Iran Hijab protest: ईरान में हिजाब (Hijab) को लेकर विवाद बहुत पुराना है. वहां सालों से अचानक हिजाब विरोधी प्रदर्शन होने लगते हैं. महिलाएं और छात्राएं बड़ी तादाद में आंदोलन लीड करती हैं. अहौ दारियाई, मेहसा अमीनी, मसीह अलीनेजाद और निका शाकर्रामी जैसे कई नाम हिजाब विरोधी आंदोलन की पहचान बनें. अब बांग्लादेश भी ईरान की दिखाई राह पर चल पड़ा है.
Trending Photos
Iran Hijab case: जब दुनियाभर में महिला अधिकारों और महिलाओं की आजादी के लिए नए-नए कदम उठाए जा रहे हैं. तब कुछ देश अपने एजेंडे को धार देने के लिए हिजाब के नाम पर महिलाओं के हक की बलि देने पर आमादा है. इस कड़ी में बांग्लादेश भी तालिबान और ईरान के नक्शेकदम पर चल पड़ा है. अचानक ये खबर इसलिए सुर्खियों में आ गई क्योंकि ईरान की एक महिला ने हिजाब को लेकर हो रही मॉरल पुलिसिंग के विरोध में सारे कपड़े उतारकर न्यूड प्रोटेस्ट किया. इसके बाद दुनियाभर के लोग दुआ करने लगे कि उसकी हालत मेहसा अमीनी जैसी न हो जाए.
ईरान में न्यूड प्रोटेस्ट
ईरान में महिलाएं बिना हिजाब के घर से बाहर निकल जाएं तो हंगामा मच जाता है. वहां सरकारी आदेश के विरोध में सैकड़ों लड़कियां बिना हिजाब वेस्टर्न ड्रेस में थिरकती नजर आईं तो बवाल मचना लाजिमी था. जी हां सही पढ़ा आपने बात उसी ईरान की जहां हिजाब को लेकर बना कानून तोड़ने पर कड़ी सजा मिलती है. हांलाकि ईरान में हवा बदल रही है. बीते कुछ दशकों से कॉलेज की छात्राएं, कामकाजी युवितियां और घर की दीवारों के दायरे में रहने वाली महिलाएं अचानक हिजाब कानूनों का विरोध कर रही हैं.
ईरान में हिजाब विरोध का ऐसा ही एक और वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल है. फोर्सफुल हिजाब के सरकारी आदेश के विरोध में एक महिला कपड़े उतारकर पुलिस वैन पर चढ़ गई और जमकर हंगामा किया.
ईरान की राह पर बांग्लादेश!
ईरान में हिजाब विरोध की चिंगारी 2022 में तब भड़की. जब हिजाब ना पहनने को लेकर महसा अमीनी नाम की लड़की को पुलिस ने हिरासत में लिया और मारपीट की. जिससे महसा की मौत हो गई. इसी से गुस्साई ईरानी महिलाओं ने हिजाब के खिलाफ आंदोलन छेड़ दिया. पूरी दुनिया में ईरान उन देशों में सबसे ऊपर है. जहां महिलाओं पर सबसे ज्यादा प्रतिबंध लागू हैं लेकिन उसी ईरान में महिलाएं अपने अधिकारों के लिए आवाज बुलंद कर रही है. जबकि बांग्लादेश में ठीक उल्टा हो रहा है.
मुंह पर नकाब, माथे पर पट्टी और हाथों में हिजाब के समर्थन वाले पोस्टरों के साथ हाल ही में एक रैली बांग्लादेश में निकाली गई. ये उस बांग्लादेश में हुआ जिसकी गिनती ऐसे मुस्लिम देश के रूप में होती है, जिसने बीते 20 सालों में महिलाओं का जीवन बेहतर बनाने में जबरदस्त तरक्की की लेकिन हिजाब के समर्थन में निकली ये रैली बता रही है कि इस मुल्क में अब कट्टरपंथ का जहर घुल चुका है.
मोहम्मद यूनुस को जब से बांग्लादेशी सत्ता की चाबी मिली है. ढाका कट्टरपंथियों की राजधानी में तब्दील हो गया है. मुल्क पर रूढिवादी सोच के कसते शिकंजे को ढाका यूनिवर्सिटी में हिजाब के समर्थन वाली ये रैली बयां कर रही है.
तसलीमा नसरीन ने जताई चिंता
यानी एक तरफ जहां ईरान जैसे कट्टरपंथी मुल्क में हिजाब के खिलाफ महिलाएं मुखर हो रही हैं तो वहीं दूसरी ओर बांग्लादेश में वही कट्टरपंथी सोच अपनी जड़ें मजबूत कर रही है..यानि ईरान में जहां महिलाएं कट्टरपंथ की बेड़ियां तोड़ने में जुटी हैं तो वहीं बांग्लादेश में उल्टी गंगा बह रही है. लिहाजा इसे लेकर एक नई बहस छिड़ गई है.
बांग्लादेशी लेखिका तसलीमा नसरीन ने अपने देश की कट्टरपंथी सोच पर प्रहार किया है.हिजाब के समर्थन में निकाली गई रैली को उन्होंने शर्मनाक बताया. उन्होंने कहा, 'एक समय था जब ढाका विश्वविद्यालय महिला मुक्ति का गढ़ था.आज यह मदरसों से आए अज्ञानी, मजहबी रूप से ब्रेनवाश की गयी जोम्बीज़ से भरा पड़ा है. ईरान बांग्लादेश से बहुत दूर नहीं है.क्या ये महिलाएं ये नहीं जानतीं कि ईरान में हिजाब के विरोध पर हजारों मुस्लिम महिलाओं को जेल में डाला गया है.'
अगस्त 2024 में शेख हसीना को देश से भगाने के लिए हुआ आन्दोलन दरअसल बांग्लादेश की मुस्लिम पहचान वाले मुल्क के लिए लड़ी गई लड़ाई थी. शेख हसीना हिजाब की पहचान नहीं बल्कि साड़ी वाली पहचान की बात करती थीं. बांग्लादेश का ऐतिहासिक सन्दर्भ भी साड़ी की पहचान के साथ है न कि हिजाब के साथ. ऐसे में ढाका में हिजाब के समर्थन वाली ये रैली बांग्लादेश की बदलती पहचान की ओर खतरनाक इशारा मानी जा रही है.
बांग्लादेश के प्रधानमंत्री आवास पर शेख हसीना के कपड़ों का जिस तरह दंगाइयों ने भद्दा प्रदर्शन किया था, उससे झलक मिल गई थी कि बांग्लादेश किस राह पर चल पड़ा है.