Chhaava Movie Review: बिना इमोशंस नहीं देख पाएंगे 'छावा', अगर देखने का बना रहे प्यान, तो जान लें इसमें क्या कुछ है खास
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Chhaava Movie Review: बिना इमोशंस नहीं देख पाएंगे 'छावा', अगर देखने का बना रहे प्यान, तो जान लें इसमें क्या कुछ है खास

Chhaava Review: विक्की कौशल, रश्मिका मंदाना और अक्षय खन्ना की फिल्म 'छावा' सिनेमाघरों में दस्तक दे चुकी है. अगर आप अपने बिजी शेड्यूल से वक्त निकाल कर इस फिल्म को देखने का प्लान कर रहे हैं तो पहले इसके रिव्यू जरूर पढ़ें काम आएगा. 

Chhaava Movie Review

निर्देशक: लक्ष्मण उतेकर
स्टार कास्ट: विक्की कौशल, रश्मिका मंदाना, अक्षय खन्ना, डायना पेंटी, आशुतोष राणा, प्रदीप रावत, दिव्या दत्ता और विनीत कुमार सिंह आदि 
कहां देख सकते हैं: थिएटर्स में 
स्टार रेटिंग: 3.5 

Chhaava Review: यूं तो कभी सावरकर ने कहा था कि पराजयों की कहानियों को नहीं बताना चाहिए, लेकिन आशुतोष गोवारिकर ने ये कोशिश की ‘पानीपत’ को बनाकर, गलती ये कर दी को मूवी का सारा बोझ अर्जुन कपूर पर डाल दिया. लेकिन संजय लीला भंसाली ने ‘पद्मावत’ बनाकर लोगों की वाहवाही बटोर ली.  ऐसे में ‘छावा’ भी उसी तरह की मूवी है जिसका क्लाइमेक्स असीम दर्द पर ख़त्म होना है, ऐसे में जिसके मन में छत्रपति शिवाजी या संभाजी राजे को लेकर श्रद्धा है, उनको तो शर्तिया ये मूवी पसंद आने वाली है. 

इस मूवी में जो सबसे बेहतरीन काम निर्माता निर्देशक ने किया वो है  विकी कौशल और अक्षय खन्ना जैसे दमदार अभिनेताओं को लीड रोल देना. विकी छत्रपति शिवाजी के बेटे संभाजी के रोल में और अक्षय खन्ना औरंगज़ेब के. कहानी शिवाजी की मृत्यु के बाद से शुरू होती है, औरंगज़ेब ये सोचकर जश्न मनाता है कि दक्कन में अब मुग़लों के सामने कोई चुनौती नहीं बची है, लेकिन वहाँ मुग़लों के गढ़ बुरहानपुर के अचानक संभाजी राजे लूटकर उसे ग़लत साबित कर देते हैं.

फिल्म की कहानी

तब औरंगज़ेब फिर से 8 लाख की बड़ी सेना के साथ दक्कन का रुख़ करते हैं, लेकिन पूरे 9 साल तक वो संभाजी को छू भी नहीं पाते और संभाजी लगातार छापामार तकनीक से औरंगज़ेब की टुकड़ियों को जन्नत पहुँचाते रहते हैं. लेकिन शिवाजी के जाने के बाद पहले संभाजी की सौतेली माँ (दिव्या दत्ता) की साज़िशें उनके लिए दिक़्क़तें पैदा करती हैं. बाद में उनकी पत्नी येशुबाई (रश्मिका मंदाना) के दोनों भाई जो संभाजी से नाराज़ थे, भी औरंगज़ेब से जाकर हाथ मिला लेते हैं, बिना किसी को बताये. 

क्या है फिल्म में खास?

इधर औरंगज़ेब अपने विद्रोही बेटे अकबर को संभाजी द्वारा शरण देने से भी नाराज़ था, येशुबाई के दोनों भाई औरंगज़ेब को बता देते हैं कि संभाजी केवल 150 सैनिकों के साथ संगमेश्वर में मौजूद हैं. औरंगज़ेब की सेना की एक विशाल टुकड़ी धावा बोलकर संभाजी और उनके मित्र कवि कलश (विनीत सिंह) को गिरफ़्त में लेकर औरंगज़ेब के सामने पेश करती है और आगे की कहानी काफ़ी इमोशनल भी है और दर्दनाक भी. इस मूवी को दो पॉजिटिव बातें सुपर हिट भी करवा सकती हैं, वो है विकी, अक्षय खन्ना और रश्मिका मंदाना का अपने अपने किरदारों में इस कदर घुस जाना कि दर्शक भी कहानी में घुस जाएँगे. 

आशुतोष राणा, प्रदीप रावत, डायना पेंटी, विनीत सिंह, दिव्या दत्ता आदि के रोल्स भी ऐसे ही दमदार हैं, भले ही छोटे हैं.  दूसरा मज़बूत पक्ष है आम आदमी की इस कहानी में रुचि होना. शिवाजी की सारी कहानियाँ लोगों को याद हैं, लेकिन उनके बेटे संभाजी के साथ ये सब हुआ था और वो इतने वीर थे ये जानना बहुतों को हैरत में डालेगा.  और मूवी का दूसरा हाफ इमोशनल भी काफ़ी है. लोग बिना इमोशनल हुए इस मूवी को देख ही नहीं सकते. 

फिल्म से गायब हैं ये जरूर किरदार 

फ़िल्म को सीधे सीधे औरंगज़ेब और संभाजी के टकराव को दिखाया गया है, उनके राज्य या परिवार के विवादों को उतना ही दिखाया है, जितना जरूरी थे. शिवाजी का किरदार बिलकुल ग़ायब है, कई जगह उनके ऑडियो का इस्तेमाल किया गया है. मूवी के ज़रिए लोगों को ये तो पता चलेगा कि संभाजी भी पिता शिवाजी की तरह वीर, साहसी,  तकनीक के माहिर योद्धा और हिन्दवी स्वराज के सच्चे सिपाही थे. 

कैसे उन्होंने औरंगज़ेब मो सेनाओं को छापामार तकनीक से मात दी ये दिखाया लेकिन फ़िल्म में ना रामसेज क़िले की मुग़लों द्वारा पाँच महीने की सफल घेराबंदी दिखाई और ना रायगढ़ क़िले की घेराबंदी में मुग़लों ने कैसे मात खाई, वो दिखाया. इन दोनों घटनाओं से आज मी पीढ़ी जान पाती कि औरंगज़ेब को कैसे संभाजी ने कई बार मात दी थी. 

फिल्म को क्या बना रहा बेहतर?

मूवी कई जगह एक्शन के बेहतरीन सीन देने में सफल साबित हुई, हां विकी कौशल ने जरुर उन सीन्स को बचा लिया. ए आर रहमान का म्यूजिक है और जाने तू और आया रे तूफ़ान गाने एक लगते हैं. सेट्स ठीक ठाक हैं, स्पेशल इफ़ेक्ट्स का और इस्तेमाल मूवी को और बेहतर बना सकता था. कुछ डॉयलॉग्स बेहतरीन थे, लेकिन ज़्यादा संख्या में नहीं थे. कुल मिलाकर इस मूवी का इमोशनल पक्ष और  विकी, अक्षय व रश्मिका की तिकड़ी इस मूवी की नैया पार भी लगा सकती है. कम से कम पानीपत जैसा केस तो क़तई नहीं है.

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