दिल्ली नगर निगम में एल्डरमैन की नियुक्ति का अधिकार किसको? सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया बड़ा फैसला
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दिल्ली नगर निगम में एल्डरमैन की नियुक्ति का अधिकार किसको? सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया बड़ा फैसला

MCD Aldermen: दिल्ली की आम आदमी पार्टी (AAP) के नेतृत्व वाली केजरीवाल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह के बिना दिल्ली नगर निगम (MCD) में 'एल्डरमैन' नॉमिनेट करने के उपराज्यपाल के फैसले को चुनौती दी थी.

 

दिल्ली नगर निगम में एल्डरमैन की नियुक्ति का अधिकार किसको? सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया बड़ा फैसला

Supreme Court decision on MCD Aldermen: सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली नगर निगम (MCD) में 'एल्डरमैन' की नियुक्ति पर बड़ा फैसला सुनाया है, जिससे दिल्ली की केजरीवाल सरकार को बड़ा झटका लगा है. कोर्ट ने एमसीडी में 10 'एल्डरमैन' को नॉमिनेट करने के उपराज्यपाल के फैसले पर मुहर लगाते हुए कहा है कि 'एल्डरमैन' को मनोनीत करने के लिए उपराज्यपाल को मंत्रिपरिषद की सलाह की आवश्यकता नहीं है. बता दें कि आम आदमी पार्टी (AAP) के नेतृत्व वाली दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह के बिना दिल्ली नगर निगम में 'एल्डरमैन' नॉमिनेट करने के उपराज्यपाल के फैसले को चुनौती दी थी. दिल्ली सरकार का कहना था कि उससे सलाह मशविरा के बिना एलजी ने मनमाने तरीके से इनकी नियुक्ति की है. ये नियुक्ति रद्द होनी चाहिए.

क्यों महत्वपूर्ण है सुप्रीम कोर्ट का फैसला?

सुप्रीम कोर्ट (SC) का फैसला इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि आज के फैसले के बाद एमसीडी(MCD) में स्टैंडिंग कमेटी के गठन का रास्ता साफ हो पाएगा. दरअसल, एल्डरमैन को लेकर चल रहे मौजूदा विवाद के सुप्रीम कोर्ट में लंबित रहने चलते एमसीडी में अब तक स्टैंडिंग कमेटी का गठन नहीं हो पाया है, क्योंकि स्टैंडिंग कमेटी के चुनाव में एल्डरमैन कहलाने वाले मनोनीत पार्षद भी वोट देते हैं. यहां ये भी गौर करने लायक है कि 5 करोड़ से ज़्यादा के प्रोजेक्ट के लिए स्टैंडिंग कमेटी की मंजूरी जरूरी है. इसी के चलते मूलभूत सुविधाओं को दुरुस्त करने के लिए 5 करोड़ से अधिक के कई प्रोजेक्ट लटके पड़े हैं. एक ऐसे वक्त में जब जलभराव और नालों की सफाई और बुनियादी सुविधाओं के विस्तार में असफल रहने पर MCD सवालों के घेरे में है.

पिछले साल 17 मई को सुप्रीम कोर्ट ने सुरक्षित रख लिया था फैसला

चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस पी एस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ ने पिछले साल 17 मई को इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. अब जस्टिस पीएस नरसिम्हा की अध्यक्षता वाली पीठ ने फैसला सुनाया है. पिछले साल 17 मई को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा था कि उपराज्यपाल को एमसीडी में पार्षदों को नॉमिनेट करने का अधिकार देने का मतलब होगा कि वह निर्वाचित नगर निकाय को अस्थिर कर सकते हैं. एमसीडी में 250 निर्वाचित और 10 नामित सदस्य हैं. दिसंबर 2022 में आम आदमी पार्टी ने नगर निगम चुनाव में 134 वार्ड में जीत के साथ एमसीडी पर भारतीय जनता पार्टी (BJP) के 15 साल के शासन को समाप्त कर दिया था. भाजपा ने 104 सीट जीतीं और कांग्रेस नौ सीटों के साथ तीसरे स्थान पर रही. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, 'क्या एमसीडी में विशेषज्ञ लोगों को नामित करना केंद्र के लिए इतनी चिंता का विषय है? वास्तव में, उपराज्यपाल को यह शक्ति देने का मतलब यह होगा कि वह लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित नगर समितियों को अस्थिर कर सकते हैं, क्योंकि उनके पास (एल्डरमैन) मतदान का अधिकार भी होगा.'

दिल्ली सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक सिंघवी ने दलील दी थी कि दिल्ली सरकार को एमसीडी में लोगों को नामित करने के लिए कोई अलग से अधिकार नहीं दिए गए हैं और पिछले 30 वर्षों से सरकार की सहायता एवं सलाह पर उपराज्यपाल द्वारा ‘एल्डरमैन’ को नामित करने की परंपरा का पालन किया जाता रहा है. तत्कालीन अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल संजय जैन ने उपराज्यपाल कार्यालय की ओर से पेश होकर दलील दी थी कि सिर्फ इसलिए कि कोई परंपरा 30 वर्षों से चली आ रही है, इसका मतलब यह नहीं है कि वह सही है.

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