Explainer: इजरायल-मिस्र को छोड़कर ट्रंप ने रोका 'सारी दुनिया' का पैसा, क्या है मेहरबानी की वजह?
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Explainer: इजरायल-मिस्र को छोड़कर ट्रंप ने रोका 'सारी दुनिया' का पैसा, क्या है मेहरबानी की वजह?

अमेरिका ने दुनिया के कई देशों को आर्थिक मदद देता है. हालांकि ट्रंप ने दूसरी बार सत्ता संभालते ही साफ सभी देशों को दी जाने वाली मदद पर रोक लगा दी है, हालांकि इजरायल और मिस्र को अमेरिका लगातार सहयोग करता रहेगा. तो चलिए जानते हैं इसके पीछे क्या वजह है?

Explainer: इजरायल-मिस्र को छोड़कर ट्रंप ने रोका 'सारी दुनिया' का पैसा, क्या है मेहरबानी की वजह?

US Foreign aid to Israel and Egypt: अमेरिका में कई देशों की आर्थिक और सैन्य समेत कई तरह से मदद करता है, लेकिन ट्रंप ने दूसरी बार सत्ता में आने के बाद सभी देशों के मदद करने से इनकार कर दिया है.  शुक्रवार को अमेरिकी विदेश विभाग ने एक मेमो जारी किया, जिसमें बताया गया कि विदेशी मदद अस्थायी रूप से 90 दिनों के लिए रोक दी गई है. हालांकि बड़ी बात यह है कि अमेरिका तरफ से लगाई गई यह पाबंदी इजराइल और मिस्र पर लागू नहीं होगी.

ट्रंप के फैसले से कई देश परेशान

अमेरिकी की इस पाबंदी के बाद यूक्रेन, ताइवान, लेबनान और अन्य सहयोगी देशों को मिलने वाली सैन्य सहायता भी बंद हो गई है, जिसमें NATO के सदस्य भी शामिल हैं. हालांकि, बाइडेन प्रशासन पहले ही यूक्रेन को कई जरूरी हथियार भेज चुका था, क्योंकि ट्रम्प के इस कदम की पहले से आशंका थी. इस फैसले से दुनिया भर में उन संगठनों में चिंता फैल गई है जो अमेरिकी मदद पर निर्भर हैं, जैसे कि बीमारी रोकथाम, बच्चों की मृत्यु दर में कमी और जलवायु परिवर्तन से निपटने से जूझ रहे हैं. कई संगठनों ने कहा कि वे काम बंद कर सकते हैं और कर्मचारियों की छंटनी शुरू कर सकते हैं.

अमेरिका ने क्यों लगाई बाकी देशों पर पाबंदी

विदेश विभाग के मेमो में यह भी कहा गया है कि सभी विदेशी सहायता का एक केंद्रीय डेटाबेस बनाया जाएगा और इसे सचिव रुबियो या उनके द्वारा नामित व्यक्तियों की मंजूरी से ही जारी किया जाएगा, ताकि अमेरिकी विदेश नीति एक समान दिशा में चले. 30 दिनों के अंदर विदेशी मददे की समीक्षा के लिए गाइडलाइंस तैयार की जाएंगी, जिसे माइकल एंटोन नाम के अधिकारी संभालेंगे. ये पाबंदी सिर्फ 90 दिनों के लिए लगाई गई है.

इजरायल को भेजे 2000 पाउंड के ताकतवर बम

हालांकि अमेरिका ने यह पाबंदी इजरायल और मिस्र पर लागू नहीं की है. जिस दिन पाबंदी लगाने का मेमो जारी किया गया है, उसी दिन व्हाइट हाउस ने पेंटागन को इजराइल को 2000 पाउंड के बम भेजने को हरी झंडी दिखाई है, जिसे राष्ट्रपति जो बाइडेन ने पिछले साल रोक दिया था. इस खेप में 1800 MK-84 बम शामिल हैं जो बहुत ताकतवर होते हैं और शहरी इलाकों में ज्यादा नुकसान कर सकते हैं.

