Gandhi Jayanti Special: फिल्मी पर्दे पर कई बार उकेरे जा चुके हैं बापू, उन पर बनीं ये फिल्में नहीं देखीं तो क्या देखा?
Advertisement
trendingNow0/india/bihar-jharkhand/bihar1376367

Gandhi Jayanti Special: फिल्मी पर्दे पर कई बार उकेरे जा चुके हैं बापू, उन पर बनीं ये फिल्में नहीं देखीं तो क्या देखा?

Gandhi Jayanti Special: बात गांधीजी और फिल्मों की हो तो बाद के सालों में भी कई फिल्में उन पर बनीं, जो भावनात्मक, राजनीतिक, निजी और सामाजिक पहलुओं को बारीकी से कैमरे पर पोट्रे करती हैं

Gandhi Jayanti Special: फिल्मी पर्दे पर कई बार उकेरे जा चुके हैं बापू, उन पर बनीं ये फिल्में नहीं देखीं तो क्या देखा?

पटनाः Gandhi Jayanti Special: पुणे का आगा खां पैलेस, एक 32-35 साल का अंग्रेज पट्ठा लगातार इसकी सीढ़ियां चढ़-उतर रहा था. उसने अजीब तरीके से घुटनों के ऊपर धोती पहन रखी थी और लाठी टेक लेने के बाद भी उसकी चाल लड़खड़ा जाती थी. उसके पैरों में कोई खराबी तो नहीं लगती थी, लेकिन दूर खड़ा एक और अंग्रेज हर बार उससे कह देता था. Do this Again,,,, No No.. Again...

इतनी शिद्दत से चल रही ये सारी कोशिश एक फिल्म के लिए थी, सीढ़ियों पर थे बेन किंग्सले और सामने खड़े थे रिचर्ड एटनबरो. दोनों मिलकर 'गांधी' फिल्म बना रहे थे और सिनेमा पर लिखी रिपोर्टें बताती हैं कि उस दिन बेन ने सैकड़े से अधिक सीढ़ियां चढ़ीं जब तक कि उनकी चाल में एक काठियावाड़ी गुजराती का अंदाज नहीं आ गया.

फिल्म ने जीते 8 ऑस्कर
रिचर्ड, जो ये मेहनत बेन से करा रहे थे, इसके पीछे थी उनकी पीएम रहे नेहरू से वो मुलाकात जो उन्होंने तकरीबन दशकों पहले की थीं. रिचर्ड गांधी फिल्म बनाने का आइडिया लेकर नेहरू से मिलने आए थे. तब भारत के पहले पीएम ने उनसे कहा था कि गांधीजी को देवता की तरह ना दर्शाया जाए. वे लोगों के नेता थे, जन नायक थे इसलिये उन्हें उसी रूप में दिखाया जाए. ऐसा व्यक्ति नहीं, जिससे आप असहमत न हो सकें बल्कि वह जिससे आप बहस करना चाहें. इस बात में कोई दोराए नहीं कि रिचर्ड एटनबरो इसमें सफल रहे थे. इसका नतीजा था कि इस फिल्म ने साल 1983 में 8 ऑस्कर हासिल किए थे.

बापू पर बनी कई फिल्में
वैसे बात गांधीजी और फिल्मों की हो तो बाद के सालों में भी कई फिल्में उन पर बनीं, जो भावनात्मक, राजनीतिक, निजी और सामाजिक पहलुओं को बारीकी से कैमरे पर पोट्रे करती हैं. गांधी का नाम तो आप जान ही चुके हैं, इसी सिरीज में अगली फिल्म है 'द मेकिंग ऑफ महात्मा', श्याम बेनेगल की बनाई ये फिल्म 1996 में सामने आई थी. इसमें एमके गांधी से महात्मा गांधी बनने के सफर को करीने से दिखाया गया था. फिल्म में रजित कपूर बने थे गांधी और गांधी जी के साउथ अफ्रीका वाले दिनों की स्टोरी टेलिंग की थी.

फिल्म- गांधी माई फादर
इस कड़ी में अगली फिल्म है गांधी माई फादर, जिसे फ़िरोज़ अब्बास ख़ान 2007 में लेकर आई थी. फिल्म ने दिखाने के लिए वो विषय चुना जो सबसे कम छुआ गया है. इसमें महात्मा गांधी और उनके बेटे हीरालाल गांधी के आपसी रिश्ते को सामने रखा गया है. फिल्म में अक्षय खन्ना ने हीरालाल गांधी के रूप में अभिनय किया, जबकि दर्शन जरीवाला, महात्मा गांधी की भूमिका में थे. मृत्यु से ठीक पहले गांधी जी ने कहा था हे राम. उनके इसी आखिरी शब्द को फिल्मी कलेवर दिया था साउथ के सुपरस्टार कमल हासन ने. साल 2000 में आई इस फिल्म में नसीरुद्दीन शाह बने थे महात्मा गांधी और शाहरुख खान, अतुल कुलकर्णी, रानी मुखर्जी, गिरीश कर्नाड, ओमपुरी जैसे कलाकार भी मुख्य भूमिका में थे.

मैंने गांधी को नहीं मारा
बात बापू की हो तो गोडसे का नाम भी सामने आ ही जाता है. लेकिन जानहू बरुआ ने 2005 में जब मैंने गांधी को नहीं मारा फिल्म बनाई, तो इसकी कहानी को एक प्रोफेसर के इर्द-गिर्द रखा था. एक रिटायर्ड हिंदी प्रोफेसर, जिसे लगता है कि उसने महात्मा गांधी का खून किया है. अनुपम खेर, उर्मिला मातोंडकर से सजी इस फिल्म को देखना काबिलेगौर है. अनुपम खेर को फिल्म के लिए नेशनल अवार्ड भी मिला है. सिनेमा वाले बापू की बात हो तो संजू बाबा भी याद आ ही जाते हैं. उनके गिरते फिल्मी करियर को बापू की लाठी ने ही उठाया था. ‘लगे रहो मुन्ना भाई’ 21वीं सदी में गांधीजी के विचारों को नए तौर-तरीकों के साथ सामने रखती है और उन्हें प्रासंगिक भी बनाती है. इस फिल्म को लोगों ने काफी पसंद किया था.

बापू कल थे, आज नहीं हैं क्या फर्क पड़ता है. बात तो उनके विचारों को अपनाने की है, उन पर चल पाने की है और उन्हें अपनी पहचान बना लेने की है. अगर ये नहीं हो रहा है तो गांधी की मूर्तियां बेकार हैं और उनकी किताबें बेवजह. बापू की जयंती पर फिलहाल इतना ही. आज देश बापू की 153वीं जयंती मना रहा है.

यह भी पढ़िएः Lal Bahadur Shastri Jayanti: विधायक थीं लाल बहादुर शास्त्री की बहन, इस खास वजह से मिलने पटना आते थे पूर्व प्रधानमंत्री

Trending news