Dungarpur News: राजस्थान के आदिवासी बहुल डूंगरपुर जिले में चिकित्सा शिक्षा की हालत खराब है. 6 साल पहले शुरू हुए मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस स्टूडेंट्स को पढ़ाने वाले टीचर्स के पहले से 64 पर्सेंट पोस्ट खाली है. 750 एमबीबीएस स्टूडेंट्स को पढ़ाने सिर्फ 81 डॉक्टर फैकल्टी है. इसमें से 25 डॉक्टर टीचर्स के ट्रांसफर कर दिए गए या छोड़कर चले गए. हालात ये है कि कई विभाग खाली हो गए हैं और कई विभाग में एक या दो डॉक्टर ही बचे हैं. जिसके चलते मेडिकल स्टूडेंट की पढाई प्रभावित हो रही है.
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Rajasthan News: डूंगरपुर समेत प्रदेश के 7 मेडिकल कॉलेज 2018 से राजमेस से संचालित है. लेकिन इन मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस स्टूडेंट्स को पढ़ाने वाले टीचर्स ही नहीं है. आदिवासी बहुत क्षेत्र डूंगरपुर मेडिकल कॉलेज खुलने के बाद मेडिकल एजुकेशन को बढ़ावा मिलने की उम्मीद जगी थी. लेकिन 6 साल बाद भी खाली पदों के चलते हालत खराब होती जा रही है. डूंगरपुर मेडिकल कॉलेज में पहले सत्र 100 एमबीबीएस स्टूडेंट को एडमिशन दिए गए. लेकिन दूसरे ही साल एमबीबीएस सीटों की संख्या 150 कर दी गई. अब डूंगरपुर मेडिकल कॉलेज में 750 एमबीबीएस स्टूडेंट है. इन्हें पढ़ाने के लिए 223 डॉक्टर टीचर्स की पोस्ट स्वीकृत है. लेकिन सिर्फ 81 डॉक्टर टीचर्स ही कार्यरत है. इसमें से भी 25 के फिलहाल ट्रांसफर हो गए है. ऐसे में खाली पोस्ट की संख्या ओर बढ़ गई है. मेडिकल कॉलेज में 142 डॉक्टर टीचर्स के पोस्ट वेंकेट हैं. इसमें प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर, असिस्टेंट प्रोफेसर, सीनियर डेमोंस्ट्रेटर ओर सीनियर रेजिडेंट्स के पोस्ट खाली है. ऐसे में एमबीबीएस की पढ़ाई कर रहे स्टूडेंट्स की पढ़ाई चौपट हो रही है.
डॉक्टर गए तो डिपार्मेंट ही खाली
मेडिकल कॉलेज के पूर्व प्रिंसिपल ओर सर्जरी विभाग के प्रमुख डॉ महेश मोहन पुकार का चूरू मेडिकल कॉलेज में ट्रांसफर हो गया. इसके अलावा माइक्रो बायलॉजी विभाग में 2 डॉक्टर कार्यरत थे. दोनों का ट्रांसफर होने के बाद ये डिपार्टमेंट पूरी तरह से खाली हो गया है. डॉ विपुल माथुर ने नौकरी छोड़ दी. जबकि डॉ अभिनित महरोत्रा का भरतपुर ट्रांसफर हो गया है.
डॉक्टरो के नहीं आने ओर ट्रांसफर के ये प्रमुख कारण
1. सरकार की ओर से रिमोट एरिया (पिछड़ा क्षेत्र) अलाउंस (करीब 30 से 35 हजार रुपए हर महीने) का बंद कर दिया है.
2. बॉन्डेड कैंडिडेट (पोस्ट पीजी) का पद स्थापन डूंगरपुर में नहीं करना
3. कॉलेज की शहर से दूरी 10 किमी. (बिजली, पानी, आवास जैसी सुविधाओं की कमी)
नॉन टीचिंग स्टाफ भी नहीं है, खुद डॉक्टर टीचर्स कर रहे काम
मेडिकल कॉलेज खुलने के 7 साल बाद भी नॉन टीचिंग स्टाफ की भी भारी कमी है. देखा जाए तो मेडिकल कॉलेज में नॉन टीचिंग स्टाफ के 60 से ज्यादा पद स्वीकृत है. जबकि कार्यरत स्टाफ बहुत ही कम है. इसकी बड़ी वजह यूटीबी कर्मचारियों की कम सैलरी. वही राजमेस मेडिकल कॉलेज में अब यूटीबी की जगह ठेका पद्धति से कर्मचारियों की भर्ती. जिसमे 6 से 7 हजार रुपए का कम वेतन. ये वेतन मनरेगा योजना में काम करने वाले मजदूरों से भी कम है. ऐसे में स्किल स्टाफ का मिलना मुश्किल है. खाली पदों की वजह से डॉक्टर टीचर्स को ही नॉन टीचिंग स्टाफ का काम भी करना पड़ रहा है.
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