पक्षियों से बात करते थे पक्षी वैज्ञानिक सलीम अली, जानें बर्डमैन के बारे में सब कुछ
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पक्षियों से बात करते थे पक्षी वैज्ञानिक सलीम अली, जानें बर्डमैन के बारे में सब कुछ

डाक्टर सलीम अली अब तक के सबसे महान पक्षी विज्ञानी और प्रकृतिवादियों में से एक हैं. इन्हें पूरी दुनिया में "बर्डमैन ऑफ़ इंडिया" के रूप में भी जाना जाता है. सालिम अली भारत और विदेशों में व्यवस्थित पक्षी सर्वेक्षण करने वाले पहले वैज्ञानिकों में से एक थे.

पक्षियों से बात करते थे पक्षी वैज्ञानिक सलीम अली, जानें बर्डमैन के बारे में सब कुछ

डॉक्टर सलीम अली जिन्हें पूरी दुनिया बर्डमैन आॉफ इंडिया के नाम से जानती है, महान पक्षी विज्ञानी और प्रकृतिवादियों में से एक थे. सलीम अली के बारे में एक कहानी बहुत प्रचलित है कि जब सालिम 10 साल के थे तब उन्होंने एक उड़ते हुए पंछी को मार गिराया. छोटी उम्र के सलीम अली ने फिर तुरंत दौड़ कर उसे उठा लिया. वो पंछी एक घरेलू गौरैया की तरह दिखाई दे रहा था. लेकिन उसके गले पर एक अजीब सा पीला धब्बा था. मन से जिज्ञासु प्रवृत्ति के सलीम अली ने गौरैया को अपने मामा को दिखाया और उनसे पंछी के बारे में पूछा. मामा  को इस पंछी के बारे में नहीं पता था, इसलिए वो जवाब नहीं दे सके और फिर सलीम अली के मामा ने उन्हें बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी के मानद सचिव डब्ल्यू.एस. मिलार्ड के पास भेज दिया. सालिम से मिल कर मिलार्ड ने उन्हें उस पक्षी की पहचान सोनकंठी गौरैया के रूप में बताई. मिलार्ड ने सालिम को और भी कई पक्षी दिखाए. इसके बाद सलीम अली अक्सर मिलार्ड के पास जाते रहे. एक दिन मिलार्ड ने सालिम अली को ‘कॉमन बर्ड्स ऑफ मुंबई’ नाम की एक किताब दी. इसका जिक्र सालिम अली ने अपनी आॉटोबायोग्राफी में ‘द फॉल ऑफ ए स्पैरो’ में भी किया है. सालीम ने इस घटना को अपनी जिन्दगी का टर्निंग प्वाइंट माना है. इस किताब को पढ़ने के बाद से ही सलीम ने पक्षियों के अध्ययन को ही अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया था.

सलीम का बचपन
डाक्टर सलीम अली का पूरा नाम सलीम मोइनुद्दीन अब्दुल अली था. सलीम का जन्म 12 नवंबर 1896 को मुम्बई के एक मुस्लिम परिवार में हुआ था. इनके परिवार के तालुक्कात मशहूर तैयबजी परिवार से था. तैयबजी वही परिवार है जिसने इस देश की आजादी व तरक्की में बहुत बड़ा योगदान दिया है. सलीम के मामू इस्माइल तैयबजी महात्मा गांधी के करीबी सहयोगीयों में से एक थे. जब सालिम 1 साल के थे तब उनके पिता की मृत्यु हो गई थी जबकि सलीम 3 साल के थे जब उनकी मां का देहांत हो गया था. चाची हमीदा बेगम और मामू अमीरुद्दीन तैयबजी ने इस नन्हे बच्चे को पाला-पोषा. इनकी परवरिश मुंबई में हुई थी.

सलीम अली ने कॉलेज तक की पढ़ाई पूरी होने के बाद टंगस्टन खनन और लकड़ी में अपने भाई की मदद करने के लिए, बर्मा (म्यांमार) चले गए. उस समय बर्मा में डॉक्टर सालिम की रुचि के हिसाब से उन्हें घने जंगल मिल गए. सलीम को वहां तरह-तरह के परिन्दे देखने को मिल रहे थे. इसके बाद सालिम ने अपना ज्यादातर समय पक्षियों की तलाश और उनकी पढ़ाई में बिताया. इसके बाद जल्दी ही वो भारत वापस आए और बंबई के सेंट जेवियर्स कॉलेज से जूलॉजी में डिग्री पूरी की.

