Basant Panchami 2025: बसंत पंचमी पर्व की तैयारी तेज, मां सरस्वती की मूर्तियों को अंतिम रूप देने में जुटे मूर्तिकार
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Basant Panchami 2025: बसंत पंचमी पर्व की तैयारी तेज, मां सरस्वती की मूर्तियों को अंतिम रूप देने में जुटे मूर्तिकार

Jehanabad News: विद्या की देवी सरस्वती पूजा को महज अब दो दिन ही रह गए है, ऐसे में पूजा की तैयारियां तेज हो गई है. मूर्तिकार मां सरस्वती की मूर्ति को अंतिम रूप देने में जुटे हैं. वो माता की छोटी-बड़ी मूर्तियों को सजाने और संवारने में लगे हैं.

बसंत पंचमी पर्व की तैयारी तेज, मां सरस्वती की मूर्तियों को अंतिम रूप देने में जुटे मूर्तिकार

Jehanabad News: सरस्वती पूजा को महज अब दो दिन शेष रह गए है. ऐसे में पूजा की तैयारी हर स्तर पर तेज हो गई है. बिहार के जहानाबाद जिले में मूर्तिकार विद्या की देवी मां सरस्वती की प्रतिमा को अंतिम रूप देने में जुटे हैं. मुर्तीकार छोटी-बड़ी मां सरस्वती की प्रतिमाओं को सजाने और संवारने में लगे हुए हैं. शहर के मलहचक मोड़ के समीप रहने वाले मूर्तिकारों का पूरा परिवार इस कार्य में परंपरागत रूप से जुटे हैं. हालांकि, मूर्तिकारों का कहना है कि लागत के अनुसार उन्हें रेट नहीं मिल पाता, इसके बावजूद वह अपने पारंपरिक व्यवसाय को आगे बढ़ा रहे हैं. मूर्तिकार ने बताया कि मार्केट में डिमांड के अनुसार छोटी-बड़ी सभी तरह की रंग-बिरंगी और आकर्षक मूर्तियां बनाई जा रही है. मूर्तियों को तैयार करने के बाद उसका श्रृंगार किया जा रहा है. इसमें कपड़ा, मुकुट, बाल सहित अन्य श्रृंगार की वस्तुएं लगती है. जिसके बाद मूर्तियां आकर्षक दिखाई देती है.

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सरस्वती पूजा के लिए डिमांड के मुताबिक मूर्तियां बनाई जा रही है, लेकिन बिक्री के समय लागत मूल्य भी हम मूर्तिकारों को नहीं मिल पाता है. महंगाई के कारण मूर्ति की बिक्री काफी कम हो गई है. जिसे लेकर मूर्तिकार परेशान हैं. मूर्तिकारों की माने तो मूर्तियों को बनाने में लागत अधिक लग जाता है, लेकिन उस हिसाब से हमें रेट नहीं मिल पाता है.

वहीं, मूर्तिकारों का कहना है कि मिट्टी की कमी को लेकर भी उन्हें काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है, तो कभी बेमौसम बारिश से भी नुकसान हो जाता है. मूर्तिकार का कहना है कि वे साल में छह महीने मूर्ति बनाने का काम करते हैं और छह माह बेकार हो जाते हैं. सरकार हम मूर्तिकारों पर कोई ध्यान नही देती है. अगर छह माह काम मिल जाता तो हम लोगों के दिन भी संवर जाते. 

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वहीं, एक मूर्तिकार ने बताया कि साल में छः माह मूर्ति बनाने का काम होता है. बीच के तीन माह मुकुट सहित अन्य कार्य में लग जाते हैं. जबकि तीन माह तो बिल्कुल बेरोजगार की तरह जीवन चलता है. चूंकि हमलोगों के पूर्वज शुरू से ही इसी कार्य को करते आए तो हम लोग भी इसी कार्य में लगे हुए हैं. दूसरा कोई और काम भी नहीं मिल रहा है. 

इनपुट - मनीष कुमार 

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