Explainer: इराक़-ईरान का नया गठजोड़, क्या मीडिल ईस्ट में शिया-सुन्नी के बीच 90 जैसे होंगे हालात?
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Explainer: इराक़-ईरान का नया गठजोड़, क्या मीडिल ईस्ट में शिया-सुन्नी के बीच 90 जैसे होंगे हालात?

Iran-Iraq Diplomatic Relations: इराक़ के पीएम शिया अल सुडानी ईरान के दौरे पर हैं.  इस दौरे का मक़सद दोनों मुल्कों के दो तरफ़ा रिश्तों को मज़बूत बनाना है. लेकिन एक्पर्सट्स का मानना है कि इस दौरे का मकसद कुछ और है. आइए जानते हैं...... 

Explainer: इराक़-ईरान का नया गठजोड़, क्या मीडिल ईस्ट में शिया-सुन्नी के बीच 90 जैसे होंगे हालात?

Iran-Iraq Diplomatic Relations: इराक़ के पीएम शिया अल सुडानी ईरान के दौरे पर हैं. ईरानी प्रेसीडेंट मसूद पेज़ेशकियान और इराक़ी पीएम शिया अल सुडानी ने ज्वाइंट प्रेस कॉन्फ़्रेंस मे बताया कि इस दौरे का मक़सद दोनों मुल्कों के दो तरफ़ा रिश्तों को मज़बूत बनाना है. इस दौरान दोनों नेताओं ने एनर्जी और गैस सप्लाई, रेलवे और हाउसिंग सेक्टर समते कई साझा मुद्दों पर चर्चा की, लेकिन इस दौरे के कई मायने लगाए जा रहे हैं. एक्सपर्टस कहते हैं कि एकबार फिर मिडिल ईस्ट शिया-सुन्नी तनाव के दहाने पर खड़ा है किसी भी वक़्त चिंगारी फूट सकती है और कई मुल्कों को आग की लपेट में ले सकती है. सीरिया की सरहद इराक़ से मिलती है. सीरिया में सुन्नी कट्टरपंथियों की सरकार है और इराक़ में शियों की हुकूमत है.

10 लाख लोगों की मौत
जो ईरान और इराक़ आज एक साथ नज़र आ रहे हैं. उसे लेकर ही 1980 से 1988 तक पूरी दुनिया में शिया-सुन्नी विभाजन के दो मोर्चे बन गए थे. ईरान शिया मुसलमानों की कयादत कर रहा था और सद्दाम सुन्नी मुसलमानों के हीरो बने थे. तक़रीबन 8 साल तक चली इस जंग में 10 लाख लोग मारे गए थे. उस वक़्त इराक़ के तानाशाह सद्दाम हुसैन ने ईरान पर हमला किया था. लोग कहते हैं कि इराक़ ने अमेरिका की शह पर ये हमला किया था.

1980 से 1988 तक ईरान-इराक़ जंग चलती रही, अमेरिका इराक़ के साथ खड़ा रहा और इस जंग ने पूरे ख़ित्ते में अपना असर छोड़ा, दोनों मुल्कों को भारी नुक़सान भी हुआ. अब ईरान को अब इराक़ से कोई ख़तरा नहीं है. अब दोनों साथ हैं, लेकिन हालात वैसे ही हैं जैसे 1980 में थे. किसी भी वक़्त ईरान पर हमला हो सकता है. उसकी न्यूक्लियर साइट को निशाना बनाया जा सकता है. ऐसी ही अटकलें लगाई जा रही हैं.

जब ईरान के राजा रज़ा पहेलवी को मुल्क छोड़ कर भागना पड़ा था 
सद्दाम ने ईरान पर हमला करते हुए दुनिया को बताया था कि इस जंग की वजह शत्ते अरब नहर है जो दोनों मुल्कों के बीच सरहद तय करती है. लेकिन जानकारों का कहना है कि दोनों मुल्कों की जंग दो अलग-अलग मुल्कों और नज़रियों की जंग थी. 1979 में ईरान में आयतुल्लाह रुहुल्लाह ख़ुमैनी की क़यादत में राजशाही का तख़्ता पटल हुआ था. इसे इसे इस्लामिक रेवोल्यूशन का नाम दिया गया था. ईरान के राजा रज़ा पहेलवी को मुल्क छोड़ कर भागना पड़ा था. 

