शैव दिगंबर और उदासीन में बंटे हैं 13 अखाड़े, महाकुंभ मेले में जुटेंगे लाखों साधु-संत, जानें अखाड़ों का हजारों साल पुराना इतिहास
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शैव दिगंबर और उदासीन में बंटे हैं 13 अखाड़े, महाकुंभ मेले में जुटेंगे लाखों साधु-संत, जानें अखाड़ों का हजारों साल पुराना इतिहास

Akhado ka Itihas: अखाड़े मुख्य रूप से तीन संप्रदायों में विभाजित हैं. पहला है शैव, दूसरा वैष्णव और तीसरा है उदासीन. आइए शैव अखाड़ों के बारे में आपको बताते हैं. सभी अखाड़ों में शैव अखाड़ों की संख्या सर्वाधिक है.

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Kumbh Mela: बात जब कुंभ मेले की हो और अखाड़ों का जिक्र न हो ऐसा हो नहीं सकता. रोचक बात यह है कि इन अखाड़ों के बीच आपसी प्रतिस्पर्धा भी होती है. अखाड़े अपना धार्मिक महत्व बनाए रखना चाहते हैं. कुंभ मेला एक ऐसा अवसर होता है जहां अखाड़ों के संसार से आम आदमी भी परिचित होता है. कुंभ मेले में अलग -अलग अखाड़ों के संत विशेष रूप से सजे रथों में सवार होते हैं, अलग- अलग करतब दिखाते हैं और अपने अस्त्र और शस्त्रों का प्रदर्शन करते हैं. ये अखाड़े कुछ और नहीं बल्कि हिंदू धर्म में विभिन्न मान्यताओं के मठ हैं. जिनका अपना एक दर्शन है. भले अखाड़े विभिन्न अलग हों लेकिन कुंभ के मौके पर सब संत एक जगह एकत्रित होते हैं. अखाड़ों के जानकार बताते हैं कि पहले प्रमुख रूप से 4 अखाड़े हुआ करते थे लेकिन बाद में मतभेद बढ़े और अखाड़ों की संख्या 13 हो गई. अखाड़ों की परंपरा में गुरु शिष्य की परंपरा है और अखाड़ों के संसार में उपाधियां भी प्रदान की जाती हैं.

अखाड़ों का इतिहास

आइए थोड़ा सा अखाड़ों के इतिहास को जान लेते हैं जगतगुरु शंकराचार्य सनातन के उद्धारकर्ता के रूप में जाने जाते हैं. यह तब का समय था जब बौद्ध धर्म अपनी प्रसिद्धि के स्वर्णिम समय में था. ऐसे में सनातन के वर्चस्व को कायम रखने के लिए अखाड़ा बनाए जाने का विचार आया. हालांकि इतिहासकार शंकाराचार्य के समय काल और अखाड़ों के इतिहास को जोड़े जाने को सही नहीं मानते. आप अगर पढ़ने बैठेंगे तो आपको अखाड़ों के इतिहास की बहुत सी कथाएं मिल जाएंगी.

मुख्य रूप से तीन संप्रदायों में बंटे हैं अखाड़े

अखाड़े मुख्य रूप से तीन संप्रदायों में विभाजित हैं. पहला है शैव, दूसरा वैष्णव और तीसरा है उदासीन. आइए शैव अखाड़ों के बारे में आपको बताते हैं. सभी अखाड़ों में शैव अखाड़ों की संख्या सर्वाधिक है. जैसा कि नाम से पता चल रहा है शैव अखाड़ों के लिए भगवान शिव पूजनीय हैं. इसमें यह अखाड़े शामिल हैं: 1. पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी 2, पंच अटल अखाड़ा 3. पंचायती अखाड़ा निरंजनी 4. तपोनिधि आनंद अखाड़ा पंचायती 5. पंचदशनाम जूना अखाड़ा 6. पंचदशनाम आवाहन अखाड़ा 7. पंचदशनाम पंच अग्नि अखाड़ा.

अब आते हैं वैष्णव अखाड़ों पर. वैष्णव अखाड़े के अनुयायी भगवान विष्णु को मानते हैं जिनमें 1. दिगंबर अनी अखाड़ा 2. निर्वानी आनी अखाड़ा 3. पंच निर्मोही अनी अखाड़ा आते हैं. उदासीन अखाड़े के अनुयायी गुरु नानक से प्रेरित हैं और प्रकृति को पूजते हैं. इसमें 1. पंचायती बड़ा उदासीन अखाड़ा 2. पंचायती अखाड़ा नया उदासीन 3. निर्मल पंचायती अखाड़ा आते हैं.

ऐसा नहीं है कि अखाड़े सिर्फ इतने ही हैं. कुंभ में हिस्सा लेने सिख, वैष्णव, शैव अखाड़ों के संत पहुंचते हैं. कुछ प्रसिद्ध अखाड़े हैं शैव- आवाह्न, अटल, आनंद, निरंजनी, महानिर्वाणी, अग्निन, जूना , गुदद वैष्णव- निर्मोही, दिगंबर और निर्वाणी उदासीन- बड़ा उदासीन, नया उदासीन निर्मल संप्रदाय- निर्मल अखाड़ा. गौरतलब है कि किन्नर अखाड़ा भी अखाड़ों में सम्मिलित है. इसलिए अखाड़ों की संख्या 14 भी बताई जाती है.

आपको जानकर हैरानी होगी कि अखाड़ों के बीच अच्छी खासी प्रतिस्पर्धा देखने को मिलती है. कुंभ में तो स्थान के लिए कई बार अखाड़े आपस में उलझ जाते हैं. हालांकि अखाड़ों के बीच के विवादों को निपटाने के लिए अखाड़ा परिषद है. संत समाज के लोग ही इसमें होते हैं और परिषद का संचालन करते हैं.

जूना अखाड़ा सबसे बड़ा अखाड़ा और सबसे पुराना : शैव मत के अखाड़ों में जूना अखाड़ा सबसे बड़ा है. एक अनुमान के मुताबिक इसमें 5 लाख से अधिक साधु संत हैं. अधिकतर तो नागा साधु हैं. इस अखाड़े में महंत होते हैं. वर्तमान में इस अखाड़े के महंत प्रेमगिरि महाराज हैं. इस अखाड़े की स्थापना सन 1145 की बताई जाती है. उत्तराखंड में इसे स्थापित किया गया था. इसका मुख्यालय वाराणसी में है. जूना अखाड़ा अपने आप में एक पूरा समाज है. इनमें चुनाव भी होता है. अखाड़े के प्रमुख को महामंडलेश्वर या पीठाधीश्वर कहा जाता है.

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