Pakistan Tribal Conflict: पाकिस्तान के कुर्रम जिले में 80 दिनों से ज्यादा समय से सभी रास्ते पूरी तरह से बंद पड़े हैं. इसके चलते खाद्य आपूर्ति और दवाइयों की कमी हो गई है, जिसके चलते महिलाओं और बच्चों सहित 150 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई है.
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Pakistan Tribal Conflict: पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा (केपी) प्रांत के कुर्रम हिंसक संघर्ष में उलझी जनजातियों ने 14 सूत्री शांति समझौते पर हस्ताक्षर कर दिए हैं, लेकन दो दिन बाद मकामी लोगों ने विरोध प्रदर्शन खत्म करने से इनकार कर दिया है. जिला राजधानी पाराचिनार में प्रदर्शनकारी मांग कर रहे हैं कि जब तक सभी सड़कें यात्रा के लिए सुरक्षित नहीं हो जातीं, तब तक वे धरना जारी रखेंगे.
सिया-सुन्नी हिंसा में 150 की मौत
दरअसल, पाराचिनार प्रेस क्लब के बाहर प्रोटेस्ट कई हफ्तों से जारी है. स्थानीय निवासी प्रांतीय सरकार पर लोगों की आजीविका और सुरक्षा सुनिश्चित करने में नाकाम रहने का इल्जाम लगा रहे हैं. दरअसल 80 दिनों से ज्यादा समय से सभी रास्ते पूरी तरह से बंद पड़े हैं. इसके चलते खाद्य आपूर्ति और दवाइयों की कमी हो गई है, जिसके चलते महिलाओं और बच्चों सहित 150 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई है.
हिंसा का कौन है जिम्मेदार
पाराचिनार के एक निवासी ने न्यूज एजेंसी आईएएनएस को बताया, "यह पहली बार नहीं है जब शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए गए हैं. समझौते पर हस्ताक्षर करने में उन्हें दो सप्ताह से ज्यादा का वक्त लगा, वे इलाके के लोगों की पीड़ा से पूरी तरह अनजान थे, जो खाद्य आपूर्ति, दवाओं और बुनियादी जरुरतों के बिना रहने को मजबूर हैं. 150 लोग इसलिए मर गए, क्योंकि अस्पतालों में उनके इलाज के लिए दवाएं नहीं थीं. इसके लिए कौन जिम्मेदार है?"
एक और मकामी ने कहा, "शिया और सुन्नी संघर्ष यहां दशकों से चल रहा है. कई बार प्रतिद्वंद्वी जनजातियां घात लगाकर हमला करती हैं, जिसमें कई लोगों की मौत हो जाती है और हर बार तथाकथित शांति समझौतों पर हस्ताक्षर होते हैं हैं. इस बार भी शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए गए हैं, लेकिन जहां तक रास्तों और आपूर्ति को खोलने का सवाल है, जमीनी स्तर पर कोई प्रगति नहीं देखी गई है. हमारे परिवार यहां हर दिन भूख और चिकित्सा समस्याओं के कारण मर रहे हैं."
47 लोगों की मौत हो चुकी है मौत
पाराचिनार में सांप्रदायिक संघर्ष नवंबर के आखिरी सप्ताह में शुरू हुआ था, जब एक बस पर हमला किया गया था. हमले में 47 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी जिसमें ज्यादातर शिया मुस्लिम थे. इसके बाद सुन्नी बहुल गांवों पर हमला किया. इन हमलों में 150 से ज्यादा लोगों की बेरहमी से हत्या कर दी गई. तब से यह इलाका बाकी देश से कटा हुआ है. शांति स्थापित करने के लिए लंबे समय से विचार-विमर्श और चर्चाएं चल रही थीं, लेकिन देरी के कारण पाराचिनार के निवासियों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ा. दवाओं की कमी के कारण अस्पतालों में कई लोगों की मौत हो गई. सुरक्षा चिंताओं के कारण शैक्षणिक संस्थान भी बंद रहे और सार्वजनिक परिवहन की आवाजाही नहीं हुई. इस दौरान अफगानिस्तान के साथ सीमा भी बंद रही.
स्थानीय अधिकारी और शांति जिरगा या जनजातीय न्यायालय के सदस्य आश्वासन दे रहे हैं कि शांति समझौते पर हस्ताक्षर के बाद पाराचिनार शहर, बुशहरा और 100 से ज्यादा गांवों में खाद्य और आवश्यक वस्तुओं की डिलीवरी जल्द शुरू हो जाएगी. उपायुक्त जावेद उल्लाह महसूद ने कहा, "एक कल्याणकारी संगठन द्वारा पाराचिनार में पहले ही दवाइयां भेजी जा चुकी हैं और इसी तरह की आपूर्ति अन्य प्रभावित क्षेत्रों में भी भेजी जा रही है. हालांकि पिछले अनुभवों को देखते हुए स्थानीय लोगों को डर है कि शांति समझौता अमल में आना मुश्किल है.
मकामियों का छलका दर्द
पाराचिनार के एक प्रदर्शनकारी निवासी सैफुल्लाह ने कहा, "हम समझौते का स्वागत करते हैं, लेकिन यह भी जानते हैं कि अतीत में हुए ऐसे समझौते एक ही घटना के बाद कूड़ेदान में फेंक दिए गए हैं. दोनों पक्ष बहुत लंबे समय से एक-दूसरे से लड़ रहे हैं और वे भविष्य में भी ऐसा करते रहेंगे. मुझे नहीं लगता कि वे अपने हथियार छोड़ देंगे और अपनी मारक क्षमता को कमज़ोर करेंगे."
सैफुल्लाह ने कहा "हम बस जीने का अधिकार चाहते हैं. हम अपने बच्चों को दवाओं और उपचार के अभाव में मरते हुए नहीं देखना चाहते. हम चाहते हैं कि हमारे बच्चे स्कूल और कॉलेज जाएं, हम नहीं चाहते कि हमारे परिवार बिना भोजन के दिन बिताएं, हम नहीं चाहते कि हमारी दुकानें और व्यवसाय बंद हो जाएं. यही कारण है कि हम तब तक अपना विरोध प्रदर्शन समाप्त नहीं करेंगे जब तक कि क्षेत्र में पूर्ण शांति, सुरक्षा और सामान्य स्थिति बहाल नहीं हो जाती."