यूपी का मदरसा एक्ट संवैधानिक या असंवैधानिक, सुनवाई पूरी; सुप्रीम कोर्ट सुनाएगी फैसला
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यूपी का मदरसा एक्ट संवैधानिक या असंवैधानिक, सुनवाई पूरी; सुप्रीम कोर्ट सुनाएगी फैसला

Madrasa Act: 22 मार्च को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने इस एक्ट को असंवैधानिक घोषित करते हुए आदेश दिया था कि राज्य सरकार सभी मदरसा छात्रों का दाखिला सामान्य स्कूलों में कराए. इस बीच सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई है.

यूपी का मदरसा एक्ट संवैधानिक या असंवैधानिक, सुनवाई पूरी; सुप्रीम कोर्ट सुनाएगी फैसला

Madrasa Act: यूपी मदरसा एक्ट को असंवैधानिक घोषित करने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई पूरी कर ली है और फैसला सुरक्षित रख लिया है. मुलायम सिंह के मुख्यमंत्री रहते राज्य सरकार ने यह कानून पारित किया था.

सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के किया बड़ा सवाल
इस मामले में उत्तर प्रदेश सरकार ने अपना पक्ष रखा. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कुछ अहम टिप्पणियां भी कीं. सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस ने यूपी सरकार से पूछा कि क्या मदरसे का कोई स्टूडेंट्स नीट परीक्षा में शामिल हो सकता है. इस सवाल का जवाब देते हुए यूपी सरकार के वकील ने कहा कि इसके लिए छात्रों को फिजिक्स, केमिस्ट्री, बायोलॉजी (पीसीबी) में पास होना जरूरी है.

यूपी सरकार के वकील ने क्या कहा?
यूपी सरकार के वकील एएसजी के एम नटराजन ने कहा कि यूपी मदरसा एक्ट को पूरी तरह से निरस्त करना गलत होगा. यह विधायी शक्ति का मामला नहीं है, बल्कि मौलिक अधिकारों के हनन का मामला है, जिसके लिए पूरे कानून को निरस्त करने की जरूरत नहीं है. उत्तर प्रदेश सरकार ने कहा कि एक्ट के सिर्फ उन्हीं प्रावधानों की जांच होनी चाहिए, जो मौलिक अधिकारों का हनन करते हैं. सरकारी आदेश के तहत मदरसा स्कूलों को दूसरे स्कूलों के बराबर माना गया है.

क्या है पूरा मामला
दरअसल, 22 मार्च को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने इस एक्ट को असंवैधानिक घोषित करते हुए आदेश दिया था कि राज्य सरकार सभी मदरसा छात्रों का दाखिला सामान्य स्कूलों में कराए. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने 5 अप्रैल को इस आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी थी. इस बीच एनसीपीसीआर ने भी लिखित दलीलों में मदरसा शिक्षा को बच्चों के हित के खिलाफ बताया है. 

उत्तर प्रदेश सरकार ने हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती नहीं दी है. हालांकि यूपी सरकार का कहना है कि मदरसा एक्ट को पूरी तरह रद्द करने का फैसला सही नहीं था. इसके सिर्फ उन्हीं प्रावधानों की समीक्षा की जा सकती है, जो मौलिक अधिकारों के खिलाफ जाते हैं. इसके लिए एक्ट में जरूरी बदलाव किए जा सकते हैं.

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