Neelkanth Mishra: प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के अंशकालिक सदस्य की जिम्मेदारी निभा रहे मिश्रा ने कहा कि इस महीने की शुरुआत में रेपो रेट में कटौती की गई है। आगे भी इसमें अगर कटौती की जाती है तो भी इससे लोन में वृद्धि नहीं होगी.
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Repo Rate Cut: एक्सिस बैंक के चीफ इकोनॉमिस्ट नीलकंठ मिश्रा ने कहा कि अगर भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) इकोनॉमिक ग्रोथ को रफ्तार देना चाहता है तो उसे रेपो रेट में कटौती के बजाय नकदी को आसान बनाने पर ध्यान देना चाहिए. प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के अंशकालिक सदस्य की जिम्मेदारी निभा रहे मिश्रा ने कहा कि इस महीने की शुरुआत में रेपो रेट में कटौती की गई है। आगे भी इसमें अगर कटौती की जाती है तो भी इससे लोन में वृद्धि नहीं होगी. इसका कारण नकदी की कमी है, जो लोन देने में बाधा उत्पन्न करेगी.
मिश्रा ने कहा, ‘जैसा एमपीसी ने कहा है कि अगर मकसद वित्तीय स्थितियों को आसान बनाना और आर्थिक वृद्धि को समर्थन देना है, तो मेरा सुझाव होगा कि सबसे पहले नकदी पर ध्यान दिया जाए क्योंकि इस स्तर पर, दरों में कटौती से मदद नहीं मिल रही है.’ उन्होंने कहा, ‘यदि मकसद वृद्धि को समर्थन देने के लिए एमपीसी का उपयोग करना है, तो नकदी पहला उपाय होना चाहिए.’ मिश्रा ने कहा कि यदि दर में कटौती का मकसद लोन को बढ़ावा देना है, तो नए लोन कम दर पर नहीं मिलेंगे क्योंकि पिछले 18 महीने से चल रही नकदी की तंग स्थितियों के कारण कोष की सीमांत लागत ऊंची बनी हुई है.
उन्होंने कहा कि आरबीआई के रेपो दर में 0.25 प्रतिशत की कटौती के बावजूद एक साल की जमा प्रमाणपत्र पर ब्याज दर 7.8 प्रतिशत के उच्च स्तर पर बनी हुई है. उल्लेखनीय है कि आरबीआई ने नीतिगत दर में कटौती की घोषणा के बाद कहा था कि लगभग 40 प्रतिशत कर्ज का पुनर्मूल्यांकन तुरंत हो जाएगा क्योंकि वे बाह्य मानक (रेपो दर आदि) से जुड़े हुए हैं, जबकि अन्य में दो तिमाही का समय लगेगा. मिश्रा ने माना कि विश्लेषकों ने नीतिगत दर में तीन बार में कुल 0.75 प्रतिशत की कटौती की उम्मीद जतायी है. लेकिन उन्होंने दोहराया कि नकदी पर गौर अधिक प्रभावी होगा.
उन्होंने यह भी कहा कि आरबीआई के नए गवर्नर संजय मल्होत्रा ने बाजार को आवश्यक नकदी उपलब्ध कराने की बात कही है. एक सवाल के जवाब में मिश्रा ने टिकाऊ आधार पर नकदी उपलब्ध कराने के लिए आरबीआई के नियमित रूप से खुले बाजार में प्रतिभूतियों की खरीद-बिक्री का समर्थन किया. उन्होंने कहा कि नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) में और कटौती के बजाय, वृद्धिशील सीआरआर यानी नकद आरक्षित अनुपात के अलावा नकदी रखने की जरूरत में कमी अधिक प्रभावी होगी.
उन्होंने यह भी कहा कि यदि नकदी की स्थिति तेजी से सामान्य हो जाती है और सरकार अपनी राजकोषीय प्रतिबद्धताओं पर कायम रहती है, तो उन्हें वित्त वर्ष 2025-26 की दूसरी तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर सात प्रतिशत के स्तर तक पहुंचने की उम्मीद है. मिश्रा ने यह भी कहा कि पिछले कुछ वर्षों में वैश्विक बाजार भारत के लिए वृद्धि के नजरिये से कम प्रासंगिक हो गया है. हालांकि, वैश्विक घटनाएं प्रतिकूल हैं, लेकिन उनके बीच अर्थव्यवस्था मजबूत हो सकती है. (भाषा)