Merry Christmas Movie Review: शोर शराबा फिल्मों से बोर हो चुके दर्शकों के लिए एक कूल थ्रिलर है कैटरीना-विजय की 'मेरी क्रिसमस’
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Merry Christmas Movie Review: शोर शराबा फिल्मों से बोर हो चुके दर्शकों के लिए एक कूल थ्रिलर है कैटरीना-विजय की 'मेरी क्रिसमस’

Katrina Kaif की फिल्म 'मेरी क्रिसमस' रिलीज होती ही थियेटर में बवाल मचा रही है. इस फिल्म में विजय और कैटरीना की दमदार केमिस्ट्री लगी तो वहीं स्टोरी लाइन भी जबरदस्त है. अगर आप थियेटर इस फिल्म को देखने जा रहे हैं तो एक बार रिव्यू जरूर पढ़ लें.

'मेरी क्रिसमस' फिल्म रिव्यू

निर्देशक: श्रीराम राघवन

स्टार कास्ट: कैटरीना कैफ, विजय सेतुपति, संजय कपूर, विनय पाठक, टीनू आनंद और अश्विनी कालेस्कर आदि

स्टार रेटिंग: 3

कहां देख सकते हैं: थिएटर्स में

 
Merry Christmas Movie Review: जो लोग श्रीराम राघवन से परिचित हैं, बखूबी जानते हैं कि वो किस तरह की थ्रिलर फिल्में बनाते हैं, उनकी फिल्मों की खासियत होती है, अंत तक दर्शक को बांधे रखना और कभी इतना कि सीट से ही चिपक कर रह जाए. वो उन्होंने इस फिल्म में भी बखूबी किया है लेकिन बावजूद इसके उनकी फिल्में 'थ्री इडियट्स' या 'मुन्नाभाई' नहीं बनतीं. बस एक खास किस्म के दर्शकों के लिए बनी होती हैं, और वो उनके स्थाई दर्शक हैं.

 

 
 
 
 

 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 

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साल की पहली बड़ी फिल्म
‘मेरी क्रिसमस’ इस मायने में खास है क्योंकि ये 2024 की पहली बड़ी मूवी है, दूसरा इसमें कैटरीना मुख्य भूमिका में है, तीसरे विजय सेतुपति एक रोमांटिक रोल में नजर आएंगे. हालांकि कोई भी फिल्म तभी बेहतर मानी जाती है, जब अंतिम सीन देखकर दर्शक संतुष्ट होकर सीट से उठे, लेकिन इस मूवी में दर्शक अंत में बंटे हुए नजर आते हैं.

80 के दशक की कहानी
फिल्म की कहानी है 80 के दशक की बम्बई में क्रिसमस की एक रात की, जिसमें अलबर्ट (विजय सेतुपति) 7 साल बाद नासिक जेल से छूटकर अपने घर आता है. फिर क्रिसमस मनाने निकलता है, जहां उसकी मुलाकात एक रेस्तरां में मारिया (कैटरीना कैफ) और उसकी छोटी बच्ची से होती है, या करवाई जाती है. मारिया का पति कहीं अपनी गर्लफ्रेंड से रंगरेलियां मना रहा होता है और वो क्रिसमस की रात अकेली है, सो अलबर्ट से हल्की दोस्ती होने के बाद घर पर बुलाती है. बेटी को सुलाकर वो पति के लिए नोट छोड़कर अलबर्ट के साथ घूमने निकल जाती है, उसके लिए डांस करती है, जब लौटकर आते हैं तो उसके डायनिंग रूम में पति की लाश सोफे पर पड़ी मिलती है, सीने में गोली और रिवॉल्वर उसके ही हाथों में थी. लेकिन अलबर्ट पुलिस के आने तक रुकने के बजाय वहां से भाग निकलता है, क्योंकि वो अपनी गर्लफ्रेंड का खून करके ही जेल गया था.

 

 
 
 
 

 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 

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दिलचस्प है कहानी
ये सीन इस फिल्म में यही सीन कुछ देर बाद दोबारा घटता है, यानी मारिया की मदद, बेटी को सुलाकर घर से साथ निकलना, उसके साथ डांस, और फिर लौटने पर पति की लाश. लेकिन अब उसके साथ अलबर्ट के बजाय एक केटरर रॉनी (संजय कपूर) था. लेकिन वो पुलिस के आने तक रुकता है. ऐसे में दर्शक वाकई में उठ नहीं पाते.

