नई दिल्ली: नाथूराम गोडसे का नाम सुनते ही हम सभी के जहन में अलग-अलग तरह के विचार आने लगते हैं. एक शख्स जिसने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या की, वो समाज के कई लोगों के लिए विलेन बन गया तो वहीं, कुछ लोग भी हैं जिन्होंने उनका समर्थन किया. नाथूराम गोडसे के नाम पर पूरा देश दो गुटों में बंटा हुआ दिखता है. बापू की हत्या के दोषी पाए जाने पर नाथूराम गोडसे को फांसी की सजा सुनाई गई. हालांकि, गांधी जी के ही बेटों ने उनकी फांसी को रुकवाने की मांग उठाई. ये बात सुनकर आप में से बहुत सारे यकीन ही नहीं कर पाएंगे. ऐसे में चलिए आज इसी मामले के बारे में जानने की कोशिश करते हैं.
आजादी के 5 महीने बाद ही कर दी थी हत्या
15 अगस्त 1947 को देश को आजाद मिली और इसके लगभग 5 ही महीने के बाद 30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी की गोलीमार हत्या कर दी. उस समय गांधी जी दिल्ली के बिड़ला हाउस में थे. नाथूराम गोडसे ने सबसे पहले वहां बापू को प्रणाम किया और फिर उनकी ओर बढ़े. उन्हें आगे आते देख गांधी जी के साथ में खड़ीं मनु बेन ने गोडसे को रोकने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने पिस्टल निकालकर एक के बाद एक तीन गोलियां गांधी जी के सीने में उतार दीं.
10 फरवरी, 1949 को सुनाया गया फैसला
गोडसे ने जैसे ही गांधी पर गोलियां चलाई उन्हें तुरंत हिरासत में ले लिया गया. इसके बाद उन पर मुकदमा चला. ये मुकदमा लाल किले में बनाई गई एक विशेष अदालत में चला, जिस पर 10 फरवरी, 1949 को फैसला सुनाया गया. इस मामले में कुल 8 आरोपी पाए गए, जिनमें से 7 लोगों को सजा मिली. हालांकि, इस केस में जिस एक आरोपी के नाम से हैरान किया, वो था वीर सावरकर का नाम. हालांकि, उनके खिलाफ पुख्ता सबूत न होने की वजह से उन्हें बरी कर दिया गया. वहीं, गोडसे और नारायण आप्टे को फांसी की सजा दी गई.
हत्या ने उड़ा दिए थे होश
इनके अलावा इस केस में दोषी पाए गए डॉक्टर परचुरे, विष्णु करकरे, गोपाल गोडसे, मदनलाल, और दिगंबर बड़गे के नौकर को उम्र कैद की सजा सुनाई गई. उधर, दिगंबर बड़गे सरकारी गवाह बन गया. गोडसे के इस कदम ने पूरे देश को हैरान कर दिया था. किसी सोचा भी नहीं था कि जो नाथूराम गोडसे पूरे स्वंतत्रता संग्राम में महात्मा गांधी के आदर्शों पर चलते रहे वो ही उनकी गोली मारकर हत्या कर देंगे. हर कोई जानना चाहता था कि आखिर क्यों अचानक ये सब हुआ. बताया जाता है कि नाथूराम गोडसे के आखिरी शब्द थे 'अखंड भारत', जिसका अर्थ यह निकाला गया कि गोडसे ने गांधी जी को बंटवारे का दोषी माना था.
गांधी जी के बेटों ने की थी मांग
इस पूरे मामले में दिलचस्प बात यह सामने आई कि देशभर से कई लोग गोडसे की फांसी का विरोध कर रहे थे. इनमें गांधी जी के बेटों का नाम भी शामिल था. बताया जाता है कि उन दिनों गांधी जी के बेटों मणिलाल और रामदास ने तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से गोडसे फांसी की सजा माफ करने का निवेदन किया था. उनका कहना था कि उनके पिता मृत्युदंड के खिलाफ थे, इसलिए गोडसे और आप्टे को फांसी नहीं द जानी चाहिए, बल्कि उन्हें माफ किय जाए, लेकिन उनकी अपील को ठुकरा दिया गया.
एक सप्ताह तक टली थी फांसी
हालाँकि मणिलाल और रामदास के इस निवेदन पर एक सप्ताह तक विचार-विमर्श किया गया. तब तक के लिए गोडसे और आप्टे की फांसी की सजा की तारीख भी टाल दी गई. इस बात का जिक्र ब्रिटिश लेखक रॉबर्ट पेन ने अपनी फेमस किताब 'द लाइफ एंड डेथ ऑफ महात्मा गांधी' में किया गया है.
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