इसके बाद 1918 में उन्होंने बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी के संग्रहालय में गाइड के तौर पर काम किया. इसके बाद सलीम जर्मनी गए और वहां विश्व प्रसिद्ध पक्षी विज्ञानी डॉक्टर इरविन स्ट्रैसमैन से मुलाकात की. इसके बाद वे ‘बर्लिन विश्वविद्यालय’ में डॉक्टर इरविन स्ट्रैसमैन के अधीन, अध्ययन किया. 1930 में बुनकर पक्षी की प्रकृति और गतिविधियों पर चर्चा करते हुए एक रिसर्च पेपर छापा. इस पेपर ने उन्हें पूरी दुनिया में मशहूर कर दिया और फिर पक्षीविज्ञान के क्षेत्र में सलीम को नाम मिल गया.

सालिम की लिखी किताबें
सालिम ने अपने ज्ञान को किताब के तौर पर सहेजा और 1941 में "भारतीय पक्षियों की पुस्तक" प्रकाशित की. इस किताब में उन्होंने भारतीय पक्षियों की प्रजातियों और उनकी आदतों के बारे में बात की थी. सालिम की ये किताब कई सालों तक खूब बिकी.  विश्व प्रसिद्ध पक्षी विज्ञानी एस. डिलन रिप्ले के साथ मिल कर सालिम ने 'हैंडबुक ऑफ़ द बर्ड्स ऑफ़ इंडिया एंड पाकिस्तान' (10 वॉल्यूम सेट) प्रकाशित की, इस किताब में 1964 से लेकर 1974 तक पूरे दस साल के कार्य को कवर कर के उपमहाद्वीप के पक्षियों, उनकी उपस्थिति, आवास, प्रजनन की आदतों, प्रवास आदि से जुड़ी जानकारी थी. इसके अलावा सलीम ने रीजनल फील्ड गाइड, "कॉमन बर्ड्स" (1967) और 1985 में अपनी ऑटोबायोग्राफी "द फॉल ऑफ स्पैरो" समेत कई किताबें लिखी.

सलीम की उपलब्धियां
सालिम ने "साइलेंट वैली नेशनल पार्क" को बर्बादी से बचाने में एक अहम किरदार निभाया था. आज़ादी के बाद सलीम ‘बांबे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी’ के प्रमुख लोगों में से एक रहे. उन्होंने भरतपुर पक्षी विहार की स्थापना में अहम भूमिका निभाई थी. इसके अलावा कुमाऊं के तराई क्षेत्र से उन्होंने बया की एक ऐसी प्रजाति ढूंढ़ निकाली जो भारत में लुप्त घोषित हो चुकी थी. चिडि़यों को बिना घायल किए उन्हें पकड़ने की प्रसिद्ध ‘गोंग एंड फायर’ व ‘डेक्कन विधि’ सलीम की ही खोज थी. सालिम अली की कोशिशों के बदौलत ही भरतपुर का केवलादेव नेशनल पार्क अस्तित्व में है.

सालिम अली के नाम पुरस्कार
सालिम अली ने अपनी जिंदगी के 65 साल पक्षियों के पीछे गुजार दिए. जिस कारण डाक्टर सलीम अली को परिंदों का चलता फिरता विश्वकोष कहा जाने लगा था. डाक्टर सालिम अली ने न केवल पक्षियों पर रिसर्च किया बल्कि प्रकृति संरक्षण के क्षेत्र में भी अहम भूमिका निभाई. उनके असाधारण प्रयासों के लिए, उन्हें उस वक्त 5 लाख का अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार भी दिया गया था, लेकिन उन्होंने सारा पैसा बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी को दान कर दिया. भारत सरकार की ओर से सलीम को 1958 में पद्म भूषण और 1976 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया था.

परिन्दों की दुनिया में सालिम की शोहरत ऐसी है कि लोग उन्हें पक्षियों का चलता फिरता इनसाइक्लोपीडिया कहते थे. सालिम पक्षियों की आवाज से उसकी प्रजाति बताने का हुनर रखते थे. सालिम को पूरी दुनिया का सबसे बड़ा पक्षी वैज्ञानिक माना जाता है. भारत हर साल हर साल 12 नवंबर यानि उनके जन्मदिन पर राष्ट्रीय पक्षी दिवस मनाता है. इस महान पक्षी वैज्ञानिक की मौत 20 जून 1987 को 90 वर्ष की आयु में कैंसर जैसी गंभीर बिमारी से हुई थी. दुनिया से जाने के बाद भी सलीम आज इंडिया के बर्डमैन के रुप में जाने जाते हैं.

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