Story of Radha: कभी रोका था खुद का बालविवाह, जानिए 22 बच्चों को इस दलदल से निकालने वाली राधा की कहानी
Advertisement
trendingNow0/india/bihar-jharkhand/bihar1387918

Story of Radha: कभी रोका था खुद का बालविवाह, जानिए 22 बच्चों को इस दलदल से निकालने वाली राधा की कहानी

Story of Radha: कोडरमा की राधा, आज किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं. अपना बाल विवाह रुकवाकर उन्होंने जो साहस दिखाया, अब उसी साहस के जरिए वह अन्य बच्चियों को भी उनका हक समझा रही हैं.

Story of Radha: कभी रोका था खुद का बालविवाह, जानिए 22 बच्चों को इस दलदल से निकालने वाली राधा की कहानी

कोडरमाः Story of Radha: उस समय मेरी उम्र केवल 16 साल थी. मैं भी गांव की दूसरी लड़कियों की तरह सामान्‍य जिंदगी जी रही थी. मेरे गांव का नाम टिकैत टोला है, जो झारखंड के कोडरमा जिले में आता है. एक दिन अचानक मुझे पता चला कि मेरे घरवालों ने मेरा बाल विवाह तय कर दिया है. यह मेरे लिए सदमे की तरह था. मैं तो अभी पढ़ना चाहती थी. कुछ बनना चाहती थी. लेकिन 16 साल की उम्र में शादी! ये कैसे हो सकता है ? मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था. मेरे सपनों में तो ऐसा कुछ नहीं था.

सपने देखने की उम्र में घर वालों ने तय कर दी शादी
अभी ऊपर लिखी जो ढाई पंक्तियां आपने पढ़ी, ये उस लड़की की अपनी कश्मकश थी, जिसने अचानक ही एक दिन उसकी जिंदगी में तूफान खड़ा कर दिया था. झारखंड के कोडरमा का सुदूर गांव और वहां की रहने वाली राधा. वह बताती हैं कि मैं घर के कामों हाथ बंटाते, खेलते-स्कूल जाते बड़ी हो रही थी. 15वें साल के बाद जिंदगी को संवारने के सपने अभी ठीक से देखे भी नहीं थे कि एक दिन मेरे घरवालों ने मेरी शादी तय तय कर दी. उन्होंने अपनी जिंदगी का ये दर्दभरा, लेकिन दिलचस्प किस्सा अपनी ही जुबानी Zee Bihar Jharkhand से शेयर किया है. 

हमेशा अहम रहेगी 10 अक्टूबर की तारीख
बकौल राधा, 10 अक्टूबर की तारीख मेरे लिए हमेशा अहम रहेगी. ये मेरे किसी परिवार वाले, दोस्त-सहेली किसी का जन्मदिन नहीं है. ये मेरे लिए इसलिए खास है क्योंकि 10 अक्टूबर 2014 को कैलाश सत्यार्थी नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित हुए थे. मेरा उनसे यूं तो कोई सीधा रिश्ता नहीं है, लेकिन ये रिश्ता जरूर है कि मेरी जिंदगी में जो नया उजाला आया है, उसके सूरज से मुझे कैलाश सत्यार्थी ने ही रूबरू कराया है. उनकी सिर्फ एक फोन कॉल ने मेरी जिंदगी बदली थी. 

घरवालों को समझाने में रहीं नाकाम
राधा बताती हैं कि घर वालों ने जब शादी तय कर दी तो मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा थी. घरवालों से बात कर उन्‍हें समझाने की कोशिश भी नाकाम रही. तब पहली बार मुझे अहसास हुआ कि बेटी होना ही गुनाह है क्‍योंकि वो परिवार वालों के लिए एक बोझ की तरह होती है. यह अहसास हर रात मेरे जख्‍मों को कुरेदता रहता था. एक-एक दिन बीतता जा रहा था और मैं ‘बालिका वधु’ बनने के करीब होती जा रही थी. मुझे यह तो मालूम था कि 18 साल की उम्र से पहले लड़की की शादी करना गैरकानूनी है क्‍योंकि मैं बाल मित्र ग्राम से जुड़ी हुई थी और उनकी बाल पंचायत की मुखिया भी थी. घरवाले जब बाल विवाह पर अड़ गए तो आखिर में मैंने ‘बाल मित्र ग्राम’ के कार्यकर्ताओं को अपनी मुश्‍किल बताई. ‘बाल मित्र ग्राम’ कैलाश सत्‍यार्थी का ही एक अभिनव प्रयोग है. इसमें यह सुनिश्चित किया जाता है कि गांव में किसी भी बच्‍चे का बाल विवाह न हो, वह बालश्रम या बाल दासता न करे. 

