ऐतिहासिक स्मारकों की नगरी शिवपुरी से करीब 40 किमी दूर है नरवर का यह विशाल किला. महाभारत में इस जगह की चर्चा राजा नल की राजधानी के रूप में की गई है. यहां से मिले संस्कृत के अभिलेख बताते हैं कि यह जगह प्राचीन समय में नलपुर के नाम से जानी जाती थी.
12वीं शताब्दी से नरवर किले पर कछवाहा, प्रतिहार और तोमर वंश का शासन रहा. बाद में यह किला मुगलों के अधीन भी रहा. आगे चलकर 18वीं शताब्दी में किला सिंधिया राजवंश के अधीन भी रहा.
कालीसिंध नदी के पूर्व में स्थित यह किला कछवाहा शासकों ने बनवाया था. किले पर उनकी शैली का असर काफी दिखाई देता है. पुरातत्वविद अलेक्जेंडर कनिंघम ने 1864-65 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के खंड में 2 में किले की विस्तार से चर्चा की है.
नरवर न सिर्फ नल दमयंती की प्रेम कहानी के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि कहा जाता है कि तोमर शासक मानसिंह और मृगनयनी की प्रेम कहानी भी इसी जगह से जुड़ी हुई है. पूरा नरवर किला 12 कोस यानी 36 किमी के दायरे में फैला हुआ है. हजारों सीढ़ी चढ़ने के बाद ही यहां तक पहुंचा जा सकता है.
किले का संपूर्ण क्षेत्र अहातों में बंटा हुआ है. कुदरत ने इस जगह चारों ओर से हरियाली और पेड़ पौधों से सराबोर कर रखा है. इसके चारों ओर पहाड़ और अनुपम घाटी एक खूबसूरत नजारा बनाती हैं.
नरवर किले का वास्तुशिल्प भारतीय किलों के अद्भुत उदाहरणों में से एक है. किले में गहरी खाई और मजबूत दीवारें हैं, जो दुश्मनों के हमलों से रक्षा करती थीं. किले की बनावट में हिंदू और इस्लामी वास्तुकला का मिश्रण देखा जा सकता है, जो उस समय के सांस्कृतिक समागम को दर्शाता है. किले के भीतर कई मंदिर और जलाशय भी हैं, जो उसकी प्राचीन भव्यता और धार्मिक महत्व को व्यक्त करते हैं.
नरवर किला न केवल एक सैन्य किला था, बल्कि एक सांस्कृतिक और धार्मिक स्थल भी था. किले में कई मंदिरों और धार्मिक स्थल का निर्माण हुआ था, जिनमें प्रमुख रूप से भगवान शिव के मंदिर थे. इन मंदिरों में धार्मिक अनुष्ठान होते थे और किले का यह क्षेत्र आस्था और भक्ति का केंद्र था.
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