बाइडेन के ट्रंप भी इजरायल पर मेहरबान

अमेरिका से इजराइल को मिल रही सैन्य सहायता एक विवादास्पद मुद्दा बन गई है. इजराइल ने अक्टूबर 2023 में हमास के हमले के जवाब में गाजा में बमबारी की, जिससे व्यापक आलोचना हुई. इस युद्ध के बाद पूर्व राष्ट्रपति जो बाइडेन ने इजराइल को 26 अरब डॉलर की सैन्य सहायता दी थी और ट्रम्प ने कहा है कि वे भी इजराइल का समर्थन जारी रखेंगे. ऐसे में आम लोगों के मन में यह सवाल आना लाजमी है कि आखिर इजरायल और मिस्र पर अमेरिका इतना मेहरबान क्यों है?

क्या है अमेरिका की मजबूरी

दरअसल इजरायल और मिस्र की मदद जारी रखने के पीछे अमेरिकी एक बड़ी रणनीति है. अमेरिका इजरायल के ज़रिए मध्य पूर्व में अमेरिकी हितों को हासिल करता है और इसे देखते इन दोनों देशों का रणनीतिक महत्व है. इसके अलावा इजरायल और मिस्र के बीच 1979 में हुई संधि की वजह से अमेरिका मिस्र को लगातार को सपोर्ट करता है. क्योंकि दोनों के एक साथ आ जाने के बाद मध्य पूर्व अमेरिकी प्रभाव को मजबूत करने में भी मदद मिली. 

दोनों देश एक साथ होने से क्षेत्र में अमेरिका का वर्चस्व

1979 की इजरायल मिस्र संधि के मुताबिक इस अस्थिर क्षेत्र में मिस्र ने इजरायल को यह भरोसा दिलाया था कि वो उस पर कार्रवाई नहीं करेगा. इजरायल और मिस्र का यह रिश्ता अरब देशों और इजरायल के बीच दुश्मनी को रोकने में बड़ा योगदान देता है और इलाके में शांति-सुरक्षा का माहौल बना रहता है. इन दोनों देशों की मदद से अमेरिका को मध्य पूर्व में अपना प्रभाव को बनाए रखने में मदद मिलती है. 

धार्मिक और राजनीतिक एंगल

इसके अलावा अमेरिका के इजरायल के प्रति झुकाव की एक बड़ी वजह यहूदियों को भी माना जाता है. कहा जाता है कि यहूदी समुदाय अमेरिका की राजनीति और अर्थव्यवस्था में प्रभावशाली भूमिका निभाता है. अमेरिका में लगभग 70 लाख (7 मिलियन) यहूदी आबादी है, जो दुनिया में इज़राइल के बाद सबसे बड़ी यहूदी आबादी है. अमेरिका ने 1948 में इज़राइल की स्थापना के बाद इसे तुरंत मान्यता दी और तब से दोनों देशों के बीच गहरे रिश्ते हैं. यही कारण है कि अमेरिका संयुक्त राष्ट्र (UN) और अन्य अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इज़राइल का समर्थन करता है, खास तौर पर तब, जब इज़राइल को आलोचना का सामना करना पड़ता है.

मिस्र से भी 100 साल पुराने रिश्ते

मिस्र की बात करें तो अमेरिका और मिस्र के बीच आधिकारिक राजनयिक संबंध 1922 में मिस्र की स्वतंत्रता के बाद स्थापित हुए. इसके बाद ये रिश्ता तब और मजबूत हो गया, जब 1979 के इज़राइल-मिस्र शांति समझौता हुआ. दोनों देशों के मिठास भरे रिश्ते लगभग 100 साल पुराने हो गए हैं. साथ ही अमेरिका मिस्र को आतंकवाद विरोधी अभियानों में एक सहयोगी मानता है, खासकर सिनाई प्रायद्वीप में मौजूद आतंकवादी ग्रुपों के खिलाफ अमेरिका मिस्र का खूब इस्तेमाल करता है. 

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