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डूबने वाला है धरती का ये हिस्सा! पिघल रही सबसे बड़ी बर्फ की चादर..अब बचा आखिरी विकल्प

Greenland Ice Sheet: अगर कार्बन उत्सर्जन को कम किया जाए और ग्लोबल वॉर्मिंग को नियंत्रित किया जाए तो इस खतरे को टाला जा सकता है. अगर जल्द ही ठोस कदम नहीं उठाए गए तो इस समस्या का असर पर्यावरण के साथ-साथ वैश्विक अर्थव्यवस्था पर भी पड़ेगा.

ग्रीनलैंड की विशाल बर्फ की चादर

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ग्रीनलैंड की विशाल बर्फ की चादर

जलवायु परिवर्तन के चलते एक और आफत खड़ी होने वाली है. हुआ यह कि ग्रीनलैंड की विशाल बर्फ की चादर अब एक खतरनाक मोड़ की ओर बढ़ रही है जिससे पूरी दुनिया के लिए गंभीर संकट खड़ा हो सकता है. वैज्ञानिकों का कहना है कि यह बर्फ रिकॉर्ड गति से पिघल रही है और अनुमान है कि हर घंटे करीब 3.3 करोड़ टन बर्फ पिघल रही है. अगर वैश्विक तापमान में 2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होती है तो यह पूरी बर्फ की चादर ढह सकती है. जिससे समुद्र का जलस्तर लगभग सात मीटर तक बढ़ सकता है. इससे तटीय इलाकों को सबसे अधिक खतरा होगा और वो इलाका भी डूब सकता है जहां भी इसका प्रभाव पड़ेगा.

वैज्ञानिकों के नए अध्ययन में डराने वाले संकेत

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वैज्ञानिकों के नए अध्ययन में डराने वाले संकेत

असल में जलवायु परिवर्तन से जुड़े जर्नल द क्रायोस्फीयर में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार वैज्ञानिकों ने एक जलवायु मॉडल विकसित किया है. जो यह अनुमान लगाने में मदद करता है कि विभिन्न तापमान स्थितियों में बर्फ की चादर कैसे प्रभावित होगी. शोध के मुताबिक यदि हर साल 230 गीगाटन बर्फ पिघलती रही तो ग्रीनलैंड की बर्फ की चादर को स्थायी क्षति हो सकती है. यह आंकड़ा औद्योगिक क्रांति से पहले की तुलना में काफी अधिक है. जिससे यह आशंका बढ़ गई है कि इस सदी के अंत तक बर्फ की चादर पूरी तरह ढह सकती है.

बर्फ की चादर क्यों है महत्वपूर्ण?

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बर्फ की चादर क्यों है महत्वपूर्ण?

ग्रीनलैंड की बर्फ की चादर पृथ्वी की दो स्थायी बर्फीली संरचनाओं में से एक है. दूसरी अंटार्कटिका में स्थित है. यह लगभग 17 लाख वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैली हुई है और पृथ्वी के कुल ताजे पानी के भंडार का एक बड़ा हिस्सा इसमें समाया हुआ है. रिपोर्ट्स के मुताबिक 1994 के बाद से ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका की बर्फीली चादरें मिलाकर करीब 6.9 ट्रिलियन टन बर्फ खो चुकी हैं. इसका मुख्य कारण मानवीय गतिविधियों से उत्पन्न जलवायु परिवर्तन है. हालांकि विशेषज्ञों का मानना है कि अगर कार्बन उत्सर्जन पर तत्काल नियंत्रण किया जाए तो इस नुकसान को धीमा किया जा सकता है.

तेजी से पिघलती बर्फ का असर

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तेजी से पिघलती बर्फ का असर

वैज्ञानिकों का कहना है कि पूरी दुनिया में बर्फ की चादरें तेजी से सिकुड़ रही हैं. 2000 से 2019 के बीच दुनिया भर के ग्लेशियरों ने हर साल औसतन 294 अरब टन बर्फ खो दी. इससे समुद्रों का जलस्तर बढ़ा है और महासागरीय धाराओं का संतुलन भी बिगड़ रहा है. विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि अगर जल्द ही ठोस कदम नहीं उठाए गए तो इस समस्या का असर पर्यावरण के साथ-साथ वैश्विक अर्थव्यवस्था पर भी पड़ेगा.

समाधान क्या हो सकता है?

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समाधान क्या हो सकता है?

हालांकि स्थिति गंभीर है लेकिन वैज्ञानिकों के अनुसार अगर कार्बन उत्सर्जन को कम किया जाए और ग्लोबल वॉर्मिंग को नियंत्रित किया जाए तो इस खतरे को टाला जा सकता है. इसके लिए वैश्विक स्तर पर संयुक्त प्रयासों की जरूरत है जिसमें स्वच्छ ऊर्जा का उपयोग बढ़ाना, जंगलों की रक्षा करना और पर्यावरण संरक्षण से जुड़ी नीतियों को सख्ती से लागू करना शामिल है. यदि समय रहते ठोस कदम नहीं उठाए गए तो दुनिया को अप्रत्याशित जलवायु आपदाओं का सामना करना पड़ सकता है.

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