घड़ियाल शिकार करके मछलियों की संख्या में संतुलन बनाए रखते हैं. उनके कारण मछलियों की संख्या आवश्यकता से अधिक नहीं बढ़ती और पारिस्थितिकी तंत्र में व्यवधान को रोका जा सकता है.
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गंगा और उसकी सहायक नदियों में 1,400 से अधिक घड़ियाल और 1,899 कछुए फिर से डाले गए हैं. जल शक्ति मंत्रालय के मुताबिक ऐसा करने से जल की गुणवत्ता में उल्लेखनीय सुधार हुआ है. कछुए और घड़ियाल गंगा के पारिस्थितिकीय स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण होते हैं. कछुए गंगा को प्राकृतिक तरीके से साफ करते हैं, वे सड़ रहे जैव पदार्थ और शैवाल खाते हैं जिससे प्रदूषण को रोकने में मदद मिलती है और नदी में पोषक तत्वों का पुनर्चक्रण सुनिश्चित होता है.
घड़ियाल शिकार करके मछलियों की संख्या में संतुलन बनाए रखते हैं. उनके कारण मछलियों की संख्या आवश्यकता से अधिक नहीं बढ़ती और पारिस्थितिकी तंत्र में व्यवधान को रोका जा सकता है. मंत्रालय के मुताबिक घड़ियाल और कछुओं को नदी में फिर से डालना व्यापक जैव विविधता संरक्षण प्रयासों का हिस्सा है.
केंद्रीय जल शक्ति मंत्री सी आर पाटिल की अध्यक्षता में गंगा संरक्षण पर अधिकार प्राप्त कार्यबल (ईटीएफ) की मंगलवार को 13वीं बैठक के दौरान इस घटनाक्रम पर प्रकाश डाला गया. यह बैठक ‘नमामि गंगे मिशन’ के तहत की गई थी. बैठक में परियोजनाओं की समीक्षा की गई तथा गंगा नदी बेसिन के पुनरुद्धार की पहल पर चर्चा की गई.
मंत्रालय की ओर से जारी एक आधिकारिक बयान के अनुसार, पाटिल ने भारत की सभ्यता, आस्था और आजीविका में गंगा की महत्ता पर जोर दिया तथा इसके संरक्षण को राष्ट्रीय कर्तव्य बताया. उन्होंने परियोजनाओं को समय पर पूरा करने के महत्व पर जोर दिया और हितधारकों से नवीन प्रौद्योगिकियों को अपनाने का आग्रह किया ताकि इनके क्रियान्वयन में देरी को रोका जा सके और परियोजनाओं की दक्षता बढ़ सके.
मिशन का लक्ष्य गंगा की पारिस्थितिकी को मजबूत करने के लिए 1,34,104 हेक्टेयर भूमि पर पौधारोपण करना है. अब तक 33,024 हेक्टेयर भूमि पर पौधारोपण किया जा चुका है तथा 59,850 हेक्टेयर अतिरिक्त भूमि को कवर किया गया है. इन प्रयासों का उद्देश्य ‘हरित बफर क्षेत्र’ बनाना, स्थानीय प्रजातियों को पुनर्स्थापित करना तथा क्षेत्र की वायु एवं जल गुणवत्ता में सुधार करना है.