नई दिल्ली: हाल ही में वैज्ञानिकों ने निएंडरथल में डाउन सिंड्रोम का पहला मामला खोज निकालने का दावा किया है. टीम ने 6 साल की एक बच्ची के छोटे से खोपड़ी के टुकड़े का विश्लेषण किया. 1450,000 साल से पहले जीवित इस लड़की का नाम टीम ने 'टीना' रखा है. वैज्ञानिकों के मुताबिक टीना के जीवाश्म में बच्चों में होने वाले जेनेटिक डिसऑर्डर के जैसे ही समानता थी.
निएंडरथल में मिला डाउन सिंड्रोम का मामला
' डेली मेल' की एक रिपोर्ट के मुताबिक विश्लेषण से पता चलता है कि टीना के कान के अंदर वाले हिस्से में जन्म से ही कोई परेशानी थी, जो एक तरह का जेनेटिक डिसऑर्डर था. इससे टीना को सुनाई न दे पाने वाली कोई गंभीर परेशानी और चक्कर आने की समस्या होती थी. वैज्ञानिकों का मानना है कि निएंडरथल अपने बच्चों और समाज के कमजोर लोगों की काफी अच्छे से देखभाल करते थे क्योंकि ये बच्चा जन्म के समय के बाद भी काफी समय तक जीवित रहा था.
स्टडी का फायदा
स्पेन की अल्काला यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर और रिसर्च की प्रमुख लेखिका डॉक्टर मर्सिडीज कोंडे वाल्वेर्दे ने 'डेली मेल' के साथ अपनी बातचीत में कहा,' अब तक प्राचीन DNA के जरिए ही जीवाश्म के सैंपल में डाउन सिंड्रोम का निदान करना संभव था. इस खोज से जीवाश्म के सैंपलों में डाउन सिंड्रोम की संभावित उपस्थिति की स्टडी करने के लिए रास्ते खुल गए हैं'
ऐसे लगाया पता
बता दें कि वैज्ञानिकों की टीम को यह खोपड़ी स्पेन की एक गुफा कोवा नेग्रा में मिली थी. इसकी खुदाई साल 1929 से 2017 तक की गई थी. शोधकर्ताओं ने टीना के जीवाश्म पर माइक्रो कंप्यूटेड टोमोग्राफी का इस्तेमाल किया. यह एक 3D इमेजिंग टेक्नीक है, जिसमें किसी वस्तु के अंदर टुकड़े-टुकड़े करके देखने के लिए X-Ray का इस्तेमाल किया जाता है. विश्लेषण से पता चला कि टीना के जीवाश्म में स्वास्थय संबंधी परेशानियां थीं, जिसमें एक छोटा कोक्लीया और सबसे छोटी कान की नली में कुछ असामानताएं थी, जो सुनने की क्षमता में कमी और गंभीर चक्कर आने के कारण हो सकती हैं.
Disclaimer: यहां दी गई जानकारी रिसर्च पर आधारित है, लेकिन Zee Bharat इसकी पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.
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