Arvind Kejriwal Catalyst Effect: केजरीवाल की राजनीति की सबसे बड़ी ताकत जनता का सीधा समर्थन रहा है, लेकिन क्या यह समर्थन अब कमजोर हो रहा है. पंजाब में जीत के बाद गोवा में बड़ी हार और फिर पार्टी के बड़े नेताओं पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों ने उनकी छवि को नुकसान पहुंचाया है.
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Arvind Kejriwal and Aap Catalyst Effect: दिल्ली की राजनीति में एक समय अरविंद केजरीवाल का उदय 'राजनीतिक क्रांति' के रूप में देखा गया था. जनता ने उन्हें बदलाव के वाहक के रूप में स्वीकार किया, लेकिन आज हालात बदल चुके हैं. क्या भारतीय राजनीति में केजरीवाल का 'कैटेलिस्ट इफेक्ट' खत्म हो गया है? या फिर यह सिर्फ एक अस्थायी झटका है जिससे वह उबर सकते हैं?
2013 से 2024 तक केजरीवाल का सफर
राजनीतिक विशेषज्ञों के अनुसार 2013 में जब अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली की सत्ता संभाली, तब जनता में एक नई उम्मीद जगी थी. पारंपरिक राजनीति से हटकर उन्होंने एक साफ-सुथरी राजनीति का सपना दिखाया. उनके भाषणों में गुस्सा था, भ्रष्टाचार के खिलाफ आग थी और जनता को एक नया विकल्प मिल रहा था. कांग्रेस और भाजपा की पारंपरिक राजनीति से ऊबी जनता ने उन्हें सिर-आंखों पर बिठाया. लेकिन सत्ता में आने के बाद केजरीवाल के राजनीतिक सफर ने एक अलग मोड़ लिया. केंद्र सरकार से लगातार टकराव, हर मुद्दे पर साजिश की दुहाई और राजनीतिक विरोधियों पर हमले उनकी प्राथमिकता बन गए. धीरे-धीरे उनके समर्थकों को लगने लगा कि केजरीवाल राजनीति में बदलाव लाने के बजाय खुद उसी राजनीति का हिस्सा बन चुके हैं जिसका वे कभी विरोध करते थे.
जनता का समर्थन और सत्ता की हकीकत
केजरीवाल की राजनीति का सबसे मजबूत पक्ष रहा है. जनता का सीधा समर्थन, लेकिन क्या यह समर्थन अब दरक रहा है? पंजाब में जीतने के बाद गोवा में करारी हार अब आम आदमी पार्टी के बड़े नेताओं पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों ने उनकी छवि को झटका दिया है. भ्रष्टाचार से लड़ने का दावा करने वाले केजरीवाल पर उनकी ही पार्टी के नेता सवाल उठा रहे हैं. दिल्ली की आबकारी नीति घोटाले में मनीष सिसोदिया और सत्येंद्र जैन की गिरफ्तारी ने उनकी पार्टी की नैतिकता पर सवाल खड़े कर दिए हैं. ऐसे में जनता का भरोसा कितना बचा है, यह आने वाले चुनावों में साफ हो जाएगा.
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मोदी से टकराव रणनीति या मजबूरी?
एक समय था जब केजरीवाल के भाषणों में सिर्फ जनता के मुद्दे होते थे, लेकिन अब उनकी राजनीति सिर्फ नरेंद्र मोदी के विरोध तक सीमित रह गई है. प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ हर मुद्दे को 'साजिश' बताने की रणनीति कितनी सफल हो रही है, यह सवाल अब खुद आम आदमी पार्टी के भीतर भी उठने लगा है. दिल्ली की जनता केजरीवाल को एक मजबूत मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहती थी न कि सिर्फ केंद्र सरकार से लड़ने वाले नेता के रूप में. यही कारण है कि भाजपा की 'डबल इंजन सरकार' की रणनीति दिल्ली में कारगर होती दिख रही है.
क्या केजरीवाल फिर से खड़े हो सकते हैं?
दिल्ली चुनाव की हार के बाद केजरीवाल के पास अब भी मौका है कि वे अपनी राजनीति को सही दिशा दें. अगर वे जनता के मुद्दों पर वापस लौटते हैं, प्रशासन पर ध्यान देते हैं और विकास को प्राथमिकता देते हैं, तो उनकी वापसी संभव है. लेकिन अगर वे सिर्फ विरोध की राजनीति में उलझे रहे, तो उनका 'कैटेलिस्ट इफेक्ट' इतिहास बन सकता है. अब यह केजरीवाल पर निर्भर करता है कि वे दिल्ली के मुख्यमंत्री बने रहना चाहते हैं या फिर सिर्फ मोदी विरोधी नेता बनकर रहना पसंद करेंगे.
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