2000 के दशक की शुरुआत में, ब्लैकबेरी ने स्मार्टफोन की दुनिया में क्रांति ला दी थी. बिजनेस करने वाले लोग इसके सुरक्षित ईमेल और क्यूवर्टी कीबोर्ड के बहुत शौकीन थे. इसकी खास खूबियों की वजह से ये कॉरपोरेट लोगों के लिए बहुत जरूरी फोन बन गया था.
साल 2009 तक ब्लैकबेरी पूरी तरह से छा गया था. दुनिया के 20% से ज्यादा स्मार्टफोन यूजर्स के पास ब्लैकबेरी फोन था. बिजनेस करने वाले लोगों और नेताओं के लिए ये एक तरह का स्टेटस सिंबल बन गया था.
साल 2007 में आईफोन और 2008 में एंड्रॉइड के आने से स्मार्टफोन की दुनिया पूरी तरह बदल गई. इन दोनों में टचस्क्रीन और बहुत सारे ऐप्स थे. इस वजह से ब्लैकबेरी के फोन कम बिकने लगे.
ब्लैकबेरी को नई-नई चीजें जल्दी-जल्दी बनानी चाहिए थीं, लेकिन वो अपने कीबोर्ड वाले डिजाइन पर ही अड़े रहे, जबकि बाकी कंपनियां टचस्क्रीन और बेहतर ऑपरेटिंग सिस्टम पर काम कर रही थीं. इसी वजह से ब्लैकबेरी पहले नंबर से पीछे रह गया.
साल 2013 तक आते-आते ब्लैकबेरी का बाजार सिर्फ 1% से भी कम रह गया था. वो आईफोन और एंड्रॉइड जैसे नए फोन के साथ कदम नहीं मिला पाए और लोगों की पसंद भी बदल गई. इस वजह से ब्लैकबेरी को बहुत नुकसान हुआ.
ब्लैकबेरी ने नए फोन बनाकर और एंड्रॉइड ऑपरेटिंग सिस्टम का इस्तेमाल करके वापसी करने की कोशिश की, लेकिन बहुत देर हो चुकी थी. इन सब कोशिशों के बावजूद, ब्लैकबेरी पहले जैसा नहीं रह पाया और बाजार में अपनी जगह बनाने के लिए संघर्ष करता रहा.
आखिरकार, ब्लैकबेरी ने स्मार्टफोन का कारोबार छोड़ दिया और सॉफ्टवेयर और सेवाओं पर ध्यान केंद्रित करने लगा, लेकिन उनकी असफलता टेक्नोलॉजी के इतिहास में एक बड़ा सबक बन गई. वे बदलते समय के साथ खुद को ढाल नहीं पाए जिसकी वजह से उनका अंत हुआ.
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