कुम्भ से दूर रखे गए मुसलमानों ने भीड़ में फंसे श्रद्धालुओं के लिए खोले मस्जिदों के दरवाज़े
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कुम्भ से दूर रखे गए मुसलमानों ने भीड़ में फंसे श्रद्धालुओं के लिए खोले मस्जिदों के दरवाज़े

Muslims help kumbh Devotees In PrayagraJ: कुम्भ के आयोजन स्थल से इस साल मुसलमानों का आर्थिक बहिष्कार कर उन्हें दूर रखा गया था. लेकिन कुम्भ में मची भगदड़ के हादसे के बाद मुसलमान बहिष्कार की परवाह किये बिना अपने- अपने इलाकों में भीड़ में फंसे श्रद्धलुओं की सेवा के लिए आगे आ गए हैं. वो अपने घर, द्वार और मस्जिदों के दरवाज़े उनके लिए खोल रहे हैं. उनके खाने- पीने और रहने का इंतजाम कर रहे हैं. 

चौक स्थित जामा मस्जिद और खुल्दाबाद मस्जिद में श्रद्धालुओं की भीड़

Muslims help kumbh Devotees In PrayagraJ: कुम्भ के आयोजन से दूर रहने के बावजूद इलाहाबाद के स्थानीय मुसलमान संकट में फंसे श्रृद्धालुओं की मदद करने के लिए अपने घरों से निकलकर सड़कों पर उतर चुके हैं. उनके लिए भोजन, पानी, कपड़ा, दवा, और आश्रय का इंतज़ाम करने में जुट गए हैं. वो उनके लिए अपने घर, मस्जिदों और दिल के दरवाज़े खोल रहे हैं.  इलाहाबाद से कई ऐसे कई विडियोज और तस्वीरें सामने आ रही है, जो इस बात की गवाही दे रहे हैं कि हमारी जड़ें कितनी गहरी है. कोई नेता या संत सियासत तो कर सकता है, लेकिन लोगों के दिलों को आपस में बाँट नहीं सकता है.    

कुम्भ के आयोजन पर फख्र करता है स्थानीय मुसलमान 
दरअसल, इलाहाबाद का मुसलमान हमेशा से कुम्भ को एक सामूहिक सामाजिक-धार्मिक आयोजन और पर्व की तरह देखता रहा है. वह बड़ी बेसब्री से इस आयोजन का इंतज़ार करता था. इससे जहाँ उसे एक तरफ रोजगार मिलता था, वहीँ देश-दुनिया से आये अकीदतमंदों की खिदमत करने का उन्हें मौका मिलता था.  कुम्भ की महिमा की वजह से उन्हें खुद को इलाहाबादी कहलाने और होने का फख्र होता था वो अलग, लेकिन इस साल के कुम्भ से उन्होंने खुद को अलग कर लिया था. या सीधे तौर पर कहें तो उन्हें अलग कर दिया गया था.  बाहर से गए तमाम नकली, फर्जी और नफरती टाइप साधू-संतों ने कुम्भ के मुसलमानों के बहिष्कार का सार्वजनिक तौर पर ऐलान किया. यहाँ तक कि चोरी-छिपे दुकान लगाने वाले कुछ मुस्लिम दुकानदारों की पिटाई भी की गयी. सरकार ने बाबाओं के इन ऐलानों पर कोई एक्शन लेना तो दूर कोई सफाई देना भी ज़रूरी नहीं समझा! बाबाओं के इस ऐलान से मुसलमानों के आर्थिक बहिष्कार का मकसद भी पूरा हो रहा था, शायद सरकार इसलिए भी मौन रही!    

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अकीदतमंदों का अंग वस्त्र देकर स्वागत करते हुए स्थानीय मुस्लिम 

हादसे के बाद खुद को रोक नहीं पाए मुसलमान 
लेकिन कुम्भ में मौनी अमावस्या के दिन श्रद्धालुओं की भीड़ की वजह से हुई भगदड़ की घटना के बाद इलाके के मुसलमान बाबाओं के फरमान को खारिज करते हुए  परेशान हाल श्रद्धालुओं की मदद करने के लिए आगे आ चुके हैं. मुसलमान श्रद्धालुओं के लिए अपने घर- दरवाज़े, स्कूल, कॉलेज जैसे सार्वजनिक स्थान और यहाँ तक कि मस्जिदों के दरवाजें भी खोल दिए हैं. उनके खाने- पीने का इंतज़ाम कर रहे हैं. सर्दी में उनके लिए कम्बल मुहैया करा रहे हैं. चौक स्थित जामा मस्जिद और खुल्दाबाद स्थिति मस्जिद में भी श्रद्धालुओं को शरण दिया गया है. इलाके के मुस्लिम नौजवान उनके लिए भंडारा चला रहे हैं. उनकी ज़रूरतों का ख्याल रख रहे हैं. बाइक सवार लड़के अकीदतमंदों को लिफ्ट देकर उन्हें सहारा दे रहे हैं. मुस्लिम डॉक्टर उनकी सेवा कर रहे हैं. मुस्लिम डॉक्टर नाज फातिमा ने घायल श्रद्धालुओं के लिए अपना क्लिनिक समर्पित कर दिया है. उनके काम की लोग तारीफ कर रहे हैं. कुछ मुस्लिम बस्तियों से गुजरने वाले श्रद्धालुओं पर लोग पुष्प वर्षा भी करते देखे गए हैं. नमाज़ियों ने श्रद्धालुओं को पुष्प और रामनामी अंगवस्त्र देकर स्वागत किया. 

