कंगना रनौत की फिल्म Emergency काफी दिनों से सुर्खियों में थी. अगर आप इसे देखने का प्लान बना रहे है तो एक बार रिव्यू जरूर पढ़ लें.
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निर्देशक: कंगना रनौत
स्टार कास्ट: कंगना रनौत, मिलिंद सोमन, श्रेयस तलपड़े, अनुपम खेर, महिमा चौधरी, सतीश कौशिक, अधीर भट्ट और विशक नायर आदि
कहां देख सकते हैं: थिएटर्स में
स्टार रेटिंग: 3
इस मूवी के साथ सबसे खास बात है कि आपको कंगना की मेहनत साफ नजर आएगी, ना केवल एक एक ऐतिहासिक किरदार के लिए कलाकार ढूंढने में बल्कि उनको उस किरदार में ढालने में और लुक देने में भी. कंगना की मेहनत दिखेगी इंदिरा गांधी के नर्वस रूप को दिखाने में भी, और मूवी के लिए की गई रिसर्च में भी. लेकिन जब फायनल डिलीवरी का वक्त आया तो उनका कन्फ्यूजन साफ दिखा है कि क्या दिखाना है, कितना दिखाना है और कैसे दिखाना है और ये कन्फ्यूजन ही सारी मेहनत पर भारी पड़ सकता है.
मूवी का नाम है ‘इमरजेंसी’, कायदे में इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले से शुरू होकर इंदिरा गांधी की हार पर खत्म हो जानी चाहिए थी, ज्यादा से ज्यादा दोबारा उनकी सत्ता वापसी तक खींची जा सकती थी. लेकिन ये मूवी बायोग्राफी बन गई, दायरा बढ़ा तो उसका नुकसान ये हुआ कि इमरजेंसी के तमाम दिलचस्प या खौफनाक किस्से अनकहे ही रह गए और बाकी का यानी उनके बचपन से लेकर मौत तक बल्कि उनकी अस्थियों को हिमालय पर बिखेरने तक सबकुछ समेटने के चक्कर में आम जनता के मन में तमाम सवाल छोड़ गए.
सवाल ये कि इंदिरा गांधी अपनी बुआ को चुड़ैल क्यों कहती थीं? बाबू जगजीवन राम ने इमरजेंसी का कब विरोध किया था? रुखसाना का क्या किस्सा था? पुपुल जयकर नाम की महिला कौन थी? इंदिरा गांधी खुद की शक्ल वाली चुड़ैल क्यों देखती थीं? क्या इमरजेंसी के लिए केवल संजय गांधी जिम्मेदार थे? क्या इंदिरा गांधी ने ही खुद को ‘इंडिया’ कहा था? क्या इंदिरा गांधी के घर में राजीव और सोनिया केवल खाना और नाश्ता करने के लिए रहते थे?
मूवी का दायरा बढ़ने से आम व्यक्ति के दिमाग में ऐसे सवाल इसलिए स्वाभाविक हैं क्योंकि कंगना के पास समय ही नहीं था इतना कुछ समेटने के लिए, सो उन्होंने सिम्बोलिक रूप से कुछ सींस के जरिए बड़े वाकयों को समेटने की कोशिश की, जैसे बुआ विजयलक्ष्मी के साथ झगड़े वाला सीन, सैम मानिक शॉ का ‘लेट द गर्ल वेट फॉर मी’ वाला सीन, तेजपुर आसाम वाला सीन, सिंडिकेट वाला सीन, फीरोज गांधी को ताने मारने वाला सीन, बेलछी कांड आदि लेकिन ऐसे सींस बुद्धिजीवी तबका तो समझ जाएगा, लेकिन आम आदमी कैसे समझेगा कि विजयलक्ष्मी से इंदिरा की क्या तनातनी थी? सैम मानिक शॉ से उनका कैसा रिश्ता था? केरल की सरकार गिराने पर नेहरू की नाराजगी क्या थी? इंदिरा को उन्हें नाराज कर तेजपुर जाने की जरुरत क्या थी?
इन सबको समझने के लिए कई फिल्में बनानी पड़ेंगी या लम्बी सीरीज. फिर आपको कमला नेहरू विवाद, फीरोज गांधी से रिश्तों का विवाद, पदमजा नायडू का विवाद, पुपुल जयकर की किताब के सारे किस्से, जेपी से रिश्ते, संजय गांधी से रिश्ते और इमरजेंसी की सारी ज्यादतियां, सिंडिकेट का वर्चस्व, शास्त्रीजी और मोरारजी से टकराव, इंदिरा गांधी का निष्कासन, नई पार्टी शुरू करना आदि सब दिखाना पड़ेगा, जो आसान नहीं था. लेकिन इस चक्कर में क्या हुआ कि कहीं कहीं तो वो एक सीन के जरिए एक कालखंड दिखाती जीनियस लगी हैं तो वहीं ये भी समझ से बाहर था कि बांग्लादेश एपिसोड को जरूरत से ज्यादा लम्बा खींचने की जरूरत क्या थी? बांग्लादेश बनने तक तब भी ठीक था, लेकिन बंगबंधु के परिवार की हत्या और फिर लाल किले से इंदिरा गांधी का भाषण, इनकी मूवी के टाइटिल के हिसाब से कतई जरूरत नहीं थी. भिंडरावाले को शामिल करने से भी मूवी लम्बी हुई, फिर बेलछी कांड की कहानी अलग से पूरी मूवी है. लेकिन शायद बायोग्राफी पूरी करने के चक्कर में ये फैसला लिया गया.
