Sambhal Mosque History and fact: उत्तर प्रदेश के संभल जिले की जामा मस्जिद को लेकर विवाद पैदा कर दिया गया है. दावा किया गया है कि किसी ज़माने में ये मस्जिद प्राचीन हरिहर मंदिर थी, जहां पर कलियुग में विष्णु के दशावतारों में से एक कल्कि का अवतार होने वाला है. मामला फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में पहुँच गया है. एक मुस्लिम इतिहासकार ने ऐसे दावों को अपनी किताब में ख़ारिज किया है.
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नई दिल्ली: हिंदुस्तान में बाबरी मस्जिद के बाद संभल की जामा मस्जिद पहली मस्जिद नहीं है, जिसपर मंदिर होने का दावा पेश किया गया है; बल्कि इससे पहले वाराणसी की जानवापी मस्जिद, मथुरा की शाही इदगाह, अजमेर में ख़्वाजा की दरगाह, मध्य प्रदेश के धार की मौला मस्जिद, दिल्ली की जामा मस्जिद, लखनऊ की टीले वाली मस्जिद और बदांयू की जामा मस्जिद पर भी मुग़लों के दौर में मंदिर होने के दावे किए जा चुके हैं.
इन मस्जिदों के अलावा भी कई मस्जिदें हैं जिनपर मंदिर होने के दावे हो रहे हैं. उत्तर प्रदेश के संभल जैसे पुरअम्न शहर में सदियों से खड़ी जामा मस्जिद में दूसरे सर्वे के दौरान गुजश्ता 24 नवंबर को हिंसा भड़क उठी और 4 मुस्लिम नौजवान मारे गए. संभल के बुज़ुर्ग बताते हैं कि इस शहर में हालात कभी ऐसे नहीं थे. साल 1976 में मस्जिद के इमाम का किसी गैर- मुस्लिम ने क़त्ल कर दिया था, लेकिन उस वक़्त भी वहां का माहौल ऐसा नहीं था. बस इतना ज़रूर हुआ कि इस हादसे के बाद मस्जिद के मरकज़ी दरवाज़े के पास एक पुलिस चौकी बना दी गई, लेकिन अब यहाँ के हालात बदल चुके हैं.
संभल की सैकड़ो साल पुरानी जामा मस्जिद को लेकर तनाजा पैदा हो गया है. वहां पर मस्जिद के पहले मंदिर होने का दावा कर दिया गया है. सब की अपनी-अपनी दलीले हैं, अपने-अपने हवाले हैं. ऐसे दावों को सच साबित करने के लिए पहले ASI के सर्वे पर भरोसा किया जाता था और उसका हवाला दिया जाता था. लेकिन अब इन दावों को किसी मजहबी किताब या तारीख की किताबों में लिखी तहरीर से सच साबित करने की कोशिश की जा रही है.
मस्जिद के पहले मंदिर होने के नहीं है कोई सुबूत: मुस्लिम इतिहासकार
संभल मस्जिद को लेकर अब्दुल मोईद क़ासमी ने अपनी किताब 'तारीख़े संभल' मे लिखा है कि ये हमेशा से मस्जिद थी. इस मस्जिद के किसी ज़माने में भी मंदिर होने के कहीं कोई सबूत नहीं हैं. ये मस्जिद अगर मंदिर होती तो मंदिर के चारो तरफ़ चक्कर लगाने की जगह होती जो यहां नहीं है. मंदिर की इमारत इस अंदाज़ की चौकोर साइज़ में नहीं होती. मस्जिद का रुख़ पश्चिम तरफ़ है जबकि मंदिर का रुख़ ऐसा नहीं होता. वो ये भी लिखते हैं कि इसे बाबर ने नहीं बल्कि 772 हिजरी यानी 1371 ईस्वी में मुहम्मद बिन तुग़लक़ ने बनवाया था. हां ये ज़रूर है कि बाबर ने 932 हिजरी यानी 1526 ईस्वी में इसकी मरम्मत का काम कराया था. अब्दुल मोईद क़ासमी अपनी किताब 'तारीख़े संभल' के पेज नम्बर 109 पर संभल की तारीख़ पर लिखी गई कई दीगर किताबों के दावों को भी नकारते हैं. उन्होंने लिखा है कि 'अहसनुत तवारीख़', 'तारीख़े अमरोहा', 'इल्मों अमल और संभल' सर्वे जैसी किताबों में भी लिखा है कि ये मस्जिद बाबर ने बनवाई थी, लेकिन वो आगे लिखते हैं कि मस्जिद की बनावट मुग़लिया स्टाइल की नहीं है. बाबर ने महज़ 4 साल हुकूमत की इतने कम सालों में वो कैसे हर शहर में मस्जिद बनवा सकता था.
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इसी मस्जिद के पास होगा कल्कि का अवतार: हिन्दू फरीक
दूसरी तरफ़ हिंदू पक्ष ये दावा कर रहा है कि जामा मस्जिद प्राचीन हरिहर मंदिर थी, जहां पर कलियुग में विष्णु के दशावतारों में से एक कल्कि का अवतार होने वाला है. हिंदू पक्ष का दावा है कि मुगल बादशाह बाबर ने इस मस्जिद को मंदिर तोड़कर बनवाया था. हिंदू पक्ष की तरफ़ से इसके सबूत के तौर पर एएसआई की एक पुरानी रिपोर्ट और बाबरनामा का जिक्र किया जा रहा है. एएसआई की रिपोर्ट 1874–75 की है, जिसे 1879 में तैयार किया गया था. इस रिपोर्ट से हिंदू पक्ष के मस्जिद की जगह पर मंदिर के दावे को काफी सपोर्ट मिलता है. फिलहाल ये मामला निचली अदालत से उठकर सुप्रीम कोर्ट पहुंच चुका है. सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालत के फ़ैसले पर एतराज़ जताया है, और मुस्लिम फ़रीक़ से हाईकोर्ट का रुख़ करने को कहा है, और ये भी हुक्म जारी किया कि जबतक मामला हाईकोर्ट में रहेगा निचली अदालत कोई एक्शन न ले.