2012 दिल्ली गैंगरेप: निर्भया से दरिंदगी का वो गवाह, जो अब खुद-ब-खुद खत्म हो रहा है
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2012 दिल्ली गैंगरेप: निर्भया से दरिंदगी का वो गवाह, जो अब खुद-ब-खुद खत्म हो रहा है

Delhi Gang Rape: 16 दिसंबर 2012 की वो दर्दनाक और काली रात आज भी लोगों को जब याद आती है, तब रूह कांप जाती है. इस जघन्य घटना ने पूरे देश को स्तब्ध कर दिया और पूरे देश में उग्र विरोध प्रदर्शन हुए. 8 साल की कानूनी लड़ाई के बाद 2020 में आरोपियों को फांसी दी गई.

2012 दिल्ली गैंगरेप: निर्भया से दरिंदगी का वो गवाह, जो अब खुद-ब-खुद खत्म हो रहा है

Nirbhaya Gang Rape Story: 16 दिसंबर 2012... रविवार का दिन... रात का समय और दिल्ली की कंपकंपाती सर्दी... वो काली रात आज भी लोगों को जब याद आती है, तब रूह कांप जाती है. साल 2012 के आखिरी महीने का दूसरा सप्ताह दिल्ली की निर्भया पर कहर बनकर टूटा. 16 दिसंबर 2012 को निर्भया (बदला नाम) के साथ चलती बस में गैंग रेप (2012 Delhi Gang Rape) किया गया. इसके बाद ठिठुरती सर्द रात में बस से बाहर फेंक दिया गया. जिस बस (DL01PC0149) में उस घटना का अंजाम दिया गया था, वो आज भी दिल्ली के ईस्ट सागरपुर ग्राउंड के किनारे पर खड़ी है.

12 साल पहले कांप उठा था पूरा देश

दक्षिण-पश्चिम दिल्ली के सागरपुर कॉलोनी और कैलाशपुरी के बीच मौजूद 'मेला ग्राउंड' के एक कोने में टूटी-फूटी गाड़ियों की ढेर लगी है, जो धूप और बारिश में खड़े-खड़े जंग खा रही हैं. इनके बीच ही खड़ी है, वो बस जिसमें निर्भया के साथ गैंग रेप की घटना को अंजाम दिया गया था. व्हाइट कलर की इस बस के साइड में बड़े-बड़े अक्षरों में 'यादव' लिखा हुआ है. इसे आखिरी बार 16 दिसंबर, 2012 को चलाया गया था. इस बस में अंतिम सवारी 22 साल पैरामेडिकल छात्रा निर्भया और उसके दोस्त थे. 12 साल पहले उस रात छह लोगों ने बस में निर्भया के साथ बलात्कार किया और उसके दोस्त पर हमला किया. इस जघन्य घटना ने पूरे देश को स्तब्ध कर दिया और पूरे देश में उग्र विरोध प्रदर्शन हुए. इसके बाद महिलाओं की सुरक्षा के लिए कानूनों में व्यापक बदलाव किए गए.

आज भी उस क्रूर रात के निशान मौजूद

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, आईपीएस अधिकारी छाया शर्मा बताती हैं कि लोग मानते हैं कि अपराध उस जगह पर हुआ, जहां महिला का शव फेंका गया था, लेकिन अपराध का वास्तविक स्थान चलती बस थी. जहां अभी भी उस क्रूर रात के निशान मौजूद हैं. बस नंबर DL01PC0149 आज भी पूर्वी सागरपुर मैदान के किनारे पर जर्जर हालत में खड़ी है, जो उस घटना का गवाह है.

10 दिन के भीतर पकड़े गए सभी 6 आरोपी

निर्भया को 16 दिसंबर 2012 को सफदरजंग अस्पताल में भर्ती कराया गया. पुलिस ने उसी दिन आरोपियों की पहचान कर ली थी, जिसमें बस ड्राइवर राम सिंह, उसका भाई मुकेश सिंह, विनय शर्मा और पवन गुप्ता शामिल थे. अगले दिन चारों को गिरफ्तार कर लिया गया. 21 दिसंबर को पांचवें आरोपी को दिल्ली के आनंद विहार बस टर्मिनल से गिरफ्तार किया गया, जो नाबालिग था. छठे संदिग्ध अक्षय ठाकुर को 22 दिसंबर को बिहार के औरंगाबाद से गिरफ्तार किया गया.

