साहित्य सृजन कला संगम की काव्यगोष्ठी एवं दीपावली स्नेह मिलन समारोह संपन्न
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साहित्य सृजन कला संगम की काव्यगोष्ठी एवं दीपावली स्नेह मिलन समारोह संपन्न

साहित्य सृजन कला संगम की ओर से दीपावली स्नेह मिलन समारोह व मासिक काव्यगोष्ठी का आयोजन गांधीपुरी स्थित कर्मभूमि पर आयोजित किया गया.

साहित्य सृजन कला संगम की काव्यगोष्ठी एवं दीपावली स्नेह मिलन समारोह संपन्न

भीलवाड़ा: साहित्य सृजन कला संगम की ओर से दीपावली स्नेह मिलन समारोह व मासिक काव्यगोष्ठी का आयोजन गांधीपुरी स्थित कर्मभूमि पर आयोजित किया गया. माताश्रय के ट्रस्टी रामस्वरूप काबरा के मुख्य आतिथ्य एवं शिक्षाविद सोमेश्वर व्यास की अध्यक्षता तथा ख्यातिप्राप्त कवि एवं साहित्यकार डॉ.कैलाश मण्डेला के विशिष्ट आतिथ्य में आयोजित समारोह में संयोजक वेदप्रकाश सुथार ने सभी का स्वागत करते हुए दीपावली की शुभकामनाएं देकर मुंह मीठा कराया.

काव्यगोष्ठी का आगाज अतिथियों ने मां सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्जवलित करके किया। कवि शिवप्रकाश जोशी ने मां शारदे स्वीकार कर, सरस्वती वंदना प्रस्तुत कर गोष्ठी को शुरुआत दी .  गीतकार बालमुकंद छीपा ने "जन्म जीवन की प्रथम झांकी मनोहर, मानता मानव जिसे ही परम सुखकर, मृत्यु अंतिम लक्ष्य जो जन्म का है, मूढ़ मन कहता और वह है भंयकर" गीत प्रस्तुत किया.

सुनील भट्ट ने "कर्म का लेख जब में मिटाने चला, याद आई मुझे बीते वक्त की, राजा बनने वाले ही थे राम सुनो कर्म उनको भी बनवास लेके चला", भंवर गौड़ ने "जीवन में दो पेड़ लगाये जिससे पर्यावरण शुद्व हो जाए", शिव दाधीच ''शून्य'' ने "कर्म करना होगा कर्म चुनना होगा", शिवप्रकाश जोशी ने "मनुआ ऐसा कर्म कर जैसे नदियां नीर, तन को निर्मल करे, मन की हर ले पीर" सुनाकर कार्यक्रम को ऊंचाइयां प्रदान की।

कवि दिनेश बंटी ने "तू मशीनी बन गया है, क्यूं सुबह की शाम करता, जी रहा है सबके लिए खुद के लिए क्यूं जाम भरता है" प्रस्तुत की. संचिना अध्यक्ष रामप्रसाद पारीक ने "वक्त बेवक्त सख्त हो जाता है, बेवक्त में इंसान निशक्त हो जाता है" रचना सुनायी. ओमप्रकाश सनाढ्य ने " हम है यहां संभव है कर्म का फल है, मैं तुम्हारी देहरी का दीप हूं कोरा प्रिये, कर सके थोड़ा उजाला तमस में मेरे लिए", संस्था अध्यक्ष जयदेव जोशी ने "घर पग चले नित शत पथ, संचिना महासचिव गीतकार सत्येंद्र मंडेला ने "कद छप्पन भोग पासी रे हलक म, कुण जाणे रे इन्सान" सुनाकर कार्यक्रम में अलग रंग पैदा कर दिया.

संस्था सचिव डा. कैलाश मंडेला ने "कर रहा हूं कर्म जो मैं क्या यही था ध्येय मेरा, जो मिला मुझको यहां पर क्या यही है प्रेय मेरा" तथा "दम्भ की दीवार के पीछे खड़े तुम, क्यों कभी स्वीकार ना पाये हमें" जैसे हिंदी के उत्कृष्ट गीत सुना कर कार्यक्रम को स्तरीयता के शिखर पर पहुंचा दिया.

संयोजक वेदप्रकाश सुथार ने "कर्म शरीर में हो या परिवार में" रचना के माध्यम से सामाजिक व पारिवारिक स्थितियों का चित्रण कर कुरूतियों पर चोट की. सोमेश्वर व्यास ने "मैं जुगलबंदी करता हूं अब, मैंने कर्म ही ऐसा कर लिया की रो रहा हूं उनके लि अब तक" प्रस्तुत कर कार्यक्रम को पूर्णता प्रदान की.

संस्था अध्यक्ष जयदेव जोशी ने संस्थान के संस्थापक लोककवि मोहन मण्डेला स्मृति अखिल भारतीय कवि सम्मेलन के 25वें सालाना आयोजन पर विचार विनिमय किया और इस रजत जयंती कार्यक्रम को सफल और भव्य बनाने हेतु प्रस्ताव रखा.  कार्यक्रम की रूपरेखा शीघ्र तैयार की जाएगी. धन्यवाद के साथ गोष्ठी का शानदार समापन हुआ. 

Reporter- Dilshad Khan

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