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यादगारे हुसैनी इंटर कॉलेज में आराम करते अकीदतमंद 

मुस्लिम इलाकों से नहीं बना इस बार कुम्भ का रास्ता 
इलाहाबाद के ब्लॉगर और कारोबारी मोहम्मद जाहिद ने लिखा है, " इस बार कुंभ मेले का डाइवर्जन इस तरह किया गया है कि मुस्लिम क्षेत्रों से श्रृद्धालुओं का आवागमन न हो सके. अटाला, नुरुल्लाह रोड जैसे मुस्लिम बहुल इलाकों से इस बार श्रृद्धालुओं का आवागमन न के बराबर हो रहा है. इस साल स्थानीय ड्राईवर, ऑटो चालक, मज़दूर, प्लंबर, इलेक्ट्रीशियन, फिटर और बढ़ई आदि को भी काम नहीं दिया गया. इलाहाबाद में 90% रिक्शा वाले बिहार, झारखंड, आसाम आदि जगहों से आए हुए मुसलमान हैं, जिन्हें इस बार कुम्भ से अलग कर दिया गया. इसका असर यह हुआ कि इलाहाबाद स्टेशन या अन्य जगहों से संगम तक यातायात में श्रृद्धालुओं के साथ किराए के नाम पर खूब लूट हुई. 5 किमी के लिए उनसे हज़ार से दो हज़ार रूपए लिए गए‌, जिनके पास पैसे नहीं थे वह 10-15 किमी पैदल चलने को मजबूर हुए." जाहिद ने लिखा, " 2019 के कुंभ में इलाहाबाद के सारे मुसलमान बैटरी रिक्शा वाले, आटो वाले सभी श्रद्धालुओं को संगम तट तक पहुंचाते थे. यह सेवा 24X7 थी. प्रशासन ने उनका पंजीकरण किया था और उन्हें प्रतिदिन के हिसाब से खर्च भी दिया था. 

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इलाहाबाद की जामा मस्जिद में अकीदतमंद और उन्हें खाने का सामान देते मस्जिद के मौलाना  

संत आयेंगे चले जाएंगे, स्थानीय मुसलमान हमेशा यहीं रहेंगे 
मोहम्मद जाहिद ने लिखा है, "हर साल ऐसा नहीं होता था. श्रृद्धालु मुस्लिम इलाके से पैदल आते-जाते रहे हैं. इलाहाबादी मुसलमान उनके लिए अपने स्तर से व्यवस्था करते रहे हैं. तमाम स्कूल कालेज जैसी जगहों पर उनके रहने खाने की व्यवस्था करते थे. सक्षम मुसलमान अपने इलाके से गुजरने वाले रास्तों पर श्रृद्धालुओं के लिए भंडारा कराते थे. उनके रहने और रात्रि विश्राम का प्रबंध कराते थे. लेकिन इस बार उन्हें पूरे आयोजन से अलग-थलग कर दिया गया. मुसलमानों को इस बात का दुःख है कि उनके घर में घुस कर बाहर से आये नकली साधू- संत कुम्भ से मुसलमानों के बहिष्कार का ऐलान कर रहे हैं.."  

जाहिद ने लिखा, " हादसे के बाद से मुसलमानों की शिकायत खत्म हो गयी है. वो फिर से अपने इलाके में श्रृद्धालुओं की सेवा के लिए सड़कों पर उतर चुके हैं. उन्हें इलाहाबाद का  मेहमान मानते हुए उनकी सेवा में जुट गए हैं. कोई बाहर से आया यूट्यूबर बाबा हमें कुंभ से दूर नहीं कर पाएंगे. वो आएंगे और चले जाएंगे. हम हमेशा यहीं रहेंगे. गंगा का पानी पिएंगे, उसी में नहाएंगे और मरने के बाद इसी पावन भूमि में दफ्न हो जायेंगे." 
 

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