दिल्ली की वो दर्दनाक रात..

निर्भया अपने दोस्त के साथ साकेत के मॉल से निकली थी और मुनीरका में बस स्टॉप पर बस का इंतजार कर रही थी. काफी देर इंतजार करने के बाद कोई बस नहीं आई तो दोनों परेशान हो रहे थे. इस बीच करीब 9.30 बजे एक सफेद बस रुकी और कंडक्टर ने उन्हें बस में बुलाया. बस खाली थी, इस वजह से दोनों थोड़ी हिचक हो रही थी, लेकिन फिर भी घर जाने की जल्दी में दोनों बस में चढ़ गए. इसके तुरंत बाद कंडक्टर ने दरवाजा बंद कर दिया. बस में ड्राइवर समेत कुल 6 लोग मौजूद थे और कुछ दूर जाते ही उन्होंने छेड़खानी शुरू कर दी. विरोध करने पर उन्होंने निर्भया और उसके दोस्त के साथ मारपीट की. इसके बाद उन्होंने निर्भया के साथ चलती बस में सामूहिक रूप से बलात्कार किया. उन दोनों को ठिठुरती सर्द रात में बस से बाहर फेंक दिया.

8 साल की लंबी लड़ाई, फिर हुई दोषियों को फांसी..

घटना के बाद वहां से गुजरने वालों ने पुलिस को इसकी सूचना दी और निर्भया को दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में भर्ती कराया गया. लेकिन, 25 दिसंबर को हालत ज्यादा खराब होने लगी, तब सरकार ने सिंगापुर के माउंट एलिजाबेथ अस्पताल पहुंचाया. लेकिन, 17 दिनों की जंग के बाद निर्भया हार गई और 29 दिसंबर को सिंगापुर केअस्पताल में ही मौत हो गई.

इस घटना के बाद केस चल रहा था, जब आरोपी राम सिंह ने 11 मार्च 2013 को तिहाड़ जेल के अंदर आत्महत्या कर ली. इसके बाद 10 सितंबर 2013 को कोर्ट ने आरोपी मुकेश, विनय, अक्षय और पवन को सामूहिक बलात्कार, अप्राकृतिक अपराध, निर्भया की हत्या और उसके दोस्त की हत्या के प्रयास सहित 13 अपराधों में दोषी ठहराया. 13 सितंबर 2013 को कोर्ट ने 4 दोषियों को मौत की सजा सुनाई. नाबालिग को सुनवाई के बाद दोषी ठहराया गया और उसे सुधार गृह भेज दिया गया. इसके बाद मामला दिल्ली हाई कोर्ट पहुंचा और दिल्ली हाई कोर्ट ने 13 मार्च 2014 को चारों दोषियों की मौत की सजा बरकरार रखी.

इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और कोर्ट ने 15 मार्च 2014 को दो दोषियों मुकेश और पवन की अपील पर उनकी फांसी पर रोक लगा दी. बाद में सुप्रीम कोर्ट ने अन्य दोषियों की फांसी पर भी रोक लगा दी. तीन साल तक सुधार गृह में रहने के बाद नाबालिग आरोपी को 2015 में रिहा कर दिया गया. 3 फरवरी 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह दोषियों की फांसी की सजा दिए जाने के पहलू पर नए सिरे से सुनवाई करेगा. सुनवाई के बाद 27 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया और 5 मई को सुप्रीम कोर्ट ने दुर्लभतम मामला बताते हुए चार दोषियों की मृत्युदंड की सजा बरकरार रखी. 8 नवंबर 2017 को मुकेश ने मृत्युदंड की सजा को बरकरार रखने के फैसले की समीक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया, जिसका दिल्ली दिल्ली पुलिस ने विरोध किया.

15 दिसंबर 2017 को विनय शर्मा और पवन कुमार गुप्ता ने भी अपने फैसले की समीक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया. हालांकि, 9 जुलाई 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने तीन दोषियों की समीक्षा याचिका खारिज कर दी. 10 दिसंबर 2019 को अक्षय ने अपनी मौत की सजा की समीक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दी, लेकिन 18 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने अक्षय की समीक्षा याचिका भी खारिज कर दी.

