Rajasthan News: डिलीवरी के बाद महिलाएं हो रही पोस्टपार्टम डिप्रेशन का शिकार, बच्चे के लिए खतरनाक
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Rajasthan News: डिलीवरी के बाद महिलाएं हो रही पोस्टपार्टम डिप्रेशन का शिकार, बच्चे के लिए खतरनाक

Jaipur News: गर्भावस्था और प्रसव महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य में कई गहरे बदलाव देखने को मिल रहे है. चिकित्सकों के अनुसार, जो उनकी मानसिक और शारीरिक सेहत को प्रभावित करते हैं. देखिए एक खास रिपोर्ट 

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Rajasthan News: प्रसव के दौरान हार्मोनल बदलाव, थकान, शरीर में बदलाव और नई जिम्मेदारियों का दबाव अक्सर महिलाओं में तनाव, चिंता और अवसाद जैसी मानसिक समस्याओं को जन्म देता है. इसके परिणामस्वरूप कई महिलाओं में भावनात्मक उतार-चढ़ाव, बार-बार रोना, अत्यधिक थकान, अपराधबोध, चिंता, और अपने बच्चे की देखभाल में कठिनाई जैसी समस्याएं देखी जाती हैं.

पोस्टपार्टम डिप्रेशन में दिखते हैं ये लक्षण
मानसिक रोग विशेषज्ञ डॉ. धर्मदीप सिंह का कहना है कि प्रसव के बाद, कुछ महिलाएं पोस्टपार्टम डिप्रेशन जैसी गंभीर समस्या से भी प्रभावित हो सकती हैं. यह स्थिति लगभग 15% नई माताओं को प्रभावित करती है. प्रसवोत्तर अवसाद में महिलाओं को बार-बार रोना, अपराधबोध, चिंता, थकान और अपने बच्चे की देखभाल में कठिनाई जैसे लक्षण अनुभव हो सकते हैं. इसके अलावा, कुछ महिलाओं में चिड़चिड़ापन, गुस्सा, किसी भी कार्य में रुचि न लेना, ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई और लोगों से दूरी बनाए रखने जैसे लक्षण भी उभर सकते हैं. कुछ मामलों में, महिलाएं सामाजिक दूरी बनाने लगती हैं, चिड़चिड़ापन और कभी-कभी आत्महत्या के विचार भी अनुभव कर सकती हैं जो स्थिति की गंभीरता को दर्शाती है, जिनका समय रहते समाधान करना बहुत जरूरी होता है.

बचाव के लिए चिकित्सक परामर्श जरूरी
मनोरोग विशेषज्ञ डॉ.सिंह ने बताया कि सबसे पहले, महिलाओं को दवा और परामर्श की मदद से इलाज करवाने की सलाह दी जाती है. चिकित्सकीय परामर्श और साइकोथेरेपी से महिलाओं को मानसिक रूप से बेहतर महसूस करने में मदद मिलती है. इसके साथ ही, जीवनशैली में कुछ बदलाव, जैसे अच्छा पोषण, नियमित व्यायाम और पर्याप्त आराम भी सहायक होते हैं. प्रसवोत्तर अवसाद और पोस्टपार्टम डिप्रेशन जैसी गंभीर समस्या के लिए बेहतर चिकित्सक के पास परामर्श जरूर लेना चाहिए. इलाज के लिए दवा और परामर्श आवश्यक है. परिवार और दोस्तों का सहयोग भी महत्वपूर्ण होता है, ताकि महिलाओं को भावनात्मक सहारा मिल सके.

समाज में जागरूकता और संवेदनशीलता की आवश्यकता
मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. सिंह के अनुसार, किसी भी मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं को लेकर समाज में जागरूकता बढ़ाने की जरूरत है. मानसिक स्वास्थ्य पर खुलकर चर्चा करने और महिलाओं का समर्थन करने से उन्हें मानसिक संकट से बाहर आने में मदद मिल सकती है. इस कठिन समय में परिवार का सहयोग और समाज की सहानुभूति गर्भवती और नई माताओं को उनकी नई जिम्मेदारियों को आत्मविश्वास और खुशी से निभाने में सहायक बन सकते हैं.

बहरहाल, समय समय पर हमारे सामने इसी तरह की एक घटनाएं सामने भी आती रही हैं जब 1 प्रसूता ने अपने नवजात शिशु की हत्या संभवतः कुछ भ्रमों के चलते कर दी थी. ऐसे में इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि वह इसी तरह के किसी मानसिक रोग से ग्रसित रही हो. प्रेग्नेंसी और डिलीवरी के बाद देखभाल प्रेगनेंसी और बच्चे की डिलीवरी के 6 सप्ताह बाद के समय को पोस्टमार्टम कहा जाता है, जब माँ का शरीर प्रेगनेंसी से पहले की स्थिति में लौट आता है. डिलीवरी के बाद, एक माँ कुछ शारीरिक परिवर्तन और लक्षण होने की उम्मीद कर सकती है, लेकिन वे आमतौर पर हल्के और अस्थायी होते हैं.

रिपोर्टर- सचिन शर्मा

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