CM की दौड़ से पिछड़कर Deputy CM बनकर रह गए प्रवेश वर्मा, पढ़े पूरा फैक्टर
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CM की दौड़ से पिछड़कर Deputy CM बनकर रह गए प्रवेश वर्मा, पढ़े पूरा फैक्टर

Pravesh Verma: बीजेपी का यह फैसला सिर्फ व्यक्तित्व की हार-जीत नहीं, बल्कि एक रणनीतिक चुनाव था. पार्टी ने दिल्ली में अपनी सरकार को स्थिर और प्रभावी बनाने के लिए यह कदम उठाया.

 

CM की दौड़ से पिछड़कर Deputy CM बनकर रह गए प्रवेश वर्मा, पढ़े पूरा फैक्टर

Deputy CM Pravesh Verma: दिल्ली की राजनीति में बड़ा उलटफेर देखने को मिला जब भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने मुख्यमंत्री पद के लिए प्रवेश वर्मा की दावेदारी को नजरअंदाज कर दिया. भाजपा ने दिल्ली की मुख्यमंत्री के रूप में रेखा गुप्ता को चुना है और उपमुख्यमंत्री के रूप में प्रवेश वर्मा को चुना है. 27 साल बाद दिल्ली में सरकार बनाने वाली बीजेपी के इस फैसले ने न केवल राजनीतिक विश्लेषकों को चौंकाया, बल्कि पार्टी के अंदर भी चर्चाओं का दौर शुरू कर दिया. साहिब सिंह वर्मा के बेटे और पश्चिमी दिल्ली से सांसद प्रवेश वर्मा को मुख्यमंत्री बनाने की अटकलें जोरों पर थीं, लेकिन अंतिम फैसला उनके खिलाफ गया. क्या यह सिर्फ एक राजनीतिक संतुलन साधने की कवायद थी या फिर प्रवेश वर्मा के भविष्य की राजनीति के संकेत इसमें छिपे हैं?

राजनीतिक विरासत, लेकिन समीकरण अलग!
प्रवेश वर्मा का राजनीति में प्रवेश उनके पिता की विरासत से जुड़ा हुआ है. साहिब सिंह वर्मा दिल्ली के मुख्यमंत्री रहे थे और जाट समुदाय में उनकी मजबूत पकड़ थी. प्रवेश वर्मा ने भी इसी समुदाय को आधार बनाकर अपनी सियासी पहचान बनाई. 2014 में पहली बार पश्चिमी दिल्ली से लोकसभा सांसद बनने के बाद से ही वे पार्टी के महत्वपूर्ण चेहरों में शामिल हो गए. बीजेपी के अंदरूनी सूत्रों के अनुसार पार्टी के शीर्ष नेतृत्व में यह चर्चा थी कि दिल्ली के मुख्यमंत्री पद के लिए एक ऐसा चेहरा चुना जाए जो संगठन के साथ बेहतर समन्वय बना सके और सभी समुदायों को साधने की क्षमता रखता हो. प्रवेश वर्मा के नाम पर शुरुआती चर्चा हुई, लेकिन कुछ कारणों से उनकी दावेदारी कमजोर पड़ गई.

बीजेपी के फैसले के पीछे की रणनीति
1. जातीय समीकरण और राजनीतिक गणित

दिल्ली में जाट समुदाय एक प्रभावशाली वोट बैंक है, लेकिन बीजेपी की रणनीति केवल इस समुदाय पर निर्भर नहीं थी. दिल्ली के बहुसंख्यक पंजाबी, बनिया, पूर्वांचली और दलित मतदाताओं को ध्यान में रखते हुए बीजेपी ने ऐसा चेहरा आगे बढ़ाने का फैसला किया जो व्यापक समर्थन प्राप्त कर सके. प्रवेश वर्मा की जाट नेता की छवि उनके पक्ष में कम और विपक्ष में ज्यादा गई.

2. संगठन के प्रति निष्ठा और नियंत्रण
बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व ने हमेशा ऐसे नेताओं को प्राथमिकता दी है जो संगठन के प्रति पूरी तरह निष्ठावान हों और जिनका नियंत्रण शीर्ष नेतृत्व के पास बना रहे. प्रवेश वर्मा अपने स्वतंत्र राजनीतिक विचारों और बयानों के कारण कई बार सुर्खियों में रहे हैं, जिससे पार्टी नेतृत्व को आशंका थी कि उनके साथ तालमेल बैठाना आसान नहीं होगा.

3. प्रशासनिक अनुभव की कमी
दिल्ली जैसे चुनौतीपूर्ण प्रदेश में सरकार चलाने के लिए प्रशासनिक अनुभव आवश्यक होता है. प्रवेश वर्मा सांसद रहे हैं, लेकिन उनके पास कोई मंत्री पद या शासन चलाने का सीधा अनुभव नहीं है. बीजेपी ने दिल्ली की कमान ऐसे नेता को सौंपने का मन बनाया जिसके पास प्रशासनिक दक्षता हो और जो केंद्र के साथ तालमेल बनाकर काम कर सके.

4. केजरीवाल विरोध के मुख्य चेहरे नहीं
दिल्ली में बीजेपी की जीत आम आदमी पार्टी (AAP) सरकार के खिलाफ जनता की नाराजगी के कारण हुई. हालांकि प्रवेश वर्मा बीजेपी के आक्रामक नेताओं में से एक हैं, लेकिन चुनाव प्रचार के दौरान पार्टी ने उन्हें अरविंद केजरीवाल के खिलाफ मुख्य चेहरा नहीं बनाया. इससे स्पष्ट था कि पार्टी उन्हें मुख्यमंत्री पद के लिए प्राथमिकता नहीं दे रही थी.

डिप्टी सीएम बनकर क्या प्रवेश वर्मा को मिलेगा भविष्य का मौका?
बीजेपी ने प्रवेश वर्मा को पूरी तरह नजरअंदाज करने के बजाय उन्हें उपमुख्यमंत्री बनाकर एक संतुलन बनाने की कोशिश की है. इससे पार्टी ने जाट समुदाय को यह संदेश दिया कि उन्हें सरकार में पर्याप्त भागीदारी दी जा रही है. हालांकि, यह देखना दिलचस्प होगा कि प्रवेश वर्मा इस नई भूमिका को कैसे निभाते हैं. क्या वह इसे एक अवसर के रूप में देखेंगे और संगठन में अपनी पकड़ मजबूत करेंगे या फिर यह उनके लिए एक अस्थायी पद साबित होगा.

भविष्य में प्रवेश वर्मा की मुख्यमंत्री दावेदारी
राजनीति में मौके खत्म नहीं होते. अगर प्रवेश वर्मा सरकार में अपनी भूमिका को मजबूती से निभाते हैं, संगठन के प्रति अपनी निष्ठा दिखाते हैं, और जनता के बीच अपनी स्वीकार्यता बढ़ाते हैं, तो भविष्य में उनकी मुख्यमंत्री पद की दावेदारी और मजबूत हो सकती है. बीजेपी का यह फैसला केवल व्यक्तित्व की हार-जीत नहीं, बल्कि एक रणनीतिक कदम था. अब यह प्रवेश वर्मा पर निर्भर करता है कि वह इसे अपने राजनीतिक करियर के लिए कैसे इस्तेमाल करते हैं. क्या वह संगठन में रहकर अपनी ताकत बढ़ाएंगे या कोई नया रास्ता अपनाएंगे? यह देखना दिलचस्प होगा. दिल्ली की राजनीति में उनकी अगली चाल पर सबकी नजर रहेगी.

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