कौन हैं राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू; भाजपा को उनके नाम से क्या होगा फायदा
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कौन हैं राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू; भाजपा को उनके नाम से क्या होगा फायदा

President election 2022; झारखंड की पूर्व राज्यपाल और आदिवासी नेता द्रौपदी मुर्मू 18 जुलाई को होने वाले राष्ट्रपति चुनाव में विपक्षी उम्मीदवार यशवंत सिन्हा के खिलाफ राजग की तरफ से अपनी दावेदारी पेश करेंगी. 

द्रौपदी मुर्मू

नई दिल्लीः झारखंड की पूर्व राज्यपाल और आदिवासी नेता द्रौपदी मुर्मू  (Jharkhand Governor Draupadi Murmu)आगामी राष्ट्रपति चुनाव (President election) में भारतीय जनता पार्टी नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की उम्मीदवार (BJP Candidate) होंगी. वह 18 जुलाई को होने वाले चुनाव के लिए विपक्षी उम्मीदवार यशवंत सिन्हा के खिलाफ राष्ट्रपति पद के लिए अपनी दोवेदारी पेश करेंगी. इस चुनाव में यदि मुर्मू की जीत होती है तो वह मुल्क की पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति होंगी. इससे पहले, मुल्क की पहली आदिवासी महिला राज्यपाल होने का रिकॉर्ड भी उनके नाम है. सूत्रों के मुताबिक, 2017 में भी राष्ट्रपति पद के लिए मुर्मू के नाम पर भी चर्चा हुई थी.

राज्यपाल के तौर पर काम करने का अनुभव 
64 वर्षीय मुर्मू झारखंड की राज्यपाल रह चुकी हैं. राजग उम्मीदवार मुर्मू का जन्म ओडिशा के मयूरभंज जिले में हुआ है. मुर्मू को राज्यपाल के रूप में छह साल से ज्यादा का समृद्ध तजुर्बा है. मुर्मू ने 18 मई, 2015 को झारखंड के  गवर्रनर के तौर पर शपथ लेने से पहले दो बार विधायक और एक बार ओडिशा में मंत्री के रूप में कार्य कर चुकी हैं. राज्यपाल के रूप में उनका पांच साल का कार्यकाल 18 मई, 2020 को खत्म होना था, लेकिन कोविड महामारी के चलते नए राज्यपाल की नियुक्ति नहीं होने के कारण उनका कार्यकाल बढ़ा दिया गया था. 

प्रशासनिक तौर पर भी काफी कुशल है द्रोपदी मुर्मू  
मुर्मू आदिवासी मामलों, शिक्षा, कानून व्यवस्था और झारखंड के स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों से हमेशा अवगत रही है कई मौकों पर, उन्होंने राज्य सरकारों के फैसलों पर सवाल उठाया, लेकिन हमेशा संवैधानिक गरिमा और शालीनता के साथ. विश्वविद्यालयों के पदेन कुलाधिपति के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान राज्य के कई विश्वविद्यालयों में कुलपति और प्रति-कुलपति के रिक्त पदों पर नियुक्ति हुई थी. उन्होंने खुद राज्य में उच्च शिक्षा से संबंधित मुद्दों पर लोक अदालतों का आयोजन किया, जिसमें विश्वविद्यालय के शिक्षकों और कर्मचारियों के लगभग 5,000 मामलों का निपटारा किया गया. 

शिक्षक और सहायक के रूप में कर चुकी हैं काम 
20 जून, 1958 को ओडिशा में एक साधारण संथाल आदिवासी परिवार में जन्मी मुर्मू ने 1997 में अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की थी. वह पहली बार 1997 में रायरंगपुर में जिला बोर्ड की पार्षद चुनी गईं थीं. सियासत में आने से पहले, मुर्मू ने अरबिंदो इंटीग्रल एजुकेशन एंड रिसर्च सेंटर में मानद सहायक शिक्षक के रूप में काम किया था. इससे पहले वह सिंचाई विभाग में एक कनिष्ठ सहायक के रूप में भी काम कर चुकी थीं. वह ओडिशा में दो बार विधायक रही हैं और उन्हें नवीन पटनायक सरकार में मंत्री के रूप में काम करने का मौका मिला, जब भाजपा बीजू जनता दल के साथ गठबंधन में थी. मुर्मू को ओडिशा विधान सभा द्वारा सर्वश्रेष्ठ विधायक के लिए नीलकंठ पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था.

भाजपा देना चाह रही है ये संदेश 
उनकी उम्मीदवारी से भाजपा कई तरह से पूरे देश को सांकेतिक संदेश देने की कोशिश कर रही है. शीर्ष पद के लिए उनका चयन भी आदिवासी समाज में पैठ बनाने की भाजपा की रणनीति का हिस्सा हो सकता है, जो अब तक कांग्रेस का गढ़ रहा है. भाजपा आगामी राज्य विधानसभा चुनावों पर नजर गड़ाए हुए है, और गुजरात, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में आदिवासी इसका मुख्य फोकस क्षेत्र हैं, जहां उनके वोट पार्टी की योजना के लिए महत्वपूर्ण हैं.

Zee Salaam

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