Former PM Manmohan Singh Death: पूर्व पीएम मनमोहन सिंह के आत्मविश्वास से भरे शब्दों के विपरीत आर्थिक सुधार लाने का फैसला भारत की एक मजबूरी थी, जो अपने इतिहास के सबसे बड़े आर्थिक संकट से गुजर रहा था.
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Liberalization, Privatization and Globalization: "एक राष्ट्र के तौर पर हमारी प्राथमिकताओं को फिर से तय करने की जरूरत है, ताकि हर भारतीय के लिए स्वस्थ और गरिमामयी जीवन सुनिश्चित हो सके." ये विचार देश के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के हैं. साल 1991 था और उस वक्त देश में पीवी नरसिम्हा राव की सरकार आई थी. देश में लाइसेंसी राज चलता था. उस समय देश एक गंभीर आर्थिक संकट का सामना कर रहा था. हालात ये थे कि देश में एक आदमी की एक महीने की औसत कमाई 538 रुपये महीना थी.
उस समय डॉलर भी 17.9 रुपये का हुआ करता था. दूध 5.5 रुपये लीटर आता था. उस वक्त तक रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के गवर्नर का पद डॉक्टर मनमोहन सिंह संभाल चुके थे. देश के हालात सुधारने और लोगों के लाइफ स्टाइल में बदलाव लाने के लिए वित्त मंत्रालय की कमान डॉ मनमोहन मनमोहन सिंह के हाथों दी गई.
क्या था परमिट राज?
80 के दशक तक सरकार तय करती थी कि किस इंडस्ट्री में कितना प्रोडक्शन होगा. सीमेंट, कार से लेकर बाइक के प्रोडक्शन तक हर सेक्टर में सरकार का कंट्रोल था. इस सिस्टम को लाइसेंस परमिट राज के नाम से जाना जाता है. नतीजा यह था कि 1991 में जब मनमोहन सिंह वित्तमंत्री बने तब भारत में विदेशी मुद्रा का भंडार केवल 5.80 अरब डॉलर रह गया था, जिससे सिर्फ दो हफ्तों तक ही आयात किया जा सकता था. ये एक गंभीर आर्थिक समस्या थी.
जब जिम्मेदारियां मिलते ही आईं चुनौतियां
तत्कालीन केंद्र सरकार ने देश में लाइसेंस राज लगभग खत्म कर दिया. इससे किस चीज का कितना प्रोडक्शन होगा और उसकी कितनी कीमत होगी, इन सबका फैसला बाजार पर ही छोड़ दिया गया. सरकार ने करीब 18 इंडस्ट्रीज को छोड़कर बाकी सभी के लिए लाइसेंस की जरूरत को खत्म कर दिया.
वित्त मंत्री के रूप में जब उनको जिम्मेदारियां मिलीं तो उनके सामने कई चुनौतियां सामने आईं. जैसे, शेयर बाजार में हर्षद मेहता घोटाला, इंपोर्ट के लिए जटिल लाइसेंसिंग सिस्टम समेत विदेशी पूंजी निवेश पर सरकारी रोक. मानो घरेलू अर्थव्यवस्था की रफ्तार एकदम थमी पड़ी थी.
और पड़ गई मजबूत भारत की नींद
इंपोर्ट-एक्सपोर्ट की पॉलिसी में बदलाव से घरेलू अर्थव्यवस्था के दरवाजे दुनिया के लिए खुल गए. इसका नतीजा ये हुआ कि मजबूत भारत की नींव पड़ी. 1991 में पेश इस केंद्रीय बजट के साथ ही सरकार अर्थव्यवस्था के लिए LPG यानी लिबरलाइजेशन, प्राइवेटाइजेशन और ग्लोबलाइजेशन का मॉडल लेकर आई थी. यही वो तीन शब्द थे जो जिन्होंने भारतीय इकोनॉमी का 'नक्शा' ही बदल दिया. इसका सीधा असर आम लोगों पर दिखने लगा. रहन-सहन के साथ उनके खर्च और आमदनी दोनों पर भी सीधा असर पड़ा.
जब कही भारत के वर्ल्ड पावर बनने की बात
इकोनॉमी को बूस्ट करने का श्रेय उस समय के प्रधानमंत्री नरसिंह राव और उनके वित्त मंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह की जोड़ी को दिया जाता है. डॉक्टर सिंह ने उस बजट को पेश करते हुए फ़्रांसीसी थिंकर विक्टर ह्यूगो के शब्दों का इस्तेमाल करत्ते हुए संसद में कहा था, "पृथ्वी की कोई भी शक्ति उस विचार को नहीं रोक सकती जिसका समय आ गया हो."
डॉक्टर सिंह के कहने का मतलब ये था कि भारत का एक प्रमुख वैश्विक शक्ति और एक आर्थिक ताक़त के रूप में उभरना एक ऐसा विचार है जिसका समय आ गया था और उसे कोई रोक नहीं सकता.