MGNREGA Budget Allocation: पहले से घाटे में चल रही केंद्र सरकार की योजना मनरेगा के लिए सरकार ने इस बार बजट आवंटन में किसी प्रकार का इजाफा नहीं किया गया है. योजना के तहत एक साल पहले के 86000 करोड़ रुपये के आवंटन को बरकरार रखा गया है.
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Union Budget 2025: बजट 2025 में सरकार ने अलग-अलग सेक्टर के लिए आवंटन किया है. कई सेक्टर के आवंटन में सरकार की तरफ से अच्छी खासी बढ़ोतरी की गई है. लेकिन इस बार बजट में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (MGNREGA) के लिए फंड आवंटन में किसी तरह की बढ़ोतरी नहीं की है. यह यूपीए सरकार की तरफ से शुरू की गई वहीं योजना है. इसे प्रधानमंत्री मोदी ने एक समय कांग्रेस पर निशाना साधते हुए लोकसभा में यूपीए सरकार की मनरेगा योजना को विफलताओं का स्मारक बताया था. आपको बता दें यूपीए सरकार की तरफ से शुरू किया गया यह ग्रामीण रोजगार से जुड़ा प्रमुख कार्यक्रम है.
साल 2024-25 के बराबर ही किया गया बजट आवंटन
मौजूदा वित्तीय वर्ष में यह योजना 9,754 करोड़ रुपये के घाटे में चल रही है. नए वित्तीय वर्ष 2025-26 के बजट में मनरेगा के लिए 86,000 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है. यह आवंटन साल 2024-25 के बजट आवंटन के बराबर ही है. केंद्र सरकार का कहना है कि मनरेगा डिमांड ड्रिवन स्कीम है और जरूरत पड़ने पर इसमें ज्यादा पैसा दिया जाता है. लेकिन इस साल कोई अतिरिक्त बजट नहीं दिया गया. आपको बात दें साल 2024-25 और 2025-26 दोनों फाइनेंशियल ईयर के लिए बजट अनुमान 86,000 करोड़ रुपये ही रखा गया है.
वेस्ट बंगाल में ही करीब 7500 करोड़ का बकाया
ध्यान देने वाली बात यह भी है कि हर साल बजट का बड़ा हिस्सा पिछले साल के बकाया को चुकाने में चला जाता है. वेस्ट बंगाल में ही करीब 7,500 करोड़ रुपये का बकाया है. अगर इस साल बकाया राशि को चुकाया जाता है, तो नए बजट में मिलने वाला पैसा और भी कम हो जाएगा. इसका सीधा असर मजदूरों को मिलने वाले रोजगार और वेतन पर पड़ेगा. नियम के अनुसार मनरेगा (MGNREGA ) के तहत मजदूरों को 15 दिन के अंदर उनका वेतन मिलना चाहिए. लेकिन सरकार के बजट प्रावधान के कारण तय टाइम लिमिट का पालन करना संभव नहीं हो पा रहा.
योजना पहले से ही घाटे में चल रही
द हिन्दू में प्रकाशित खबर के अनुसार मजदूर किसान शक्ति संगठन के फाउंडर मेंबर निखिल डे ने कहा, 'मौजूदा फाइनेंशियल ईयर में तीन महीने बाकी हैं, यह योजना पहले से ही घाटे में चल रही है. इसका सीधा सा मतलब ये हुआ कि अगले तीन महीने तक मजदूरी का भुगतान और ज्यादा देर से होगा.' उन्होंने यह भी बताया कि इतनी कम राशि के कारण अगले वित्तीय वर्ष में योजना को लिमिटेड किया जाएगा. इकोनॉमिक सर्वे के अनुसार, अक्सर जब मजदूरों को रोजगार की जरूरत होती है तब उन्हें काम नहीं मिलता.
मनरेगा के अनुसार, अगर किसी मजदूर को 15 दिन के अंदर काम नहीं दिया जाता तो उसे बेरोजगारी भत्ता मिलना चाहिए. लेकिन सर्वे से सामने आया कि 'काम की मांग तभी दर्ज की जाती है, जब वास्तव में रोजगार दिया जाता है.' यही कारण है कि मनरेगा में काम की वास्तविक मांग का आंकड़ा दर्ज ही नहीं होता.