Delhi Mein Aap Ke 10 Saal: शुरुआत ईमानदारी से, अंत विवादों में... केजरीवाल के फैसलों ने कैसे डुबोई AAP?
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Delhi Mein Aap Ke 10 Saal: शुरुआत ईमानदारी से, अंत विवादों में... केजरीवाल के फैसलों ने कैसे डुबोई AAP?

Delhi Mein Aap Ke 10 Saal: 2025 का चुनाव आम आदमी पार्टी के लिए सिर्फ एक हार नहीं, बल्कि उसके भविष्य का बड़ा सवाल बन गया है. क्या पार्टी दोबारा मजबूती से खड़ी हो पाएगी? क्या केजरीवाल कोई नई रणनीति अपनाएंगे? या फिर AAP सिर्फ इतिहास का एक हिस्सा बनकर रह जाएगी? इन सवालों के जवाब आने वाले समय में ही मिलेंगे.

 

Delhi Mein Aap Ke 10 Saal: शुरुआत ईमानदारी से, अंत विवादों में... केजरीवाल के फैसलों ने कैसे डुबोई AAP?

Delhi Mein Aap Ke 10 Saal: दिल्ली की राजनीति में आम आदमी पार्टी (AAP) एक बड़े बदलाव के रूप में उभरी थी. 2013 में संगठन से शुरू अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में पार्टी ने सत्ता में एंट्री मारी और देखते ही देखते दिल्ली की राजनीति की धुरी बन गई. लेकिन 2025 में सत्ता गंवाने के बाद AAP का भविष्य अधर में लटकता दिख रहा है. पार्टी जिसने भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई और 'काम की राजनीति' का वादा किया था, उसी के फैसलों ने उसकी चमक को फीका कर दिया.

शुरुआत में उम्मीदों का दौर
2013 में जब अरविंद केजरीवाल ने पहली बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, तो जनता को लगा कि दिल्ली में एक नई राजनीति की शुरुआत हुई है. फ्री बिजली-पानी, मोहल्ला क्लीनिक, सरकारी स्कूलों में सुधार जैसे फैसलों ने AAP को जनता के बीच लोकप्रिय बनाया. 2015 और 2020 के विधानसभा चुनावों में पार्टी को जबरदस्त बहुमत मिला, जिससे दिल्ली में AAP की पकड़ मजबूत होती चली गई. लेकिन राजनीति में लोकप्रियता बनाए रखना जितना मुश्किल होता है, उतना ही जरूरी सही फैसले लेना भी होता है. केजरीवाल सरकार ने कई ऐसे फैसले लिए जिन्होंने पार्टी की छवि पर सवाल खड़े कर दिए.

विवादों में घिरी सरकार

आबकारी नीति घोटाला
दिल्ली की नई शराब नीति को लेकर सरकार पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे. इस घोटाले के चलते उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया जेल पहुंचे और पार्टी की छवि को बड़ा झटका लगा. यह वही पार्टी थी जिसने पारदर्शिता और ईमानदारी की राजनीति का वादा किया था, लेकिन खुद ही घोटालों में घिर गई.

कानूनी लड़ाई और LG से टकराव
दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल (LG) के बीच सत्ता को लेकर लगातार टकराव चलता रहा. AAP ने इसे 'जनता के हक की लड़ाई' बताया, लेकिन इससे प्रशासनिक कामकाज प्रभावित हुआ. कोर्ट के कई फैसले AAP सरकार के खिलाफ गए, जिससे उसकी साख को नुकसान हुआ.

विपक्ष से टकराव और सहयोगियों की नाराजगी
2024 के लोकसभा चुनावों में AAP ने विपक्षी गठबंधन का हिस्सा बनकर भाजपा को चुनौती देने की कोशिश की, लेकिन सहयोगियों से तालमेल की कमी और अंदरूनी मतभेदों ने पार्टी को कमजोर कर दिया. पार्टी के अंदर नेताओं में असंतोष बढ़ता गया, जिससे AAP की पकड़ कमजोर होती गई.

फ्री सुविधाओं की राजनीति बनी भारी
फ्री बिजली, पानी और अन्य सुविधाओं की राजनीति ने शुरू में AAP को सत्ता दिलाई, लेकिन लंबे समय तक इसे बनाए रखना मुश्किल हो गया। सरकारी खजाने पर दबाव बढ़ा और विकास कार्य धीमे हो गए. विरोधियों ने इसे 'लॉलीपॉप राजनीति' कहा कि जिससे AAP की नीति पर सवाल उठने लगे.

2025 की हार और आतिशी का इस्तीफा
2025 के दिल्ली विधानसभा चुनावों में जब नतीजे आए, तो जनता ने AAP को झटका दे दिया. भाजपा ने 70 में से 48 सीटें जीतकर सत्ता में वापसी की, जबकि AAP मात्र 22 सीटों पर सिमट गई. मुख्यमंत्री आतिशी ने हार की जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा दे दिया.

क्या बचा पाएगी AAP अपनी पहचान?
AAP के लिए 2025 का चुनाव सिर्फ हार नहीं, बल्कि उसके अस्तित्व का बड़ा सवाल बन गया है. क्या पार्टी फिर से खड़ी हो पाएगी? क्या केजरीवाल कोई नई रणनीति लेकर आएंगे? या AAP सिर्फ एक ऐतिहासिक प्रयोग बनकर रह जाएगी? इन सवालों के जवाब आने वाले वर्षों में ही मिल पाएंगे.

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