Om Prakash Death Anniversary: भारतीय सिनेमा में कई ऐसे कलाकार हुए हैं, जिन्होंने अपनी अदाकारी से लोगों के दिलों पर अमिट छाप छोड़ी. उनकी फिल्मों को देखकर आज भी लोग हंसते, रोते और सीखते हैं. ऐसे कलाकारों ने सिनेमा को एक नई ऊंचाई दी और अपने अभिनय से हर किरदार को यादगार बना दिया. आज हम आपको एक ऐसे ही दिग्गज अभिनेता के बारे में बताने जा रहे हैं. उनके अभिनय की सबसे खास बात ये थी कि वे हर तरह के किरदार में पूरी तरह ढल जाते थे, चाहे वो कॉमेडी हो, गंभीर किरदार हो या फिर कोई सपोर्टिंग रोल.
इस कलाकार की शुरुआत भी बिल्कुल आम थी. उन्होंने बचपन से ही थिएटर और संगीत में रुचि दिखाई. कम उम्र में ही उन्होंने शास्त्रीय संगीत सीखना शुरू कर दिया था, लेकिन किस्मत ने उन्हें अभिनय के रास्ते पर लाकर खड़ा कर दिया. थिएटर से होते हुए फिल्मों तक पहुंचने का उनका सफर आसान नहीं था. शुरुआती दिनों में उन्हें ज्यादा मौके नहीं मिले, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और अपने संघर्ष के दम पर सफलता हासिल की और आगे चलकर हिंदी सिनेमा के दिग्गज सितारों में शामिल हो गए.
हम बात कर रहे हैं हिंदी सिनेमा में दशकों तक अपना यादगार योगदान देने वाले दिग्गज अभिनेता ओम प्रकाश की, जिनका जन्म 19 दिसंबर 1919 को हुआ था. उन्होंने अपने करियर की शुरुआत 1942 में की थी. इसके बाद उन्होंने दर्जनों फिल्मों में हर तरह के किरदार निभाए, जिनको आज भी याद किया जाता है. उन्होंने ‘आजाद’, ‘मिस मैरी’, ‘हावड़ा ब्रिज’, ‘साधु और शैतान’, ‘गोपी’, ‘खानदान’, ‘पड़ोसन’ और ‘दिल दौलत दुनिया’ जैसी यादगार फिल्में दीं, जिनको आज भी देखने बैठो तो दिल नहीं भरता.
ओम प्रकाश की पहली फिल्म ‘दासी’ थी, जो 1942 में रिलीज हुई थी और इसके लिए उन्हें महज 80 रुपये मिले थे. हालांकि, इस फिल्म के बाद भी उन्हें लंबे समय तक संघर्ष करना पड़ा. लेकिन धीरे-धीरे उनकी प्रतिभा को पहचाना जाने लगा और उन्हें एक के बाद एक कई बेहतरीन फिल्मों में काम करने का मौका मिला. ओम प्रकाश न केवल एक बेहतरीन अभिनेता थे, बल्कि उन्होंने कई फिल्मों का निर्देशन भी किया. उनका दौर ऐसा था जब समाज में कई अंधविश्वास और रूढ़ियां फैली हुई थीं.
ओम प्रकाश का फिल्मी सफर पांच दशकों तक चला, जिसमें उन्होंने 300 से ज्यादा फिल्मों में किया. उनकी फिल्में कहीं न कहीं समाज को आईना दिखाने का काम करती थीं. इतना ही नहीं, उनकी पर्सनल लाइफ भी किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं थी. उन्हें एक सिख लड़की से प्यार हुआ, लेकिन धर्म अलग होने की वजह से लड़की के परिवार ने इस रिश्ते को स्वीकार नहीं किया. उनकी मां ने भी इस रिश्ते को बचाने की कोशिश की, लेकिन बात नहीं बनी. फिर उनके साथ एक बेहद दिलचस्प घटना घटी.
एक बार जब वे पान की दुकान पर खड़े थे, तो एक विधवा महिला उनके पास आई और अपनी बेटी से शादी करने की मिन्नतें करने लगी. महिला की मजबूरी देखकर ओम प्रकाश का दिल पसीज गया और उन्होंने उस महिला की बेटी से शादी कर ली. इस फैसले से उन्होंने अपने प्यार को भुला दिया और उस महिला की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले ली. अपने आखिरी दिनों में ओम प्रकाश काफी बीमार रहने लगे थे. उन्हें दिल की बीमारी थी, जिसके चलते वे कोमा में चले गए थे और 21 फरवरी, 1998 को उन्होंने मुंबई के लीलावती अस्पताल में अपनी अंतिम सांस ली.
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