 

 
 
 
 

 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 

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क्लाइमेक्स ने दिया गच्चा
फिल्मों के बारे में एक सिद्धांत मशहूर है कि आप रायता परदे पर दर्शकों के सामने फैला तो संभाल देते हैं, लेकिन फिल्म पसंद तभी आती है, जब आप उसे कायदे से क्लाइमेक्स में समेटते हैं. अगर क्लाइमेक्स ढंग से नहीं सोचा गया तो फिल्म औंधे मुंह गिर सकती है. इस फिल्म में भी ऐसा ही है, आधे दर्शकों को क्लाइमेक्स से निराशा हुई, उनको लगा कि इतनी देर से जो राज छुपाया जा रहा था, वो इतनी आसानी से कैसे खोल दिया निर्देशक ने? उनको ये भी लगा कि फिल्म में बीस मिनट पहले ही पूरे खेल का खुलासा करके मजा किरकिरा कर दिया गया? बहुत लोगों को ये भी हजम नहीं हुआ कि ये सब इतनी आसानी से कैसे हो रहा था, कि एक के बाद एक लोग उसी जाल में फंसते जा रहे थे, वो भी तब जबकि पहले फंस चुका व्यक्ति भी साथ मौजूद था और फिर डायरेक्टर ने कई जगह उनकी मौजूदगी इत्तफाकन क्यों दिखाई? इतने सारे इत्तफाक भी कहानी को कमजोर करते हैं.

 

 
 
 
 

 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 

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बांधे रखेगी फिल्म
फिल्म के आखिर तक ये भी नहीं पता चला कि अलबर्ट को मारिया तक पहुंचाने वाला शख्स कौन था? कहानी के लिए फ्लैट भी ऐसी जगह ढूंढा गया, जहां नीचे शॉप्स या शोरूम्स थे और ऊपर दो मंजिलों पर इकलौता फ्लैट था और सीसीटीवी की तो बात ही नहीं की गई. शायद उस वक्त होते ही नहीं होंगे. बावजूद इसके कहानी आपको बांधकर रखती है, यूं बांधने के लिए कैटरीना का ग्लेमर और विजय सेतुपति की एक्टिंग भी कम जिम्मेदार नहीं, हालांकि कैटरीना के लिए ये फिल्म अहम है, क्योंकि एक्टिंग करती दिखी हैं.

एक्टिंग के मामले में इन दोनों के अलावा बाकी के लिए कुछ करने को खास नहीं था, लेकिन संजय कपूर, विनय पाठक, अश्विनी और टीनू आनंद पहले से ही काफी मंझे हुए कलाकार हैं, और उन्होंने अपने रोल्स को अच्छे से किया भी, हमेशा की तरह. लेकिन विजय और कैटरीना की जोड़ी के साथ कुछ सींस अच्छे बन पड़े हैं.

चुटीले डायलॉग्स
फिल्म में डायलॉग्स की ज्यादा जरूरत नहीं थी, लेकिन विजय के अपने अंदाज में कुछ चुटीले डायलॉग्स बीच-बीच में लोगों को एक थ्रिलर में भी हंसने को मजबूर करते हैं. बैकग्राउंड म्यूजिक पर भी खासा फोकस किया गया था और कैमरे व लाइटिंग पर भी, जो फिल्म की जान बन गए हैं.

ऐसे में श्रीराम राघवन की फिल्म ‘अंधाधुन’ की तरह इस मूवी में स्पीड तो नहीं लेकिन रोमांटिक फ्लेवर लिए धीरे-धीरे बढ़ती है और कैटरीना व विजय सेतुपति के फैंस को काफी पसंद आने वाली है. भले ही 100 करोड़ के क्लब में शामिल ना हो, लेकिन इसे कोई नजरअंदाज भी नहीं कर सकता. फुरसत में देखने वालों को पसंद आएगी और खासतौर पर जब ओटीटी पर रिलीज होगी, चाय के साथ इस ठंड में देखने पर पैसा वसूल लगेगी.

 

 

 

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