19 दिसंबर 2019 को दिल्ली हाई कोर्ट ने पवन कुमार गुप्ता की याचिका खारिज कर दी, जिसमें उसने दावा किया था कि अपराध के समय वह नाबालिग था. इसके बाद 7 जनवरी 2020 को दिल्ली की अदालत ने 4 दोषियों को 22 जनवरी को सुबह 7 बजे तिहाड़ जेल में फांसी देने का आदेश दिया. फिर 14 जनवरी 2020 को सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की बेंच ने दो दोषियों मुकेश सिंह और विनय शर्मा द्वारा दायर की गई सुधारात्मक याचिकाओं को खारिज कर दिया. इसके बाद मुकेश ने राष्ट्रपति के समक्ष दया याचिका दायर की. लेकिन, 17 जनवरी 2020 को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने मुकेश कुमार की दया याचिका खारिज कर दी.

17 जनवरी 2020 को दिल्ली की अदालत ने चारों दोषियों को 1 फरवरी को सुबह 6 बजे फांसी देने के लिए नया वारंट जारी किया. इसके बाद मुकेश सिंह और अक्षय ठाकुर फिर सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए, लेकिन कोर्ट ने दोनों की याचिका खारिज कर दी. 31 जनवरी 2020 को दिल्ली की ट्रायल कोर्ट ने अगले आदेश तक डेथ वारंट को निलंबित कर दिया, क्योंकि विनय शर्मा और अक्षय ठाकुर की दया याचिकाएं लंबित थीं. 1 फरवरी को राष्ट्रपति कोविंद ने विनय शर्मा की दया याचिका खारिज कर दी. 5 फरवरी को राष्ट्रपति कोविंद ने अक्षय ठाकुर की याचिका खारिज कर दी.

14 फरवरी 2020 को सुप्रीम कोर्ट ने दया याचिका खारिज किए जाने के खिलाफ विनय शर्मा की अपील को खारिज कर दिया. 17 फरवरी को ट्रायल कोर्ट ने 3 मार्च को सुबह 6 बजे चारों दोषियों को फांसी देने के लिए नया डेथ वारंट जारी किया. 29 फरवरी अक्षय ठाकुर और पवन गुप्ता ने दिल्ली की एक स्थानीय अदालत में याचिका दायर कर 3 मार्च को निर्धारित अपनी फांसी पर तीसरी बार रोक लगाने की मांग की. 2 मार्च को पवन गुप्ता द्वारा दायर क्यूरेटिव याचिका खारिज कर दी गई. उसने मौत की सजा के बजाय आजीवन कारावास की मांग की थी. 4 मार्च को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने पवन गुप्ता की दया याचिका खारिज कर दी.

इसके बाद 5 मार्च को दिल्ली की एक अदालत ने 20 मार्च को सुबह 5.30 बजे चारों दोषियों को फांसी पर लटकाने का आदेश दिया, जो इस मामले में अदालत द्वारा जारी किया गया चौथा डेथ वारंट था. 6 मार्च अक्षय ठाकुर, पवन गुप्ता और विनय शर्मा ने अपनी मौत की सजा पर रोक लगाने के लिए इंटरनेशनल कोर्ट का रुख किया. 17 मार्च को अक्षय ठाकुर ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के समक्ष दूसरी दया याचिका दायर की. 18 मार्च को दिल्ली हाई कोर्ट ने मुकेश की याचिका खारिज कर दी, जिसमें उसने दावा किया था कि अपराध के समय वह दिल्ली में नहीं था.

18 मार्च को ही दोषियों ने अपनी मौत की सज़ा पर रोक लगाने के लिए दिल्ली की एक अदालत का रुख किया, जिसमें कहा गया कि उनमें से एक की दूसरी दया याचिका अभी भी लंबित है. 19 मार्च को दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने मुकेश सिंह, अक्षय ठाकुर, पवन गुप्ता और विनय शर्मा की फांसी रोकने की सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया. इसके बाद 20 मार्च 2020 को दिल्ली की तिहाड़ जेल में सुबह 5:30 बजे चारों दोषियों को फांसी दे दी गई. लंबी कानूनी लड़ाई के बाद आखिरकार 20 मार्च 2020 को निर्भया को इंसाफ मिला.

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