कभी यहां बसती थी धरती के जैसी महासागरीय दुनिया, आज बर्फ में डूबा है सौरमंडल का यह बौना ग्रह
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कभी यहां बसती थी धरती के जैसी महासागरीय दुनिया, आज बर्फ में डूबा है सौरमंडल का यह बौना ग्रह

Ceres Planet Details In Hindi: सेरेस पहला एस्टेरॉयड था जिसे 1801 में खोजा गया था. यह आंतरिक सौरमंडल का एकमात्र बौना ग्रह है. सेरेस ग्रह, मंगल और बृहस्पति की कक्षाओं के बीच मेन एस्टेरॉयड बेल्ट में सबसे बड़ा पिंड है.

कभी यहां बसती थी धरती के जैसी महासागरीय दुनिया, आज बर्फ में डूबा है सौरमंडल का यह बौना ग्रह

Science News: नई रिसर्च ने 'सेरेस' के बारे में बनी-बनाई धारणाओं का तोड़ दिया है. इस बौने ग्रह‍ के क्रेटर्स को देखकर यह माना जाता था कि यहां बहुत ज्यादा बर्फ नहीं होगी. वैज्ञानिकों ने यहां की अधिकतम 30% सतह बर्फ से ढकी होने का अनुमान लगाया था. हालांकि, 'नेचर एस्ट्रोनॉमी' जर्नल में छपी रिसर्च के अनुसार, सेरेस न सिर्फ बर्फ से ढका हुआ है, बल्कि कभी यहां पृथ्‍वी की तरह कीचड़ वाली, महासागरीय दुनिया रही होगी.

'सेरेस' ग्रह के बारे में जानकारी

'सेरेस' को 1801 में इटैलियन एस्ट्रोनॉमर ग्यूसेप पियाजी ने खोजा था. इसे पहले एस्टेरॉयड समझा गया और लंबे समय तक 'सेरेस' की वही पहचान बनी रही. 'सेरेस' मेन एस्टेरॉयड बेल्ट का सबसे बड़ा पिंड है, जो मंगल और बृहस्पति की कक्षाओं के बीच स्थित है. यह अपने चट्टानी पड़ोसियों से काफी बड़ा और अलग है. 2006 में तमाम स्टडीज के बाद वैज्ञानिकों ने 'सेरेस' को बौने ग्रह का खिताब दिया.

NASA के मुताबिक, 'सेरेस' हमारे आंतरिक सौरमंडल का इकलौता बौना ग्रह है. 2015 में NASA का Dawn स्पेसक्राफ्ट सेरेस पर उतरा और यह पहला बौना ग्रह बना जिसका किसी अंतरिक्ष यान ने दौरा किया. भले ही 'सेरेस' का द्रव्यमान, एस्टेरॉयड बेल्ट के कुल द्रव्यमान का 25% हिस्सा हो, फिर भी प्लूटो इससे 14 गुना बड़ा है.

सेरेस की त्रिज्या 476 किलोमीटर है, जो पृथ्वी की त्रिज्या का 1/13 है. 257 मिलियन मील (413 मिलियन किलोमीटर) की औसत दूरी से, सेरेस सूर्य से 2.8 खगोलीय इकाई दूर है. सूर्य से पृथ्वी की दूरी को एक खगोलीय इकाई (जिसे AU लिखा जाता है) कहते हैं. यानी, सेरेस तक पहुंचने में सूर्य के प्रकाश को 22 मिनट लगते हैं.

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'सेरेस' पर कभी थे महासागर: रिसर्च

अमेरिका की परड्यू यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने कहा कि 'सेरेस' की सतह पर काफी सारा पानी-बर्फ मौजूद है. उन्होंने कहा, 'हमारा मानना है कि सेरेस की सतह के पास बहुत अधिक जल-बर्फ है, और जैसे-जैसे आप गहराई में जाते हैं, इसकी बर्फ धीरे-धीरे कम होती जाती है.' रिसर्चर्स ने कंप्यूटर सिमुलेशन के जरिए यह दिखाने की कोशिश की कि अरबों साल के दौरान, पानी की मौजूदगी के चलते उसके क्रेटर विकृत हो गए होंगे.

स्टडी के को-ऑथर माइक सोरी ने कहा, 'लोग सोचते थे कि अगर सेरेस इतना ही बर्फीला था तो क्रेटर समय के साथ तेजी से खराब होते, जैसे धरती पर ग्लेशियर बहते हैं. हालांकि, हमने अपने सिमुलेशन के जरिए दिखाया है कि अगर आप थोड़ी सी ठोस चट्टान मिला दें, तो सेरेस की परिस्थितियों में बर्फ पहले की भविष्यवाणी से कहीं ज्यादा मजबूत हो सकती है.'

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उन्होंने कहा, 'हमारा निष्कर्ष यह सेरेस कभी यूरोपा (बृहस्पति के चंद्रमाओं में से एक) की तरह एक महासागरीय दुनिया हुआ करती थी, लेकिन इसका महासागर गंदा और कीचड़ भरा था.' टीम ने अलग-अलग क्रस्ट संरचनाओं का टेस्ट किया और पाया कि सतह के पास भारी मात्रा में बर्फ की मौजूदगी, सेरेस की सतह पर दिखाई देने वाले क्रेटरों को फिर से बनाने के लिए सर्वोत्तम थी. वैज्ञानिकों ने कहा कि उनकी नजर में सेरेस ब्रह्मांड में सबसे सुलभ बर्फीली दुनिया है.

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