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Indian Economy: साख निर्धारित करने वाली एजेंसी एसएंडपी ग्लोबल रेटिंग्स ने बुधवार को कहा कि अमेरिका के जवाबी शुल्क का भारत पर कोई खास प्रभाव नहीं होगा. इसका कारण यह है कि अर्थव्यवस्था को घरेलू कारकों से गति मिल रही है जबकि निर्यात पर निर्भरता कम है. एशिया-प्रशांत एसएंडपी ग्लोबल के सॉवरेन और इंटरनेशनल पब्लिक फाइनेंस रेटिंग के निदेशक यीफर्न फुआ ने यह भी कहा कि भारत अगले दो साल में 6.7 से 6.8 प्रतिशत की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर हासिल करेगा.
उन्होंने कहा कि वित्त वर्ष 2025-26 का बजट अगले कुछ वर्षों के लिए वृद्धि को बढ़ावा देगा. मुख्य रूप से करदाताओं को कर मोर्चे पर राहत के माध्यम से घरेलू मांग और जीडीपी की वृद्धि अब ‘टिकाऊ स्तर’ पर सामान्य स्थिति में आ रही है.उन्होंने कहा, ‘‘सरकार निवेश-आधारित वृद्धि और कृषि क्षेत्र में सुधारों पर अधिक अधिक ध्यान दे रही है.
हालांकि, हमें लगता है कि महामारी के बाद पिछले तीन वर्षों में वृद्धि दर औसतन 8.3 प्रतिशत होने के बाद भारत में जीडीपी वृद्धि दर अधिक टिकाऊ होती जा रही है. फुआ ने कहा, ‘‘फिलहाल, हमारा अनुमान है कि उपभोक्ता खर्च और सार्वजनिक निवेश अगले दो साल में सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर को 6.7 से 6.8 प्रतिशत के आसपास बनाए रखेंगे.
आर्थिक वृद्धि की ये दरें, भले ही पहले की तुलना में कम हैं, लेकिन समान आय स्तरों पर भारत को अपने समकक्ष देशों से ऊपर बनाये रखेंगी. हमारा मानना है कि आयकर में कटौती के बावजूद राजस्व में वृद्धि जारी रहेगी. आधिकारिक अनुमानों के अनुसार, भारत की आर्थिक वृद्धि दर चालू वित्त वर्ष 2024-25 में 6.4 प्रतिशत रहेगी, जो 2023-24 के 8.2 प्रतिशत से कम है.
एसएंडपी ग्लोबल रेटिंग्स ने भारत को ‘बीबीबी-’ रेटिंग दी है. यह सबसे कम निवेश ग्रेड की रेटिंग है। रेटिंग पर परिदृश्य सकारात्क बना हुआ है. उन्होंने कहा कि भारत की राजकोषीय स्थिति काफी सकारात्मक बनी हुई है और सकल घरेलू उत्पाद के अनुपात में कर राजस्व पिछले कुछ वर्षों में बढ़कर वर्तमान में लगभग 12 प्रतिशत हो गया है. महामारी के वर्षों के बाद से केंद्र सरकार का घाटा कम रहा है.
एसएंडपी का मानना है कि सरकार मौजूदा और अगले वित्त वर्ष के लिए क्रमश: 4.8 प्रतिशत और 4.4 प्रतिशत के राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को हासिल कर लेगी. रेटिंग एजेंसी ने कहा, ‘‘ये लक्ष्य वास्तव में हमारे अनुमानों के अनुरूप हैं। फिलहाल, बाजार में कुछ चर्चाएं हैं कि भारत को अपने राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को पूरा करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है. इसका कारण न्यूनतम कर योग्य आय की सीमा बढ़ाने से राजस्व को होने वाला नुकसान और धीमी आर्थिक वृद्धि है. फुआ ने कहा, ‘‘हमें विश्वास है कि सरकार घाटे के लक्ष्यों को पूरा करेगी. इसका कारण केंद्रीय बैंक से लगातार आ रहा बड़ा लाभांश है. साथ ही कुल व्यय में अच्छा-खासा हिस्सा पूंजीगत व्यय का है. इसके अलावा, भारत सरकार के पास राजस्व और घाटे के मामले में लक्ष्य पूरा करने का एक मजबूत ‘ट्रैक रिकॉर्ड’ है.
भारत पर अमेरिकी शुल्क के प्रभाव के बारे में पूछे जाने पर, फुआ ने कहा कि भारत की अर्थव्यवस्था अब भी काफी हद तक घरेलू उन्मुख है. साथ ही अमेरिका को जो निर्यात हो रहा है, उसमें सेवा क्षेत्र की हिस्सेदारी अधिक है, जिसमें शुल्क वृद्धि की संभावना कम है. फुआ ने कहा, ‘‘भारत की वृद्धि के लिहाज से निर्यात पर निर्भरता ज्यादा नहीं है. इसलिए, मुझे लगता है कि अमेरिकी शुल्क का प्रभाव कमोबेश सीमित होगा.वस्तुओं के मामले में जिन क्षेत्रों पर अधिक शुल्क लग सकता है उनमें आभूषण, औषधि, कपड़ा और रसायन शामिल हैं. उन्होंने कहा कि अमेरिका भारत से औषधि पर अधिक शुल्क नहीं लगा सकता है क्योंकि इससे उसके अपने देश में स्वास्थ्य देखभाल की लागत बढ़ जाएगी. अमेरिका को भारत जो औषधि निर्यात करता है, वे मुख्य रूप से जेनेरिक दवाएं हैं. हालांकि, कपड़ा और कुछ हद तक रसायनों पर उच्च शुल्क दर का सबसे अधिक जोखिम है। फुआ ने कहा, ‘‘अगर हम डोनाल्ड ट्रंप के पहले शासन को देखें, तो मुझे लगता है कि कुल मिलाकर, भारत पर प्रभाव काफी कम होना चाहिए. इससे पहले 2018 में डोनाल्ड ट्रंप की अगुवाई वाली सरकार ने इस्पात उत्पादों पर 25 प्रतिशत और कुछ एल्युमीनियम उत्पादों पर 10 प्रतिशत अतिरिक्त आयात शुल्क लगाया था. भारत ने जवाबी कार्रवाई में जून, 2019 में 28 अमेरिकी उत्पादों पर अतिरिक्त सीमा शुल्क लगाया. शुल्क लगाने जाने के पांच साल से अधिक समय बाद, तीन जुलाई, 2023 को अमेरिका ने भारत से इस्पात और एल्युमीनियम आयात पर शुल्क हटा लिया. भाषा