Poetry on Republic Day 2025: यहां हमने उर्दू के कुछ बेहतरीन शायर की शायरी पेश की हैं. ये शायरियां वतनपरस्ती पर हैं. आप भी इन्हें पढ़ें और अपने करीबियों को इसे भेजने के साथ रिपब्लिक डे की मुबारकबाद दें.
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Poetry on Republic Day 2025: आज पूरे देश के लोग 26 जनवरी यानी गणतंत्र दिवस मना रहे हैं. यह भारत का 76वां गणतंत्र दिवस है. यह दिन भारत के लिए बहुत खास है. इसी दिन भारत का संविधान लागू हुआ था. इस दिन कई लोग अपने-अपने तरीके से मनाते हैं. लेकिन एक तरीका ये भी है कि लोग इस दिन एक दूसरे को वतनपरस्ती की शायरी भेजकर मनाते हैं. आज पीएम मोदी ने भी लोगों को मुबारकबाद दी है.
हम अम्न चाहते हैं मगर ज़ुल्म के ख़िलाफ़
गर जंग लाज़मी है तो फिर जंग ही सही
लहू वतन के शहीदों का रंग लाया है
उछल रहा है ज़माने में नाम-ए-आज़ादी
इसी जगह इसी दिन तो हुआ था ये एलान
अँधेरे हार गए ज़िंदाबाद हिन्दोस्तान
दिलों में हुब्ब-ए-वतन है अगर तो एक रहो
निखारना ये चमन है अगर तो एक रहो
वतन की रेत ज़रा एड़ियाँ रगड़ने दे
मुझे यक़ीं है कि पानी यहीं से निकलेगा
ये कह रही है इशारों में गर्दिश-ए-गर्दूं
कि जल्द हम कोई सख़्त इंक़लाब देखेंगे
कहाँ हैं आज वो शम-ए-वतन के परवाने
बने हैं आज हक़ीक़त उन्हीं के अफ़्साने
सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा
हम बुलबुलें हैं इस की ये गुलसिताँ हमारा
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है
वतन के जाँ-निसार हैं वतन के काम आएँगे
हम इस ज़मीं को एक रोज़ आसमाँ बनाएँगे
उस मुल्क की सरहद को कोई छू नहीं सकता
जिस मुल्क की सरहद की निगहबान हैं आँखें
दिल से निकलेगी न मर कर भी वतन की उल्फ़त
मेरी मिट्टी से भी ख़ुशबू-ए-वफ़ा आएगी
वतन की ख़ाक से मर कर भी हम को उन्स बाक़ी है
मज़ा दामान-ए-मादर का है इस मिट्टी के दामन में
वतन की पासबानी जान-ओ-ईमाँ से भी अफ़ज़ल है
मैं अपने मुल्क की ख़ातिर कफ़न भी साथ रखता हूँ