31- 32 अनुच्छेद 31- 32, देश के किसी भी नागरिक को यह हक़ देता है कि अगर कोई सरकार या कोई अन्य ताक़त संविधान में मिले उसके अधिकारों को कम करे ये छीने तो वह उसके खिलाफ हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट जा सकता है.