NASA: वैज्ञानिकों ने मंगल ग्रह पर दर्ज भूकंपों का अध्ययन किया और पाया कि कई भूकंप टेक्टोनिक गतिविधियों के बजाय उल्कापिंडों की टक्कर से हुए थे. नासा के इनसाइट लैंडर ने 1300 से ज्यादा भूकंप दर्ज किए, जिनमें से 49 उल्कापिंड प्रभाव से जुड़े थे.
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Meteoroid impact on Mars: वैज्ञानिकों ने AI (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) का इस्तेमाल करके मंगल ग्रह पर एक गड्ढे से निकलने वाली भूकंपीय गतिविधि पर रिसर्च की है. इससे पता चला कि टकराव की वजह से इतनी गहरी हलचल हुई कि इसका असर मंगल की सतह के नीचे मौजूद मेंटल तक पहुंच गया. इसका मतलब यह हुआ कि मंगल पर आने वाले भूकंप हमेशा सतह के नीचे से शुरू नहीं होते, बल्कि उल्कापिंडों की टक्कर से भी पैदा हो सकते हैं.
नासा के इनसाइट लैंडर जिसने 2018 में मंगल ग्रह पर कामयाबी के साथ लैंडिंग की थी ने मंगल ग्रह पर भूकंपों का पता लगाया. इन भूकंपों के अध्ययन से वैज्ञानिकों को मंगल ग्रह के अंदरूनी स्ट्रक्चर, उसकी बनावट और उसके विकास के बारे में अहम जानकारियां मिलीं. इनसाइट लैंडर ने 2022 तक काम किया और इस दौरान 1300 से ज्यादा मंगल भूकंपों का पता लगाया. हालांकि इसे अब रिटायर कर दिया गया है, लेकिन इसके ज़रिए इकट्ठा किए गए आंकड़े अभी भी वैज्ञानिक रिसर्च में मदद कर रहे हैं. इस लैंडर ने मंगल ग्रह की सतह पर पहला सिस्मोमीटर स्थापित किया था, जिससे वहां की भूकंपीय हलचलों का अध्ययन किया जा सका.
यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के मुताबिक वैज्ञानिक पत्रिका 'जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स' में छपने वाली दो रिसर्च में यह नतीजा निकला कि मंगल ग्रह पर दर्ज किए गए कई भूकंपों की असली वजह उल्कापिंडों की टक्कर हो सकती है. पहले माना जाता था कि ये भूकंप सिर्फ टेक्टोनिक गतिविधियों की वजह से होते हैं, लेकिन अब पता चला कि उल्कापिंडों के टकराने से भी कंपन पैदा हो सकते हैं. वैज्ञानिकों ने मशीन लर्निंग तकनीक का इस्तेमाल करते हुए तीन अलग-अलग उपग्रहों से मिली तस्वीरों का विश्लेषण किया. इस रिसर्च में पाया गया कि इनसाइट लैंडर के ज़रिए रिकॉर्ड किए गए 49 भूकंप ऐसे थे जो उल्कापिंडों के टकराने से हुए थे.
स्विट्जरलैंड की यूनिवर्सिटी ऑफ बर्न के वैज्ञानिक वैलेंटिन बिकेल ने बताया कि हमारी रिसर्च दिखाती हैं कि कुछ मंगल भूकंप हकीकत में उल्कापिंडों की टक्कर से होते हैं, न कि टेक्टोनिक गतिविधियों से. यह खोज बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे हमें मंगल ग्रह पर भूकंपों की वास्तविक तादाद का सही अंदाजा लगाने में मदद मिलेगी. इसके अलावा यह रिसर्च मंगल की सतह की गतिशीलता को समझने और वहां के भौगोलिक परिवर्तनों को बेहतर तरीके से जानने में भी मददगार होगी.