नई दिल्ली: MP Oath: देश में 18वीं लोकसभा का पहला संसद सत्र शुरू हो गया है. प्रोटेम स्पीकर भर्तुहरी महताब नवनिर्वाचित सांसदों को शपथ दिला रहे हैं. करीब 540 सांसदों को शपथ दिलाई जाएगी. आइए, जानते हैं कि सांसदों का शपथ लेना क्यों आवश्यक है और इसका उल्लंघन होने पर क्या होता है?
राजशाही के दौरान भी ली जाती थी शपथ
शपथ लेने की परंपरा काफी पुरानी है. राजशाही के दौरान शासक का राज्यभिषेक होता था, तब उसे भी शपथ दिलाई जाती थी. रामायण और महाभारत जैसे महाकाव्यों में भी शपथ का जिक्र है. तब ईश्वर या प्रकृति को साक्षी मानकर शपथ ली जाती थी. इसके बाद जब अंग्रेजों ने भारत पर शासन किया, तब भी ये परंपरा जारी रही. 1873 में अंग्रेजों ने इंडियन कोर्ट एक्ट लागू किया, इसमें धार्मिक ग्रंथों या पुस्तकों को साक्षी मानकर शपथ दिलाई जाने लगी.
ड्राफ्टिंग कमेटी ने बदलाव क्या किया
आजादी के बाद बनी संविधान की ड्राफ्टिंग कमेटी ने संविधान के मसौदे में ईश्वर को साक्षी मानकर ली जाने वाली शपथ को जगह नहीं दी. बल्कि संविधान को साक्षी मानकर ली जाने वाली शपथ को एड किया. लेकिन संविधान सभा के सदस्य केटी शाह के अनुरोध पर बी.आर आंबेडकर ने संशोधन किया. बाद में कोर्ट ने भी ईश्वर के नाम पर ही शपथ की प्रक्रिया शुरू की.
पहले कौन लेता है शपथ?
संसद में कौनसा सांसद पहले शपथ लेगा, इसका फैसला राज्य के पहले अक्षर से होता है. मसलन, 'अ' से शुरू होने वाले राज्य के सांसद पहले शपथ लेते हैं. हालांकि, कई बार इसमें अपवाद भी देखने को मिलता है.
कोई शपथ न ले तो?
संविधान के अनुच्छेद 99 के अनुसार, सभी सांसदों को शपथ लेनी पड़ती है. यदि कोई सांसद शपथ नहीं लेता तो वह सरकारी कामकाज में भाग नहीं ले सकता. न तो उसे संसद में बैठने के लिए सीट दी जाती है, न ही अपनी और अपने क्षेत्र की बात रखने का अवसर मिलता है. ऐसे व्यक्ति को सांसद को मिलने वाली सुविधाएं और वेतन भी नहीं मिलता.
शपथ के उल्लंघन पर क्या होगा?
यदि कोई सांसद अपने पद से जुड़ी गोपनीयता भंग करता है तो उसे हटाने के लिए महाभियोग लाया जाता है. ऐसे शख्स पर आपराधिक मुकदमा दर्ज नहीं होता, यदि गबन का मामला न हो तो. अन्यथा आपराधिक केस दर्ज किया जा सकता है. यदि कोई भारतीय नागरिक नहीं है और फिर भी वह शपथ ले लेता है तो उस सांसद की सदस्यता रद्द हो जाती है. किसी अदालत ने सांसद को दिवालिया या विकृतचित घोषित किया हो, तब भी संसद सदस्यता छोड़नी पड़ती है.
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