दिल्ली में पहली बार विपक्ष में बैठने जा रही AAP, क्या-क्या सीखना होगा केजरीवाल की पार्टी को?
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दिल्ली में पहली बार विपक्ष में बैठने जा रही AAP, क्या-क्या सीखना होगा केजरीवाल की पार्टी को?

Delhi Election 2025 : आम आदमी पार्टी के कई नेता अब तक अपने बयानों को लेकर विवादों में रहे हैं. सोशल मीडिया से लेकर विधानसभा तक, कई बार उनकी भाषा मर्यादा की सीमा पार कर जाती है. अब जब वे खुद विपक्ष में हैं, तो उन्हें भाजपा नेताओं पर सीधा आरोप लगाने के बजाय तर्क और तथ्यों के आधार पर विरोध करना सीखना होगा.

 

दिल्ली में पहली बार विपक्ष में बैठने जा रही AAP, क्या-क्या सीखना होगा केजरीवाल की पार्टी को?

Delhi Election Results 2025: दिल्ली की राजनीति में इस बार एक बड़ा बदलाव देखने को मिला है. लगातार सत्ता में रहने के बाद आम आदमी पार्टी (AAP) को पहली बार विपक्ष में बैठने की नौबत आई है. अरविंद केजरीवाल जो अब तक दिल्ली की सत्ता के केंद्र में थे, उन्हें अब नई भूमिका निभानी होगी. सवाल यह उठता है कि क्या AAP विपक्षी राजनीति में खुद को ढाल पाएगी? क्या केजरीवाल और उनकी पार्टी के नेता अब उस भूमिका को निभा सकेंगे, जो कभी उन्होंने कांग्रेस और भाजपा से उम्मीद की थी?

विपक्ष में बैठना क्यों होगा चुनौती?
राजनीतिक विशेषज्ञों के अनुसार आम आदमी पार्टी की पहचान हमेशा एक आंदोलनकारी पार्टी की रही है. भ्रष्टाचार और पारदर्शिता के मुद्दे पर जन्मी यह पार्टी सत्ता में आने से पहले तक सड़कों पर संघर्ष करती नजर आती थी, लेकिन जब AAP सरकार में आई, तो विपक्ष की भूमिका निभाने वाली भाजपा और कांग्रेस पर तोहमतें लगाती रही कि वे गैर-जिम्मेदार विपक्ष हैं. अब जब AAP खुद विपक्ष में बैठेगी, तो क्या वही गलती दोहराएगी या एक जिम्मेदार विपक्ष की भूमिका निभाएगी.

सवाल उठाने का तरीका सीखना होगा
विपक्ष की सबसे बड़ी जिम्मेदारी सरकार की नीतियों पर सवाल उठाना और जनहित के मुद्दों को मजबूती से उठाना होता है. AAP ने अब तक आरोप लगाने और धरना-प्रदर्शन की राजनीति को ही प्राथमिकता दी है, लेकिन अब उन्हें संसदीय प्रणाली के तहत विपक्ष की भूमिका निभानी होगी.

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व्यक्तिगत हमलों से बचना होगा
आम आदमी पार्टी के कई नेता अब तक व्यक्तिगत हमलों के लिए जाने जाते रहे हैं. सोशल मीडिया से लेकर विधानसभा तक, AAP के नेताओं की भाषा कई बार मर्यादा की सीमा लांघ जाती है. अब जब वे खुद विपक्ष में हैं, तो उन्हें भाजपा के नेताओं पर आरोप लगाने की बजाय तर्कसंगत और तथ्यों पर आधारित विरोध करना सीखना होगा.

जनता के मुद्दों को सही मंच पर उठाना होगा
विपक्ष में रहते हुए सड़क पर प्रदर्शन करना एक रणनीति हो सकती है, लेकिन विधानसभा में प्रभावी सवाल पूछना, नीतियों पर चर्चा करना और सरकार की जवाबदेही तय करना अधिक महत्वपूर्ण होता है. क्या AAP यह भूमिका निभाने के लिए तैयार है?

गठबंधन राजनीति को समझना होगा
दिल्ली में आम आदमी पार्टी को अब कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों के साथ मिलकर काम करना होगा. क्या AAP जो अब तक कांग्रेस पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाती रही है, अब विपक्ष में रहते हुए उसके साथ तालमेल बिठा सकेगी? यह एक बड़ा सवाल है.

क्या केजरीवाल के लिए यह बड़ा झटका है?
अरविंद केजरीवाल के लिए यह चुनावी हार सिर्फ एक राजनीतिक असफलता नहीं, बल्कि उनकी रणनीति पर भी सवाल खड़े करती है. AAP ने अब तक खुद को सिर्फ एक सत्ताधारी पार्टी के रूप में देखा था, लेकिन अब उन्हें विपक्ष के तौर पर खुद को साबित करना होगा.

क्या AAP विपक्ष में टिक पाएगी?
राजनीतिक विशेषज्ञों के अनुसार यह कहना जल्दबाजी होगी कि AAP एक मजबूत विपक्ष की भूमिका निभा सकेगी या नहीं, लेकिन इतना तय है कि पहली बार विपक्ष में बैठने से पार्टी के नेतृत्व और संगठन की असली परीक्षा शुरू हो गई है. अगर AAP ने विपक्ष में भी वही पुरानी शैली अपनाई, तो उसे 2029 के चुनाव में और भी बड़े संकट का सामना करना पड़ सकता है.

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