Jaipur: झालाना स्थित अकादमी संकुल में अजादी के अमृत महोत्सव के अन्तर्गत कला एवं संस्कृति विभाग, राजस्थान संस्कृत अकादमी, राजस्थान ललित कला अकादमी, राजस्थान सिंधी अकादमी एवं करुणा संस्थान के संयुक्त तत्त्वावधान में आयोजित किए गए . तीन दिवसीय इस संस्कार-संस्कृति शिविर के दूसरे दिन भी कई जाने-माने विद्वानों ने छात्र-छात्राओं को संबोधित किया. इस संबोधन में विद्वानों ने संस्कृति और संस्कार के सही मायने बताए.
इस मौके पर गीता और जीवन प्रबन्धन पर कृष्णपाद दास प्रभु, नैतिक मूल्य एवं चरित्र विषय पर शास्त्री कोसलेन्द्र दास और आर्ट ऑफ लिविंग विषय पर एस.पी. पालीवाल ने रखे विचार. राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय के सहायक आचार्य शास्त्री कोसलेन्द्र दास ने संस्कार को पनिरभाषित करते हुए कहा कि, किसी भी अशुद्ध पदार्थ को शुद्ध करने की प्रक्रिया को संस्कार कहते हैं. उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि भोजन को बाद जूठी थाली को धोकर फिर से परिष्कृत करने की प्रक्रिया संस्कार की श्रेणी में आती है. उन्होंने कहा जो परिष्कृत किया जा चुका है वो संस्कृत है, जिसने संस्कृत समझ ली समझो परिष्कृत हो गया. व्यक्ति को हमेशा काग जैसे चेष्टा, बगुले जैसा ध्यान, श्वान जैसी निद्रा रखने के साथ ही अल्पाहारी भी होना चाहिए.
शिविर के तीसरे और अन्तिम दिन मीडिया, सोशल मीडिया और युवा विषय पर वरिष्ठ पत्रकार और लेखक यशवंत व्यास, स्वतन्त्रता आन्दोलन और युवा विषय पर गोविन्द पारीक तथा धरती हमारी माता विषय पर ललिता यादव अपने विचार रखेंगे. कला एवं संस्कृति मंत्री डॉ. बी.डी. कल्ला के उद्बोधन के बाद तीन दिवसीय शिविर का समापन होगा.
Reporter: Anoop Sharma