इस चक्कर में ढेर सारी वो गड़बड़ियां हुईं, जिससे मूवी की सारी ऐतिहासिकता ही खतरे में पड़ जाती है. ‘इंदिरा इज इंडिया’ का स्लोगन कांग्रेस अध्यक्ष डीके बरुआ ने दिया था, लेकिन यहां इंदिरा गांधी बोल रही हैं या फिर जिद्दू कृष्णमूर्ति. मूवी में ऐसे दिखाया जैसे कहीं कार्यक्रम में अनायास वो इंदिरा को मिल गए थे, जबकि वो एनी बेसेंट के दत्तक पुत्र थे, हर कोई उन्हें जानता था. मूवी से बरुआ और बंसीलाल को एकदम से गायब कर दिया गया, जबकि वो अहम किरदार थे. इंदिरा गांधी का इमरजेंसी के ऐलान के लिए रेडियो सम्बोधन भी कई नेताओं के जेल सींस दिखाने के बाद आया, लगा कि तारतम्य बिगड़ गया है.
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इसी तरह सूचना प्रसारण मंत्री गुजराल का संजय गांधी से झगड़ा इंदिरा गांधी के सामने नहीं हुआ था, लेकिन मूवी में उनके ऑफिस में ही दिखाया जाएगा, बल्कि इंदिरा खुद कहेंगी, मुझे सारी स्क्रिप्ट्स ऑन एयर होने से पहले चाहिए. सबसे दिलचस्प था अटलजी के मुंह से वो डायलॉग बुलवाया गया जो आडवाणी जी ने ना केवल बोला था, बल्कि अपनी किताब में भी लिखा है, ‘’मीडिया से झुकने को कहा गया था, वो तो रेंगने लगे’’. ऐसे में रिसर्च पर भी सवाल उठते हैं.
लोगों को लग रहा था कि बीजेपी सांसद होने के बाद कंगना इस मूवी में इंदिरा को धोने वाली हैं, यहां उन्होंने अटलजी को ही धो डाला, जब अटलजी ने रजत शर्मा की अदालत में साफ ये बोला कि उन्होंने कभी इंदिरा को ‘दुर्गा’ नहीं कहा, कंगना ने अटलजी के किरदार (श्रेयस तलपड़े) से इंदिरा को ‘रणचंडी दुर्गा’ कहलवा डाला. इतना ही नहीं नाटकीय ढंग से मूवी में अटलजी संसद में मेज थपथपाकर इंदिरा के कदम का समर्थन करते हुए गाना गाते भी नजर आएंगे. जेपी और आडवाणीजी भी गाना गाते दिखेंगे. और आखिर तक आते आते आपको लगेगा कि मूवी तो इंदिरा जी के महिमामंडन को लेकर बनी है. आखिर कैसे कंगना अपने ही किरदार को एकदम बुरा दिखा सकती हैं?
कंगना कहां चूकीं? चूंकि इस मूवी में पुपुल जयकर को ज्यादा तबज्जो मिली है, और कई सींस उनकी किताब से लिए गए हैं. तो इंदिरा गांधी को वो सब लेना था, जिसे जानकर लोग उसी तरह चौंक जाते, जैसे इंदिरा को अपनी बुआ को चुड़ैल कहते देखकर चौंकेंगे. बताना था तो पदमजा नायडू की सनसनीखेज कहानी बतातीं, जॉर्ज फर्नांडीज के भाई पर हुए अत्याचारों की कहानी बतातीं, दिल्ली के उस एलजी की कहानी बतातीं जिसकी लाश कुंए में पड़ी मिली थी, महारानी गायत्री देवी और महावीर चक्र विजेता उनके भतीजे के साथ इंदिरा गांधी ने क्या सुलूक किया था, उसको दिखातीं. अलवर के महाराज के साथ क्या हुआ था, उसकी कहानी भी कम खौफनाक नहीं थी. बरुआ के इंदिरा इज इंडिया के जवाब में अटलजी ने जो कविता में ‘चमचों का सरताज’ लिखकर जवाब दिया था, उसे दिखाने से पब्लिक खुश होती.. मारुति का घोटाला, शाह कमीशन और फिल्मों को जलाने के चलते संजय गाधी की गिरफ्तारी, प्लेन हाईजैक का किस्सा कितनी चीजें फिल्म से गायब हैं, इनमें लोगों को आनंद आता.
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