Jamia Millia Islamia: जामिया मिल्लिया इस्लामिया का फाउंडेशन डे मनाया जा रहा है. इस बेहद ख़ास दिन की वजह से जामिया में तीन दिन तक कई तरह के प्रोग्राम्स किए जा रहे हैं. इस मौक़े पर हम आपको मुंशी प्रेमचंद की कहानी 'कफ़न' के जामिया कनेक्शन के बारे में बताने जा रहे हैं. पढ़िए
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Jamia Millia Islamia Foundation Day: देश की राजधानी दिल्ली में मौजूद मशहूर यूनिवर्सिटी जामिया मिल्लिया इस्लामिया में 102 साल मुकम्मल होने पर जश्न मनाया जा रहा है. यूनिवर्सिटी को दुल्हन की तरह सजाया गया है. फाउंडेशन डे के मौक़े पर तीन दिनों तक कई तरह के प्रोग्राम्स किए जा रहे हैं. जामिया यूनिवर्सिटी ने गुज़रे 102 सालों में ना सिर्फ तालीमी मैदान में ख़ुद की पहचान बनाई बल्कि लाखों घरों में तालीम की रोशनी बिखेरी. जामिया के बेहतरीन तालीमी निज़ाम के लिए National Institutional Ranking Framework (NIRF) 2022 की लिस्ट में जामिया मुल्क की तीसरी सबसे बेहतरीन यूनिवर्सिटी के तौर पर क़ाबिज़ हुई.
जामिया मिल्लिया इस्लामिया से कई बड़ी हस्तियों ने तालीम हासिल की है और यह यूनिवर्सिटी कई बड़ी बातों के लिए पहचानी जाती है. जामिया को लेकर मुंशी प्रेमचंद का एक क़िस्सा बहुत मशहूर है कि उन्होंने इसी यूनिवर्सिटी के अंदर रात भर जागकर 'कफ़न' की कहानी लिखी थी. इस ख़बर में हम आपको बताएंगे कि आख़िर ऐसा क्या हुआ था जिसकी वजह से मुंशी प्रेमचंद को रातभर जाग कर 'कफ़न' लिखना पड़ा था.
एक जानकारी के मुताबिक़ मुंशी प्रेमचंद साल 1935 में दिल्ली में आए थे. जामिया मिल्लिया इस्लामिया से प्रेमचंद को बहुत लगाव था. साथ ही यहां पर उनके चाहने वालों की तादाद भी अच्छी ख़ासी थी. जब मुंशी प्रेमचंद जामिया पहुंचे तो उनसे मिलने वालों की क़तार लग गई थी. इसी दौरान उनकी मुलाक़ात डॉ ज़ाकिर हुसैन से हुई थी. इस मुलाक़ात के दौरान डॉ ज़ाकिर हुसैन ने मुंशी प्रेमचंद से एक कहानी लिखने को कहा था. जिसके बाद मुंशी प्रेमचंद ने रात भर जाकर 'कफ़न' की कहानी लिखी थी. अगले दिन जामिया में यह कहानी पढ़ी गई. यह कहानी जामिया के एक रिसाले में दिसंबर 1935 के में भी छपी थी.
मुंशी प्रेमचंद की आख़िरी कहानी है 'कफ़न'
कहा जाता है कि मुंशी प्रेमचंद की यह आख़िरी कहानी थी. 1935 में प्रेमचंद ने यह कहानी लिखी और अगले साल यानी 1936 में इस अज़ीम राइटर ने दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया. प्रेमचंद की यह कहानी ऐसी है कि जिसने भी पढ़ी उसके दिमाग़ में अपना घर बनाती चली गई. कहा जाता है यह उर्दू में लिखी गई थी. इस कहानी को बाद में हिंदी में पेश किया गया था. कुछ जानकारों का मानना है कि इस कहानी का उर्दू वर्जन पढ़ने और हिंदू वर्जन पढ़ने के बाद बहुत कुछ बदला हुआ लगता है.