अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित को डसा था तक्षक नाग ने, श्रृंगी ऋषि की थी बड़ी भूमिका
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अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित को डसा था तक्षक नाग ने, श्रृंगी ऋषि की थी बड़ी भूमिका

Raja parikshit ko Shrap: महाभारत काल के वीर योद्धा अभिमन्‍यु के पुत्र राजा परीक्षित की मृत्‍यु तक्षक नाग के डंसने से हुई थी. इसके पीछे वजह था एक श्राप जो परीक्षित को ऋषि श्रृंगी ने दिया था. 

अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित को डसा था तक्षक नाग ने, श्रृंगी ऋषि की थी बड़ी भूमिका

Mythological Story in Hindi: महाभारत युद्ध में पांडवों के पुत्रों को छल से मार दिया गया था. अर्जुन पुत्र भी युद्ध में चक्रव्‍यूह के अंदर फंसकर वीरगति को प्राप्‍त हो गए थे. युद्ध में विजयी हुए पांडवों का मन भी बाद में राजकाज से भर गया और उन्‍होंने वन जाने का फैसला किया. तब राजा युधिष्ठिर ने अभिमन्‍यु के पुत्र परीक्षित का राज्‍याभिषेक किया और स्‍वयं भाईयों-पत्‍नी समेत वन चले गए. इसके बाद राजा परीक्षित राज करने लगे. फिर एक श्राप के कारण उनकी भी मृत्‍यु हो गई. 

महंगी पड़ी नाराजगी 

पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार राजा परीक्षित शिकार के लिए वन में गए थे. वहां वन्य पशुओं के पीछे दौड़ने के कारण उन्‍हें जोर की प्यास लगी. तब पानी की खोज करते हुए वे शमीक ऋषि के आश्रम पहुंच गए. वहां पर शमीक ऋषि नेत्र बंद करके तपस्‍या में लीन थे. राजा परीक्षित ने उनसे जल मांगा किंतु ध्यानमग्न होने के कारण शमीक ऋषि ने कोई उत्तर नहीं दिया. इससे राजा परीक्षित नाराज हो गए, उन्‍हें लगा कि ऋषि उनका अपमान कर रहे हैं. तब उन्‍होंने अपने अपमान का बदला लेने के लिए पास ही पड़े हुये एक मृत सर्प को अपने धनुष की नोंक से उठा कर ऋषि के गले में डाल दिया और अपने नगर वापस लौट आए.

पुत्र श्रृंगी ऋषि ने दिया श्राप 

शमीक ऋषि तो ध्यान में लीन रहे और उन्‍हें गले में पड़े मृत सांप का भी आभास नहीं हुआ. लेकिन जब उनके पुत्र श्रृंगी ऋषि को इस बात का पता चला तो उन्हें राजा परीक्षित पर बहुत क्रोध आया. उन्‍होंने राजा परीक्षित को श्राप दिया कि राजा परीक्षित आज से सातवें दिन तक्षक सर्प तुम्‍हे डंस लेगा. हालांकि जब शमीक ऋषि की समाधि टूटी और श्रृंगी ऋषि ने उन्‍हें पूरी कहानी सुनाई तो शमीक ऋषि बहुत दुखी हुए. उन्‍होंने कहा कि कलियुग के प्रभाव के कारण राजा परीक्षित ऐसा कर बैठे, वरना वह भगवत्भक्त राजा हैं. उनके राज्‍य में प्रजा सुखी है, ब्राह्मण गण निर्भीकतापूर्वक जप, तप, यज्ञादि करते रहते हैं. अब राजा के न रहने पर प्रजा में विद्रोह, वर्णसंकरतादि फैल जाएगी और अधर्म का साम्राज्य हो जाएगा. यह राजा श्राप देने योग्य नहीं था. 

उधर राजा परीक्षित ने जैसे स्‍वर्ण मुकुट उतारा उन्‍हें अपनी गलती का अहसास हुआ और वे पश्‍चाताप से भर उठे. वहीं शमीक ऋषि ने तत्‍काल अपने एक शिष्‍य को राजा परीक्षित के पास भेजा जिसने उन्‍हें श्राप के बारे में बताया. लेकिन राजा परीक्षित यह सुनकर जरा भी विचलित नहीं हुए बल्कि ऋषि के शिष्य से प्रसन्नतापूर्वक कहा कि ऋषिकुमार ने श्राप देकर मुझ पर बहुत बड़ा उपकार किया है.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.) 

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