Chhath Puja 2024: कब है छठ पूजा, जानें छठी मैया की महिमा और पूजा की परंपराएं
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Chhath Puja 2024: कब है छठ पूजा, जानें छठी मैया की महिमा और पूजा की परंपराएं

Chhath Puja 2024: आचार्य मदन मोहन के अनुसार  छठ पर्व में सूर्य देव को अर्घ्य देकर उनकी कृपा पाई जाती है. सूर्य देव अपनी ऊर्जा से हमारे शरीर और मन को मजबूत बनाते हैं.

Chhath Puja 2024: कब है छठ पूजा, जानें छठी मैया की महिमा और पूजा की परंपराएं

Chhath Puja 2024: छठ पूजा का पर्व विशेष रूप से सूर्य देवता और छठी मैया की उपासना के लिए मनाया जाता है. इस पर्व में महिलाएं अपने बच्चों की लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य की कामना करती हैं और इसके लिए 36 घंटे का निर्जला उपवास करती हैं. यह पर्व चार दिनों तक चलता है और इसमें महिलाएं अपने परिवार के सुख-समृद्धि के लिए पूजा करती हैं. छठ पर्व की शुरुआत कार्तिक माह में दिवाली के छठे दिन होती है. इस बार छठ पूजा का महापर्व 7 नवंबर से शुरू होगा, जब संध्या के समय सूर्य देव को पहला अर्घ्य दिया जाएगा और 8 नवंबर को सुबह का अर्घ्य अर्पित किया जाएगा.

छठ पूजा का महत्व
आचार्य मदन मोहन के अनुसार छठ पर्व में सूर्य देव को अर्घ्य देकर उनकी कृपा प्राप्त की जाती है. माना जाता है कि सूर्य देव अपनी ऊर्जा से हमारे शरीर और मन को सशक्त बनाते हैं. इस व्रत में पूजा के दौरान महिलाएं पानी में खड़ी होकर सूर्य देवता और छठी मैया की आराधना करती हैं. चार दिनों तक चलने वाले इस पर्व में व्रतधारी महिलाएं अपने हाथों से पकाए प्रसाद और विशेष पकवान सूर्य को अर्पित करती हैं.

छठी मैया कौन हैं?
छठी मैया को प्रकृति की देवी माना गया है. मार्कण्डेय पुराण के अनुसार जब ब्रह्मा जी ने पृथ्वी और प्रकृति का निर्माण किया, तो उन्होंने देवी प्रकृति के विभिन्न स्वरूप बनाए. इन्हीं में से एक स्वरूप छठी मैया का है, जिन्हें ब्रह्मा जी की मानस पुत्री भी कहा जाता है. छठी मैया का नाम छठी इसलिए पड़ा क्योंकि यह देवी का छठा स्वरूप है. हिंदू परंपरा में बच्चे के जन्म के छठे दिन इस देवी की पूजा की जाती है, जिससे बच्चे का स्वास्थ्य और जीवन सुरक्षित रहे.

छठ पूजा के चार दिन
पहला दिन: इसे 'नहाय-खाय' कहा जाता है, जहां व्रती पवित्र होकर अपने व्रत की शुरुआत करते हैं.
दूसरा दिन: इस दिन 'खरना' मनाया जाता है, जिसमें व्रती रात में प्रसाद के रूप में गुड़ की खीर और रोटी खाते हैं और फिर निर्जला उपवास शुरू करते हैं.
तीसरा दिन: संध्या अर्घ्य के लिए व्रती शाम को सूर्यास्त के समय नदी या तालाब में खड़े होकर सूर्य देव को पहला अर्घ्य अर्पित करते हैं.
चौथा दिन: सुबह के अर्घ्य के साथ यह पर्व समाप्त होता है, और व्रती उगते सूर्य को अर्घ्य अर्पित कर व्रत तोड़ते हैं.

आचार्य के अनुसार छठ पर्व का महत्व बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश में विशेष रूप से अधिक है, पर अब इसे पूरे देश में हर्षोल्लास से मनाया जाने लगा है. यह पर्व सूर्य देव और छठी मैया की पूजा के माध्यम से जीवन में सुख-शांति, स्वास्थ्य और खुशहाली लाने की प्रार्थना करता है.

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