कभी जुकाम-बुखार में तो कभी धूल-मिट्टी जाने से अक्सर खांसी की समस्या हो जाती है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि भविष्य में सिर्फ आपकी खांसी की आवाज से ही पता चल सकता है कि आपके फेफड़ों में कोई बीमारी है या नहीं.
Trending Photos
कभी जुकाम-बुखार में तो कभी धूल-मिट्टी जाने से अक्सर खांसी की समस्या हो जाती है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि भविष्य में सिर्फ आपकी खांसी की आवाज से ही पता चल सकता है कि आपके फेफड़ों में कोई बीमारी है या नहीं. जी हां, वैज्ञानिकों ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का इस्तेमाल करते हुए एक ऐसी तकनीक विकसित की है जो खांसी की आवाज का विश्लेषण करके यह बता सकती है कि कहीं आपको ट्यूबरक्लोसिस जैसी गंभीर बीमारी तो नहीं है. आइए इस नई तकनीक के बारे में विस्तार से जानें.
गूगल रिसर्च के AI शोधकर्ताओं की एक टीम ने जाम्बिया में स्थित संक्रामक रोग अनुसंधान केंद्र के सहयोग से फेफड़ों की बीमारी का पता लगाने के लिए एक मशीन लर्निंग प्रणाली विकसित की है. यह प्रणाली खांसी की आवाज का विश्लेषण करके बीमारी का पता लगाने में सक्षम है. अध्ययन के लिए शोधकर्ताओं ने यूट्यूब वीडियो का इस्तेमाल किया है. गूगल के शोधकर्ताओं ने इस नई प्रणाली को हेल्थ अकूस्टिक रिप्रेजेंटेशन्स (HeAR) नाम दिया है.
दरअसल, कोरोना महामारी के दौरान स्वास्थ्य कर्मचारियों ने बताया था कि वे कई बार मरीजों की खांसी की आवाज से ही कोरोना का पता लगा लेते थे. यही बात हीअर प्रणाली के विकास का आधार बनी. अन्य शोध दल भी खांसी की आवाज के आधार पर विभिन्न बीमारियों का पता लगाने वाली प्रणालियों को विकसित करने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन गूगल का रुझान थोड़ा अलग है. अन्य दल रोगों के नाम वाले लेबल वाली रिकॉर्डिंग का उपयोग करके एआई सिस्टम को प्रशिक्षित करते हैं, जबकि गूगल ने चैटजीपीटी जैसे बड़े लैंग्वेज मॉडल (एलएलएम) बनाने में इस्तेमाल होने वाले तरीके का सहारा लिया है.
यूट्यूब का लिया सहारा
नेचर जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, HeAR प्रणाली में यूट्यूब से प्राप्त सांस लेने, हांफने और खांसने जैसी विभिन्न प्रकार की आवाजों को पहले स्पेक्ट्रोग्राम में बदला जाता है. इसके बाद, शोधकर्ताओं ने इन स्पेक्ट्रोग्राम के कुछ हिस्सों को छिपा दिया और एआई को लापता हिस्से को पूरा करने का निर्देश दिया. यह प्रक्रिया उसी तरह की है, जिस तरह एलएलएम वाक्य में अगले शब्द की भविष्यवाणी करना सीखता है. इस प्रक्रिया से एक आधार मॉडल तैयार हुआ, जिसे शोधकर्ताओं के अनुसार विभिन्न कामों के लिए अनुकूलित किया जा सकता है.
अध्ययन का परिणाम
शोधकर्ताओं ने इस मॉडल का उपयोग टीबी और कोरोना का पता लगाने के लिए किया. उन्होंने पाया कि कोरोना के मामले में HeAR प्रणाली ने एक डेटासेट पर 0.739 और दूसरे पर 0.645 का स्कोर हासिल किया. वहीं, टीबी के लिए इसका स्कोर 0.739 रहा. यह मौजूदा प्रणालियों की तुलना में बेहतर परिणाम है. हालांकि, शोधकर्ताओं का कहना है कि इस क्षेत्र में अभी और शोध की आवश्यकता है. लेकिन, यह संभावना है कि भविष्य में डॉक्टर फेफड़ों की बीमारी का पता लगाने के लिए साउंड टेस्ट का भी इस्तेमाल कर सकेंगे.