नाई बनाते हैं हजारों लीटर कढ़ी-पकौड़ा, यह खाकर ही कुंभ से विदा लेते हैं नागा-साधु
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नाई बनाते हैं हजारों लीटर कढ़ी-पकौड़ा, यह खाकर ही कुंभ से विदा लेते हैं नागा-साधु

Kumbh end date: 1 महीने से चल रहा कुंभ मेला अब अपने अंतिम चरण में है. माघ पूर्णिमा के स्‍नान के बाद महाशिवरात्रि पर कुंभ में स्‍नान होगा और इसी दिन कुंभ का समापन होगा.

नाई बनाते हैं हजारों लीटर कढ़ी-पकौड़ा, यह खाकर ही कुंभ से विदा लेते हैं नागा-साधु

Kumbh Last Date: प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ में देश-दुनिया से लोग आए हैं. अखाड़ों और साधु-संतों का जलवा तो देखने ही लायक है. करीब महीने भर से चल रहा महाकुंभ 26 फरवरी को महाशिवरात्रि के दिन समाप्‍त होगा और इसके बाद सभी साधु-संत भी यहां से विदा लेंगे. जिस तरह कुंभ की शुरुआत विशेष पूजा की जाती है, पेशवाई निकाली जाती हैं, विभिन्‍न रस्‍में निभाई जाती हैं. वैसे ही कुंभ के समापन पर भी कई रस्‍में निभाई जाती हैं. इसमें साधु-संतों की विदाई से पहले अखाड़ों द्वारा दिया जाने वाला विशेष भोज भी शामिल है.

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कढ़ी-पकौड़ी खिलाकर दी जाती है विदाई
 
जब से कुंभ शुरू हुआ है तब से इसकी एक खास परंपरा रही है. जब साधु-संत और नागा बाबा कुंभ से विदा लेने लगते हैं तो उससे पहले उन्हें कढ़ी-पकौड़ी बनाकर खिलाई जाती है. इसके बाद नागा साधु अपने अखाड़ों या हिमालय आदि में जहां तपस्‍या करते हैं, वहां लौट जाते हैं. कढ़ी-पकौड़े के इस भोज को ही नागा साधुओं की औपचारिक विदाई माना जाता है.

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नाई बनाते हैं नागा साधुओं के लिए कढ़ी-चावल

नागा साधुओं के इस विदाई भोज के लिए कढ़ी-पकौड़ी और चावल नाई व उनके परिवार के सदस्‍य बनाते हैं. नाई से मतलब है बाल काटने और दाढ़ी बनाने जैसे काम में लगे लोग. नाई लोग पूरे कुंभ मेले के दौरान अखाड़ों में संतों की सेवा करते हैं और जब संत विदाई लेने लगते हैं तो वे अपनी ओर से कढ़ी-पकौड़ी बनाकर संतों को खिलाते हैं.

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इसके बाद संतगण अपने नाई सेवकों को इस सेवा के लिए आशीर्वाद और उपहार देते हैं. यह परंपरा गुरु-शिष्य और सेवक-स्वामी के रिश्ते की आत्मीयता को भी दिखाती है. कुंभ मेले में हर अखाड़े में यह परंपरा निभाई जाती है और इसे श्रद्धा व भक्ति से पूरा किया जाता है. इसके लिए अखाड़ों में 50 लीटर से लेकर 1000 लीटर तक कढ़ी बनाई जाती है. इस दिन श्रद्धालु भी यह प्रसाद ग्रहण करते हैं. इस विदाई भोज में हजारों लोग कढ़ी-चावल खाते हैं. यहां कढ़ी-चावल केवल एक व्‍यंजन ही नहीं है बल्कि संतों की विदाई का शुभ संस्कार भी माना जाता है.

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(Disclaimer - प्रिय पाठक, हमारी यह खबर पढ़ने के लिए शुक्रिया. यह खबर आपको केवल जागरूक करने के मकसद से लिखी गई है. हमने इसको लिखने में सामान्य जानकारियों की मदद ली है. Zee News इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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