धड़ाधड़ खर्च कर रहे गांववाले, शहर वालों से नहीं पीछे; सर्वे में सामने आए चौंकाने वाले आंकड़े
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धड़ाधड़ खर्च कर रहे गांववाले, शहर वालों से नहीं पीछे; सर्वे में सामने आए चौंकाने वाले आंकड़े

Consumption Expenditure Survey: अगस्त 2023 से जुलाई 2024 के दौरान किए गए सर्वेक्षण के आधार पर तैयार 'घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण' (एचसीईएस) से पता चलता है कि ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में खपत की असमानता पिछली सर्वेक्षण के मुकाबले घट गई है.

धड़ाधड़ खर्च कर रहे गांववाले, शहर वालों से नहीं पीछे; सर्वे में सामने आए चौंकाने वाले आंकड़े

Rural-Urban Spending: गांवों में खपत पर खर्च बढ़ा है. अगस्त 2023-जुलाई 2024 के दौरान ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में खपत का फासला एक साल पहले की तुलना में घट गया. ताजा घरेलू उपभोग खर्च सर्वेक्षण में यह खुलासा हुआ है. सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय ने शुक्रवार को कहा कि इस अवधि में ग्रामीण क्षेत्रों के लिए 'गिनी' गुणांक 0.266 से घटकर 0.237 और शहरी क्षेत्रों के लिए 0.314 से घटकर 0.284 हो गया. 

खर्च में गांववाले भी पीछे नहीं

उपभोग व्यय (Consumption Expenditure) से जुड़ी 'गिनी' गुणांक सांख्यिकीय रूप से एक समाज के भीतर खपत में असमानता और पैसे के वितरण की कैलकुलेशन करता है. अगस्त 2023 से जुलाई 2024 के दौरान किए गए सर्वेक्षण के आधार पर तैयार 'घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण' (एचसीईएस) से पता चलता है कि ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में खपत की असमानता पिछली सर्वेक्षण के मुकाबले घट गई है.

सर्वे में क्या आया सामने?

सामाजिक कल्याण योजनाओं को ध्यान में रखे बगैर 2023-24 में ग्रामीण और शहरी भारत में औसत मासिक प्रति व्यक्ति व्यय (एमपीसीई) क्रमशः 4,122 रुपये और 6,996 रुपये (वर्तमान कीमतों पर) रहने का अनुमान है. पिछले सर्वेक्षण 2022-23 में ग्रामीण क्षेत्रों में एमपीसीई 3,773 रुपये और शहरी क्षेत्रों में 6,459 रुपये था. हालांकि विभिन्न सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों के जरिये मुफ्त में मिली चीजों की कीमतों को ध्यान में रखा जाए तो एमपीसीई के ये अनुमान ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के लिए क्रमशः 4,247 रुपये और 7,078 रुपये हो जाते हैं. 

नए एमपीसीई के अनुमान देश के सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में मौजूद कुल 2,61,953 परिवारों से जुटाए गए आंकड़ों पर आधारित हैं. मौजूदा कीमतों के संदर्भ में औसत प्रति व्यक्ति मासिक व्यय में सालाना आधार पर ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग नौ प्रतिशत और शहरी क्षेत्रों में आठ प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है. एमपीसीई में शहरी और ग्रामीण खपत का अंतर 2011-12 में 84 प्रतिशत पर था जो घटकर 2022-23 में 71 प्रतिशत हो गया. 

70 प्रतिशत घट गया फासला

हालिया सर्वेक्षण 2023-24 में यह फासला और भी कम होकर 70 प्रतिशत रह गया है. इससे ग्रामीण क्षेत्रों में खपत बढ़ने की रफ्तार में तेजी का पता चलता है. पिछले सर्वेक्षण में नजर आए रुझान को जारी रखते हुए गैर-खाद्य वस्तुओं पर औसत मासिक व्यय ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में क्रमशः 53 प्रतिशत और 60 प्रतिशत रहा. इस तरह घरेलू औसत मासिक व्यय में गैर-खाद्य वस्तुएं प्रमुख योगदानकर्ता बनी रही

वाहन, कपड़े, बिस्तर, जूते, विविध सामान और मनोरंजन एवं टिकाऊ सामान ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में परिवारों के गैर-खाद्य व्यय में प्रमुख हिस्सा रखते हैं. ग्रामीण और शहरी परिवारों के खाद्य वस्तुओं के समूह में पेय पदार्थ, जलपान और प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों का प्रमुख व्यय हिस्सा है. 

शहरी परिवारों के गैर-खाद्य व्यय में घर का किराया, गैरेज का किराया और होटल बिल लगभग सात प्रतिशत हिस्सेदारी के साथ प्रमुख घटक है. राज्यों के बीच औसत प्रति व्यक्ति मासिक व्यय सिक्किम (ग्रामीण- 9,377 रुपये और शहरी- 13,927 रुपये) में सबसे अधिक है जबकि यह छत्तीसगढ़ (ग्रामीण - 2,739 रुपये और शहरी - 4,927 रुपये) में सबसे कम है. राज्यों के बीच औसत एमपीसीई में ग्रामीण-शहरी फासला मेघालय (104 प्रतिशत) में सबसे अधिक है, उसके बाद झारखंड (83 प्रतिशत) और छत्तीसगढ़ (80 प्रतिशत) हैं.

(इनपुट-पीटीआई)

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