उधर, सद्दाम हुसैन की तानाशाही सरकार में शिया मुसलमानों का दमन हो रहा था. बहुत से बड़े शिया लीडर्स को या तो मार दिया गया था या जेल में डाल दिया गया था. ईरान में इराक़ी शिया मज़हबी रहनुमाओं के बड़ी तादाद में समर्थक भी मौजूद थे, वो सद्दाम के ख़िलाफ़ आवाज़ें उठाते थे.

सद्दाम हुसैन से कहां हुई थी चूक?
सद्दाम ने ईरान के ख़तरे को महसूस कर लिया था. उन्हें लगा कि आयतुल्ला ख़ुमैनी उनके लिए ख़तरा बनें, इससे पहले ईरान पर हमला करके उनकी हुकूमत को उखाड़ दिया जाए. सद्दाम हुसैन ने सोचा था कि ईरान में अभी तख़्ता पलट हुआ है, ईरान में अन स्टैबिलिटी है, और इराक़ी फ़ौज को जीत हासिल करने में उन्हे देर नहीं लगेगी. लेकिन सद्दाम यहां चूक गए, उनका अंदाज़ा ग़लत साबित हुआ. साल 1982 तक ईरानी फ़ौज ने उन इलाक़ों पर दोबारा क़ब्ज़ा कर लिया जिसे इराक़ ने अपने इलाक़े में मिला लिया था. इतना ही नहीं ईरानी फ़ौज इराक़ के काफ़ी अंदर तक घुस गई थीं.

सद्दाम ने केमिकल ने वेपन किया इस्तेमाल
तब इराक़ ने जंगबंदी की पेशकश की थी, लेकिन ईरान ने इंकार कर दिया और जंग जारी रखने का फ़ैसला किया, इस जंग के दौरान ईरान ह्यूमन अटैक की पॉलिसी अपनाई और उसके लोग मारे गए. वहीं सद्दाम ने भी जंग के दौरान केमिकल वेपन का इस्तेमाल किया. जंग लंबी खिंचती चली गई और वेस्टर्न पावर इराक़ के साथ मज़बूती से खड़े रहे. ब्रिटेन, फ्रांस और अमरीका जैसी ताक़तें इराक़ को लगातार हथियारों की सप्लाई करती रहीं और अमेरिका तो सद्दाम हुसैन की हुकूमत के इंटेलीजेंस शेयर भी कर रहा था. 1988 में जब जंगबंदी हुई तो आयतुल्लाह ख़ुमैनी चाहते थे कि जंग किसी ठोस नतीजे से पहले बंद न हो, उन्होंने कहा था कि ये जंगबंदी मेरे लिए ज़हर का प्याला पीने जैसी है.

जंग के बाद खुमैनी का इंतकाल और 1991 में सद्दाम का कुवैत पर हमला
जंग के कुछ दिनों बाद आयतुल्लाह ख़ैुमैनी का इंतेक़ाल हो गया. लेकिन, उधर जंग में क़ुवैत ने इराक़ को दिए अपने क़र्ज़ वापस मांगने का दबाव डाला और इराक़ के तानाशाह सद्दाम हुसैन ने 1991 में कुवैत पर हमला कर दिया, बस इसी हमले के बाद वेस्टर्न पावर सद्दाम के ख़िलाफ़ हो गए. कुवैत पर हमला करने से पहले सद्दाम हुसैन ने कुवैत के सामने अपनी मांगों की एक फेरहिस्त रखी थी. इंटरनैशनल मॉर्केट में तेल की क़ीमत को स्टेबल करना, जंग के दौरान कुवैत से लिए गए कर्ज़े को माफ़ करना और मार्शल प्लान की तरह एक अरब प्लान बनाना जो इराक़ के तामीरे नौ में मदद करे.

3 लाख कुवैत छोड़कर हुए थे फरार
अपनी मांगों और धमकियों के साथ इराक़ ने कुवैत पर हमला कर दिया, महज़ सात घंटे के अंदर इराक़ी फ़ौज ने पूरे कुवैत पर कब्ज़ा कर लिया. सरकार के साथ-साथ कुवैत के तक़रीबन तीन लाख शहरी मुल्क छोड़ कर भाग गए. सद्दाम हुसैन के इस हमले के जवाब अमेरिका ने इराक़ पर हमला कर दिया. इस हमले में बड़े पैमाने पर इराक़ को नुक़सान हुआ. और 6 हफ़्ते तक चली बमबारी के बाद सद्दाम हुसैन ने हार मान ली.

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