क्या है ‘बाल मित्र ग्राम’
‘बाल मित्र ग्राम’ के कार्यकर्ताओं ने मेरी परेशानी समझी और कैलाश सत्‍यार्थी मेरी बात करवाई. उन्होंने मुझे आश्‍वासन दिया कि मेरा बाल विवाह नहीं होने देंगे. मुझे यकीन ही नहीं हो रहा था कि मैं नोबेल विजेता से बात कर रही हूं. यह अनुभव मेरे लिए अद्भुत था. उन्‍होंने मेरे पिताजी से लंबी बातचीत की और उन्‍हें समझाया. काफी देर बातचीत के बाद मेरे पिताजी बाल विवाह न करने की बात पर राजी हो गए. हालांकि अड़चनें कम नहीं थीं. जहां मेरा बाल विवाह तय किया गया था, अब वो लोग पिता पर दबाव डालने लगे कि विवाह तो करना ही पड़ेगा. समाज की तरफ से भी दबाव आने लगा. 

प्रशासनिक अमले ने दिया साथ
एक बार फिर परेशान होकर मैंने कैलाश सर को फोन किया और इस बारे में बताया. उन्‍होंने फिर दोहराया कि तुम्‍हारा बाल विवाह नहीं होने देंगे. इसके बाद उन्होंने जिले के कलेक्‍टर से बात की और मामले की जानकारी दी. यह उनके फोन का ही असर था कि पूरा प्रशासनिक अमला मेरे साथ खड़ा था. आखिरकार मेरा बाल विवाह रुक गया. जिले के कलेक्‍टर ने खुद घर पर आकर मुझे सम्‍मानित किया और प्रशासन ने मुझे बाल विवाह विरोधी अभियान का जिले का ब्रांड एंबेस्‍डर भी नियुक्‍त किया. 

अब तक रोक चुकी हैं 22 बालविवाह
राधा कहती हैं कि मैं खुद बाल विवाह विरोधी अभियान का नेतृत्‍व कर रही हूं. अभी तक 22 बाल विवाह रुकवा चुकी हूं. इसके अलावा 32 बच्‍चों को बाल मजदूरी के दलदल से निकालकर स्‍कूलों में दाखिला करवा चुकी हूं. आज मैं बीए फर्स्‍ट ईयर की पढ़ाई कर रही हूं. मेरा सपना है कि मेहनत व लगन से पढ़ाई करूं और आगे चलकर आईएएस बनने का सपना पूरा करूं. यह सब कैलाश सत्‍यार्थी जी की देन है. साल 2022 में मुझे पहली बार कैलाश सत्‍यार्थी जी से आमने-सामने मिलने का मौका मिला. इतनी सादगी, सौम्‍यता और विनम्रता, वो भी एक नोबेल विजेता में! यह देखकर मैं सुखद आश्‍चर्य का अनुभव कर रही थी. जब उन्‍होंने प्‍यार से मेरे सिर पर हाथ फेरा तो यह मेरी जिंदगी का अविस्‍मरणीय पल था. राधा कहती हैं कि उन्हें शुक्रिया भी नहीं कहना चाहती, क्‍योंकि यह शब्‍द उनके लिए बहुत छोटा है. बस वह ऐसे ही हम सबको प्रेरित करते रहें ताकि हम भी उनके मिशन में अपना छोटा सा योगदान कर सकें. यही वह भी चाहते हैं कि हर बच्‍चा खुशहाल, शिक्षित, किसी भी शोषण से मुक्‍त, स्‍वस्‍थ और सुरक्षित जीवन जिए.

यह भी पढ़िएः झारखंड में बढ़ें महिलाओं और बच्चियों पर अपराध के मामले, आंकड़ें हैं चौकाने वाले

Trending news